मीटू बहस: गलतियां सुधारने का मौका
२३ अगस्त २०१८हार्वे वाइनस्टीन ने कई महिआलों को उनके साथ हुए यौन शोषण के बारे में चुप रहने के लिए मोटी रकम दी. हॉलीवुड के नामी प्रोड्यूसर वाइनस्टीन पर आरोप है कि उन्होंने अनगिनत महिलाओं का शोषण किया, होटल के बंद कमरों में कई बार बलात्कार किया.
आसिया अर्जेंटो मीटू बहस का एक बड़ा नाम रही हैं. उन्होंने खुल कर हार्वे वाइनस्टीन के खिलाफ आवाज उठाई. लेकिन अब उन्हीं पर एक नाबालिग का शोषण करने का आरोप लगा है. उन्होंने भी होटल के कमरे में नाबालिग के साथ बलात्कार किया.
भले ही वाइनस्टीन के अनगिनत मामलों की अर्जेंटो के एक मामले से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन दोनों की समानताओं को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता. दोनों ही अपने पर लगे आरोपों से इंकार कर रहे हैं.
अर्जेंटो उन पहली महिलाओं में से थीं जिन्होंने वाइनस्टीन पर उंगली उठाई. लेकिन जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर छापी कि कैसे उन्होंने बलात्कार कर नाबालिग अभिनेता जिम्मी बेनेट को मुंह बंद रखने के लिए पैसे दिए, तो सोशल मीडिया पर इस बारे में चर्चा शुरू हो गई कि अब मीटू आंदोलन का भविष्य क्या होगा.
कान फिल्म महोत्सव में अर्जेंटो ने वाइनस्टीन के खिलाफ स्पीच भी दी थी. उन्होंने बताया कि कैसे यह समारोह सालों तक वाइनस्टीन के लिए "शिकार की जगह" बना रहा. उन्होंने यह भी कहा कि दर्शकों में बैठे कई लोगों ने इस शोषण पर पर्दा डालने की कोशिश की है. इसके बाद ब्रसेल्स में उन्होंने यूरोपीय संसद का भी संबोधन किया. कई भाषणों और साक्षात्कारों में उन्होंने अपने तजुर्बे बताए और साथ ही इस पर भी जोर दिया कि इंडस्ट्री में कैसे योजनात्मक तरीके से शोषण किया जाता है.
अर्जेंटो और जिम्मी बेनेट ने पहली बार 2004 में एक फिल्म में एक साथ काम किया. फिल्म में उन्होंने जिम्मी की मां का किरदार निभाया. माना जाता है कि इसके बाद से दोनों के संबंध काफी अच्छे रहे. वे हमेशा उनकी गुरु के तौर पर दिखीं और उन्होंने जिम्मी को कई फिल्मों में रोल भी दिलाए. लेकिन अब पता चला है कि उन्होंने एक फिल्म की शूटिंग के दौरान जिम्मी का फायदा उठाया. 2013 में उन्होंने होटल के कमरे में जिम्मी को शारीरिक संबंध बनाने पर मजबूर किया. मीटू आंदोलन के लिए यह खबर एक बड़े झटके के तौर पर सामने आई है.
लेकिन अर्जेंटो के खिलाफ आरोप लगने का मतलब यह कतई नहीं है कि उन्होंने वाइनस्टीन पर जो आरोप लगाए, उनकी अहमियत कम हो जाती है. उन्हें अब भी पीड़ित माना जाएगा. अब कुछ लोग कहेंगे कि पीड़ित कई बार खुद अपराधी बन जाते हैं क्योंकि वे बेबस महसूस करते हैं, अपने सदमे से बाहर आना चाहते हैं. अर्जेंटो ने जो किया, उसकी सफाई में ये दलील काफी नहीं है. और इतना तो अब साफ है कि वे सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ चलाई गई मीटू मुहिम की पोस्टर गर्ल नहीं बनी रह सकतीं.
वैसे भी मीटू आंदोलन सिर्फ हॉलीवुड तक सीमित नहीं है. यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से और दूसरों को सम्मान देने से जुड़ा है. ज्यादातर मामलों में सत्ता का दुरुपयोग पुरुष करते हैं लेकिन जैसा कि यह मामला दिखाता है, हमेशा ऐसा नहीं होता.
अब जो नई बहस छिड़ी है, शायद ये उस गलती को सुधारने में मददगार साबित हो, जो मीटू के शुरुआती दिनों से ही चली आ रही है. इस आंदोलन के तहत महिलाओं को पुरुषों के खिलाफ खड़े नहीं होना है, बल्कि सही को गलत के खिलाफ खड़े होना है. लिंग की इसमें कोई भूमिका नहीं हो सकती.
टॉर्स्टन लांड्सबैर्ग/आईबी