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मिस्र के किसानों की पानी बचाने और पैदावार बढ़ाने की पहल

१२ फ़रवरी २०२१

जल-संकट से निपटने के लिए मिस्र की सरकार ने खेतों में सिंचाई का एक ऐप तैयार किया है. किसान इस ऐप की मदद से पानी की बरबादी से बच रहे हैं और खेतों में अच्छी फसल उगा रहे हैं. कई किसान नई तकनीक से अंजान और असहज भी हैं.

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Ägypten Landwirtschaft
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Ammar

दक्षिण मिस्र के समालाउत शहर में एमन एसा ने अपने किसान पति के निधन के बाद खेती का काम संभाला. उसे अंदाजा नहीं था कि गेहूं की फसल को कब और कितना पानी देना होगा. 36 साल की एसा अपने दो एकड़ खेत के लिए या तो जरूरत से ज्यादा पानी इस्तेमाल कर बैठती थी या उसे सिंचाई के लिए किसी किसान को रखना पड़ता था.

पिछले साल दिसंबर में चार बच्चों की मां एसा एक सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़ गई जो सेंसरों की मदद से खेत को पानी की जरूरत और मात्रा के बारे मे बताता है. और यह जानकारी मिल रही थी फोन पर एक ऐप के जरिए. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को फोन पर इंटरव्यू में एसा ने बताया, "जब मैंने इस नए सिस्टम के बारे में सुना, तो नहीं जानती थी कि इससे मुझे फायदा क्या होगा. लेकिन जब लोगों ने दिखाया कि यह ऐसे काम करता है, तो मुझे वाकई बहुत मदद मिली और मेरी मेहनत और पैसा भी बचने लगा.”

ऐप का इस्तेमाल करते हुए कुछ ही हफ्तों में एसा की पानी की खपत 20 फीसदी और लेबर की कॉस्ट एक तिहाई कम हो गई. यह सिस्टम देश के जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय ने काहिरा की एमएसए यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर विकसित किया है. इसके तहत मिट्टी में एक सेंसर दबा दिया जाता है जो नमी के स्तर की जांच करता है. एक ट्रांसमीटर के जरिए उसका डाटा यूजर के पास पहुंचता है जो उसे अपने मोबाईल ऐप के जरिए देख सकता है. किसान अपने खेतों से दूर भी रहें तब भी जान सकते हैं कि उनकी फसल को और पानी चाहिए या नहीं.

एसा उन दर्जनों किसानों में से एक है जिसने दिसबंर में लॉन्च हुए इस नए सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. जल संसाधन मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद घानेम के मुताबिक यह प्रोजेक्ट आधुनिक सिंचाई विधियों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए बनी देशव्यापी रणनीति का हिस्सा है. वे कहते हैं कि कम पानी में पैदावार बढ़ाना और उत्पादन की लागत घटाना ही इसका लक्ष्य है क्योंकि मिस्र पानी की किल्लत से जूझ रहा है.

फोन पर प्रवक्ता ने बताया, "शुरुआती नतीजे दिखाते हैं कि पानी का खर्च कम करने और लागत कम करने में कामयाबी मिली है.” वे यह भी कहते हैं कि सरकार अभी और भी डाटा इकट्ठा कर रही है. घानेम के मुताबिक मंत्रालय ने अभी तक किसानों को मुफ्त में 200 उपकरण मुहैया कराए हैं लेकिन ट्रायल पीरियड खत्म होने के बाद देश भर में उन्हें बेचा जाएगा. हालांकि उन्होंने उपकरण की कीमत नहीं बताई.

खेती के नए तरीके

एसा के मीन्या प्रांत के नजदीक एक दूसरे खेत में जॉर्जेस शाउकरी कहते हैं कि नए मोबाइल ऐप के साथ ड्रिप सिंचाई को मिलाकर बड़ा फायदा हुआ है. उन्होंने पत्नी के साथ ड्रिप सिंचाई पिछले साल ही लगाई थी. 32 साल के शाउकरी कहते हैं कि वे अब 15 फीसदी कम पानी खर्च करते हैं, उनकी सब्जी की फसल की क्वॉलिटी सुधर गई है और उत्पादन करीब 30 फीसदी बढ़ गया है, "अगर पानी की कमी हुई तो हमें सिंचाई और खेती के नए तरीकों के लिए तैयार रहना होगा.”

