मिलिए गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित लोगों से
भारत सरकार ने एक साथ साल 2015 से 2018 तक के विजेता चुने हैं. मिलिए गांधी शांति पुरस्कार से नवाजे गए विशिष्ट लोगों से और जानिए गांधीवादी विचार को बढ़ाने में उनके योगदान के बारे में.
कुष्ठ रोगियों के लिए
भारत और विश्व भर में कुष्ठ मिटाने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जापान के योहेई सासाकावा को साल 2018 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया. वे विश्व स्वास्थ्य संगठन में कुष्ठ उन्मूलन के सद्भावना दूत हैं.
आदिवासी बच्चों का ख्याल
साल 2017 के लिए यह सम्मान एकल अभियान ट्रस्ट को दिया गया है. इस ट्रस्ट को गरीब और आदिवासी बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय काम करने के लिए सम्मानित किया गया.
भूखों को भोजन
देश भर के बच्चों को मध्याह्न भोजन कराने वाले 'अक्षय पात्र फाउंडेशन' और मैला ढोने वालों का जीवन सुधारने वाले 'सुलभ इंटरनेशनल' को संयुक्त रूप से साल 2016 का पुरस्कार दिया जाएगा.
विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी
विवेकानंद केंद्र को ग्रामीण विकास और शिक्षा के क्षेत्र में उनके काम के लिए 2015 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया है. यह स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं पर आदारित एक आध्यात्मिक संगठन है.
इसरो का योगदान
इसके पहले साल 2014 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को यह सम्मान दिया गया था. विजेता का चयन एक जूरी करती है, जिसके सदस्य होते हैं प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, देश के मुख्य न्यायाधीश और दो अन्य विशिष्ट व्यक्ति.
अहिंसक तरीके से पर्यावरण की रक्षा
2005 के बाद सीधे आठ साल के अंतराल के बाद सन 2013 में चिपको आंदोलन करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट को गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना गया.
रंगभेद के खिलाफ
आर्कबिशप डेसमंड टूटू को 2005 में यह सम्मान दिया गया. नोबेल शांति पुरस्कार जीत चुके दक्षिण अफ्रीका के टूटू ने चर्च के प्लेटफॉर्म को रंगभेद से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया.
गांधीवादी नेता और गरीबों के मददगार
सन 2000 में यह सम्मान नेल्सन मंडेला और बांग्लादेश ग्रामीण बैंक को संयुक्त रूप से दिया गया. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता रहे हैं बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस.
कैसे होते हैं विजेता
सन 1997 के लिए पूर्व जर्मन डिप्लोमैट गेरहार्ड फिशर को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है, जो अहिंसा या अन्य गांधीवादी विचारों के मार्ग पर चल कर बड़े सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक परिवर्तन लाते हैं.
125वीं गांधी जयंती
इसकी शुरुआत सन 1995 में महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर हुई और पहला पुरस्कार तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति जूलियल के नायरेरे को दिया गया. विजेता को एक करोड़ रुपये की इनामी राशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक हस्तकला की वस्तु दी जाती है.