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मायावती के सामने सब बौने दिखने चाहिए

समीरात्मज मिश्र
६ मार्च २०१९

बहुजन समाज पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान या फिर आगे भी कोई उम्मीदवार, नेता या कार्यकर्ता कोई ऐसी तस्वीर, होर्डिंग या कट आउट न लगाए जिसमें उसकी फोटो मायावती से ज्यादा बड़ी हो.

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Indien Wahlplakat BSP
तस्वीर: DW/S. Mishra

बताया जा रहा है कि पार्टी की ओर से ये भी निर्देश दिए गए हैं कि बसपा के किसी भी प्रत्याशी या नेता को अब होर्डिंग लगाने से पहले उसे बसपा प्रभारियों से पास भी कराना होगा. यह भी बता दिया गया है कि इन निर्देशों की अवहेलना करने पर पार्टी से बाहर भी किया जा सकता है.

बसपा के किसी नेता ने इस बारे में साफ साफ तो कुछ नहीं बताया लेकिन पार्टी के एमएलसी और नवनियुक्त जोनल इंचार्ज भीमराव आंबेडकर का कहना है कि ऐसे निर्देश समय-समय पर पार्टी के भीतर अनुशासन और पार्टी नेता के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए अकसर जारी किए जाते हैं.

दो दिन पहले पार्टी संगठन की लखनऊ मंडल की बैठक हुई थी और ऐसा माना जा रहा है कि उसी बैठक में यह खास निर्देश जारी किए गए हैं. इस बैठक में पार्टी सुप्रीमो मायावती के अलावा राज्य के सभी मंडलों में नवनियुक्त जोन इंचार्ज शामिल थे.

भीमराव आंबेडकर का कहना था,  "पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ऐसे अनुशासनों का खुद ही पालन करते हैं लेकिन जो लोग नए होते हैं, पार्टी के जिम्मेदार लोगों की ये ड्यूटी होती है कि उन्हें इस बारे में बताएं. हम लोगों का ये मानना है कि हमारी नेता हमारे लिए सब कुछ हैं. हम अपने महापुरुषों के साथ-साथ अपनी नेता को भी उसी श्रेणी में रखते हैं. इसलिए स्वाभाविक है कि पार्टी का कोई दूसरा नेता और कार्यकर्ता तो उनकी बराबरी नहीं कर सकता.”

भीमराव आंबेडकर स्पष्ट करते हैं कि ऐसे निर्देश पार्टी सुप्रीमो मायावती की ओर से नहीं बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों की ओर से जारी किए जाते हैं, ताकि जिन्हें इन सबके बारे में नहीं मालूम है, वो जान जाएं.

Indien Wahlplakat BSP
भारत में जोर पकड़ता चुनाव प्रचारतस्वीर: DW/S. Mishra

दरअसल, पार्टी के पुराने नेताओं को तो बसपा की कार्यशैली,  होर्डिंग-बैनर लगाने के तरीके और कार्यकर्ताओं-नेताओं के साथ बातचीत के सलीके का पता रहता है लेकिन पार्टी में नए शामिल होने वालों को भी ये सब बातें पता रहें, इसलिए ऐसी बैठकों में ये बातें बताई जाती हैं.

पार्टी के कुछ नेताओं के मुताबिक, चुनाव के मौके पर तमाम जगह पार्टी समर्थक और दूसरी पार्टियों से आए नेता अपने हिसाब से होर्डिंग्स में महापुरुषों और पार्टी अध्यक्ष के बराबर या उनसे भी बड़ी अपनी तस्वीर लगा देते हैं. इसीलिए बैठक में ये बताया गया कि कोई भी नेता मायावती के सामने उनके बराबर में कोई भी तस्वीर नहीं लगा सकता.

दिशा-निर्देशों के मुताबिक, पार्टी सुप्रीमो मायावती के सामने पार्टी संस्थापक कांशीराम या फिर पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की ही तस्वीर ही लगाई जा सकती है. हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि इन निर्देशों का पालन सिर्फ बीएसपी के लोगों के लिए है या फिर समाजवादी पार्टी के नेताओं के लिए भी. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि शायद ये सिर्फ बसपा नेताओं के लिए ही है.

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनावी तालमेल किया है. ये भी निर्देश दिए गए हैं कि जिला स्तर पर होने वाली पार्टी बैठकों में समाजवादी पार्टी के नेताओं और पदाधिकारियों को भी शामिल किया जाए.

दरअसल, बहुजन समाज पार्टी ऐसी पार्टी है जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां न सिर्फ फैसले केवल बसपा सुप्रीमो मायावती ही लेती हैं बल्कि मीडिया से बातचीत का अधिकार भी उन्हीं के पास है. पार्टी की नीतियों या महत्वपूर्ण फैसलों की जानकारी देने के लिए अकसर मायावती खुद ही मीडिया के सामने आती हैं.

पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र कुछ मौकों, खासकर कानूनी मामलों में जरूर मीडिया के सामने आते हैं लेकिन कभी-कभी. यही एक पार्टी है जिसमें सीधे तौर पर मीडिया से बातचीत न करने की नेताओं और कार्यकर्ताओं को हिदायत दी गई है. राष्ट्रीय स्तर पर भी सिर्फ सुधींद्र भदौरिया ही पार्टी का पक्ष लेने के लिए टीवी चैनलों पर दिखते हैं, इसके अलावा टीवी बहसों में शामिल होने के लिए भी इस पार्टी में कोई पैनल नहीं है.

यही वजह है कि किसी मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी का पक्ष शायद ही कभी आ पाता हो. पार्टी नेता साफतौर पर कह देते हैं, "यदि जरूरी होगा तो बहनजी खुद ही बयान जारी कर देंगी.” और अकसर ऐसा होता भी है.

दिलचस्प बात तो ये है कि पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारी उस मुद्दे पर भी बात करने से कतराते हैं जिसके संबंध में मायावती बयान जारी कर चुकी होती हैं. बीएसपी के एक नेता नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "बहुजन समाज पार्टी से तमाम अच्छे नेताओं के चले जाने की वजह भी यही है. किसी को यहां न कुछ बोलने का और न ही पार्टी का पक्ष रखने का कोई अधिकार है. आप बहन जी और सतीश मिश्र को छोड़कर बीएसपी के किसी नेता को पहचानते हों तो बताइए.”

नेताओं की ये भी शिकायत होती है कि सांसद और विधायक भी अपने क्षेत्र की समस्याओं या राजनीति इत्यादि पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करते. क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि वो बयान चर्चित हो जाए और फिर उन्हें बहनजी का कोपभाजन बनना पड़े. बसपा के नेता फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर भी बहुत सक्रिय नहीं रहते. जो रहते भी हैं वो पार्टी से संबंधित बात वहां नहीं करते.

कुछ महीनों पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी एक कार्यकर्ता को सिर्फ इसलिए पार्टी से निकाल दिया था क्योंकि उसने मायावती के साथ अपनी एक तस्वीर फेसबुक पर शेयर कर ली थी.

(भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है)