मिस्र के सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक नील नदी से देश को मिलने वाले पानी का 85 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा, खेती में ही निकल जाता है. अधिकारियों के मुतबिक मिस्र में हर साल हर व्यक्ति पर करीब 570 घन मीटर यानी डेढ़ लाख गैलन पानी की खपत है. अगर किसी देश में प्रति व्यक्ति सालाना जल आपूर्ति एक हजार घन मीटर से कम है तो विशेषज्ञ उस देश को "जल निर्धन” मानते हैं.

लौट रही है नील की खेती

2017 में जल संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए मिस्र ने 20 साल की एक रणनीति तैयार की थी. विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले सूखे और नील नदी से हासिल ज्यादातर पानी को गंवा देने के डर ने मिस्र की चुनौतियों को और भी आपात बना दिया है. मिस्र की डाटा एजेंसी के मुताबिक देश का 70 फीसदी पानी नील नदी से आता है. सूडान के साथ 1959 में हुए करार के बाद मिस्र को सालाना साढ़े 55 अरब घन मीटर पानी मिलता है. लेकिन इथियोपिया इस करार को नहीं मानता जिसने अपने नए ग्रांड रिनेसां विशाल बांध के लिए मिस्र को जाने वाले पानी से अपना जलाशय भरना शुरू कर दिया है.

आने वाली चुनौतियों से मुकाबला

कुछ कृषि विशेषज्ञ नए मोबाइल इरीगेशन सिस्टम से बहुत मुतास्सिर नहीं हैं. उनका इशारा कीमत और इस बात की ओर है कि कई किसान टेक्नोलजी से अंजान हैं या असहज. काहिरा यूनिवर्सिटी में इकोनोमिक जियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर अब्बास शराकी कहते हैं कि यह तकनीक बड़े कमर्शियल किसानों के लिए तो फायदेमंद हो सकती है लेकिन बहुत से छोटे किसानों के लिए नहीं. उन्होंने बताया, "मिस्र में कुछ कंपनियों ने अच्छी क्वॉलिटी और बेहतर मैनेजमेंट के लिए खेती में मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है. लेकिन अलग अलग व्यक्तियों के लिए इसे इस्तेमाल करना मुश्किल होगा क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग और उचित संसाधनों की दरकार होगी."

पेशे से कृषि इंजीनियर युसूफ अल बहावशी का गीजा शहर में खेत है और उन्होंने नया उपकरण नहीं लगाया है. उनका कहना है कि बहुत से किसान तो मोबाइल फोन तक इस्तेमाल नहीं करते हैं, "सिंचाई और खेती में लंबा अनुभव रखने वाले किसानों को नए उपकरण का इस्तेमाल करने के लिए तैयार करना आसान नहीं, इसमें उनके पैसे लगेंगे और यह बात उन्हें शायद हजम नहीं होगी.”

मीन्या प्रांत में प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर सफा अब्देल हकीम का कहना है कि जिन किसानों को उपकरण मिल गए हैं उन्हें ट्रेनिंग भी मिली है. उधर एसा का कहना है कि जो शख्स तकनीक से अंजान है उसके लिए तो बदलावों के साथ तालमेल बैठाना मुश्किल है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि नई सिंचाई तकनीक को अपनाकर और पानी की खपत के तरीके बदलकर मिस्र के किसान आने वाली चुनौतियों से मुकाबला भी कर सकते हैं, "नई तकनीक के बारे में सीख-समझकर न सिर्फ मैं अपनी जमीन का बेहतर प्रबंध कर सकती हूं, बल्कि भविष्य के बदलावों के लिहाज से भी खुद को ढाल सकती हूं.”

एसजे/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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