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मिस्र में मुबारक बाद का पहला चुनाव

२८ नवम्बर २०११

मिस्र की सत्ता से होस्नी मुबारक की विदाई के बाद सोमवार को वहां पहली बार लोगों ने नई संसद के लिए वोट डाला. चुनाव के नतीजे देश के अस्थिर और अशांत हालत में आंख खोलते लोकतंत्र का भविष्य तय करेंगे.

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तस्वीर: dapd

विरोध में आवाज बुलंद करते प्रदर्शनकारी और उन्हें नियंत्रण में रखने की कोशिश करती सैन्य परिषद की आपसी हिंसक झड़पों के बीच सोमवार को मिस्र में संसदीय चुनावों के पहले दौर की शुरूआत हुई. पिछले हफ्ते 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ तहरीर चौक पर सत्ताधारी सैन्य परिषद के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए जमा हो गई. लोग सैन्य परिषद से अंतरिम नागरिक सरकार को तुरंत सत्ता सौंपने की मांग कर रहे हैं. मिस्र की सत्ता से मुबारक की विदाई के बाद भी विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है. फरवरी से लेकर अब तक इन विरोध प्रदर्शनों में 42 लोगों की मौत हुई है और 3,000 से ज्यादा घायल हुए हैं.

Ägypten Wahlen Parlament Kairo
तस्वीर: picture alliance/dpa

सैन्य नेताओं ने राष्ट्रपति चुनाव को अब जून में कराने का फैसला किया है जो कार्यक्रम से काफी पहले है. इन कदमों के जरिए सैन्य परिषद प्रदर्शनकारियों को भरोसा देना चाहती है कि जल्दी ही देश में नागरिक सरकार बहाल कर दी जाएगी. फील्ड मार्शल हुसैन तंतावी ने जोर दिया कि संसदीय चुनाव को अपने समय पर ही कराए जाएं. मिस्र के इन ऐतिहासिक चुनावों पर सिर्फ हिंसा का ही साया नहीं है. एक बड़ी समस्या यह भी है नई उदारवादी पार्टियों को अपने बारे में लोगों को बताने का वक्त ही नहीं मिला. राना जबर फ्री एजिप्शियन पार्टी के सदस्य हैं जो सामाजिक न्याय, महिला और पुरूष के बीच समानता और साथ ही मुस्लिम और इसाइयों के बीच भी. राना जबर कहते हैं, "इतने कम समय में हम लोगों को अपने बारे में कैसे बताएंगे. हमारे पास कोई मौका नहीं."

राजनीति का विस्तार

इन चुनावों को मिस्र के इतिहास का पहला निष्पक्ष चुनाव कहा जा रहा है. ये चुनाव देश में एक संसद की नींव रखेंगे जो नया संविधान बनाएगी. इन चुनावों में जो विजयी होगा उसे लोकतांत्रिक मिस्र की नींव रखने का मौका मिलेगा. मिस्र के चुनाव आयोग के मुताबिक 55 राजनीतिक पार्टियों के 1,5000 उम्मीदवारों ने चुनाव में हिस्सा लेने के लिए अपना नाम दर्ज कराया है. इनमें उदारवादी मुस्लिम पार्टियां है जो मिस्र को एक लोकतांत्रिक देश बनाना चाहती हैं, दूसरी तरफ समाजवादी हैं जो अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीयकरण करना चाहते हैं, नवउदारवादी हैं जो मुक्त व्यापार और समान अधिकारों की बात करते हैं और इस्लामी कट्टरपंथी हैं जो चाहते हैं कि चोरी करने वाले को सजा उसके हाथ काट कर दी जाए.

Wahlen in Ägypten
तस्वीर: dapd

चुनाव की जटिल प्रक्रिया

वोट डालने की शुरूआत तो सोमवार को हो गई लेकिन इसके अंतिम नतीजों के आने के लिए अप्रैल तक का इंतजार करना होगा. मिस्र में चुनाव कई चरणों में हो रहे हैं. सबसे पहले संसद के निचले सदन पीपल्स असेंबली के लिए वोट डाले जा रहे हैं जो नवंबर से शुरू हो कर जनवरी तक चलेंगे. इसके बाद ऊपरी सदन शूरा परिषद के लिए चुनाव होंगे. मिस्र के लोग चुनाव के दिन ही अपने बैलट वापस नहीं करेंगे क्योंकि पर्याप्त मात्रा में जज मौजूद नहीं है जो यह देख सकें कि वोट नियम के मुताबिक डाले गए हैं कि नहीं. 

बहुत से मिस्रवासी यह भी मान रहे हैं कि सैन्य परिषद ने जान बूझ कर चुनाव का कार्यक्रम लंबा रखा है ताकि इसमें वो अपने मन मुताबिक गड़बड़ियों को अंजाम दे सकें. लंबे समय तक चलने वाला चुनाव प्रदर्शनकारियों और सैन्य प्रशासन के बीच हिंसक झड़पों को भी न्योता दे रहा है. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि सेना किराए के गुंडों को भेज कर खुद झड़प करवाएगी और फिर इसी हिंसा का बहाना कर सुरक्षा के नाम पर चुनाव टाल दिए जाएंगे.

जो कोई भी वोट देने की सोच रहा है उसे लंबा समय चुनाव के जटिल नियमों को समझने में खर्च करना होगा. 26 साल के अहमद इस्माइल के पास राजनीति शास्त्र में डिग्री है लेकिन उन्हें भी नियमों को समझने के लिए काफी वक्त देना पड़ा. वो पूछते हैं, "आम लोग इन नियमों को कैसे समझेंगे." मुबारक के युग में उम्मीदवारों के लिए सीधे वोट दे दिए जाते थे. अब संसद की दो तिहाई सीटें पार्टियों के नाम हैं.

अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की गैरमौजूदगी

सैन्य प्रशासन ने फैसला किया है कि इन चुनावों में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को यहां आने की अनुमति नहीं दी जाएगी. उनका कहना है मिस्र एक विकसित देश है और अपने चुनावों का ख्याल रख सकता है.

मजबूत मुस्लिम ब्रदरहुड

सर्वे से पता चला है कि इन चुनावों से मुस्लिम पार्टियों को और मजबूत होने का मौका मिलेगा. मुबारक के दौर में बंधे हुए विपक्ष की तरह रहीं ये पार्टियां जल्दी संगठित हो गईं और अब अपने मकसद के लिए भीड़ आसानी से जुटा ले रही हैं. सबसे ऊपर है फ्रीडम एंड जस्टिस पार्टी जिसे मुस्लिम ब्रदरहुड ने स्थापित किया है और इसके बाद आती है सलाफिस्ट नोर पार्टी इन दोनों के बहुमत में आने के आसार बहुत अच्छे हैं. राना जबर तहरीर चौक पर मौजूद प्रदर्शनकारियों में से कुछ को भले ही अपनी पार्टी का समर्थन करने के लिए तैयार कर लें लेकिन बहुत कुछ कर पाना मुमकिन नहीं है.

रिपोर्टः विक्टोरिया क्लेबर/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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