माया का गैर दलित कार्ड
११ अप्रैल २०१४बीएसपी ने अपने इस आजमाए हुए नुस्खे से लोकसभा चुनावों में उत्तरोत्तर विकास किया है. 1998 में पांच सीटों से खाता खोला और एक साल बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में उसने 14 सीटें हासिल कर लीं. फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा, 2004 में 19 और 2009 में 20 सीटें जीत कर उसने अपने मजबूत दलित वोट बैंक को जीत का आधार बना दिया. कांशीराम के करीबी रहे बीएसपी के वरिष्ठ नेता आरके चौधरी के मुताबिक उनकी पार्टी की यही राष्ट्रीय छवि है जिसका उसे भविष्य में भी लाभ मिलेगा.
प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद
लेकिन 2009 के जिन लोकसभा चुनावों में उसे सबसे अधिक सीटें मिलीं वही चुनाव उसके लिए बहुत बड़ा सबक भी साबित हुए. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यह चुनाव प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में लड़ा था. तब उनकी जनसभाओं के बैकड्रॉप में लाल किले की प्राचीर दिखती थी. रैलियों में लोग लाल किले के छोटे छोटे कटआउट लेकर "हाथी दिल्ली जाएगा" का नारा लगाते थे. लेकिन नतीजों ने मायावती के अरमानों पर पानी फेर दिया. उन्हें सिर्फ 20 सीटें मिलीं. रही सही कसर 2012 के विधानसभा चुनावों ने पूरी कर दी. बीएसपी 80 सीटों पर सिमट गई. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि लोकतंत्र में तानाशाही का स्थान नहीं है, मायावती के दिन गए.
1999 के लोकसभा चुनावों में 22.08 फीसदी, 2004 में 24.67 प्रतिशत और 2009 में 27.42 फीसदी वोट, सुप्रीमो मायावती के लिए यह नतीजे अपमानजनक थे. पर उन्होंने हार नहीं मानी. 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अप्रैल 2012 में सबसे पहले उन्होंने सभी 80 टिकट घोषित कर दिए. इनमें 19 मुस्लिम, 21 ब्राम्हण, 15 पिछड़ों के अलावा आठ ठाकुरों को टिकट दिए. बाकी बची 17 आरक्षित सीटों पर दलित खड़े हैं. मजे की बात यह है कि आरक्षित 17 सीटों में से 1999 में बीएसपी ने चार, 2004 में पांच और 2009 में सिर्फ दो सीटों पर ही जीत दर्ज की. बसपा का कोई नेता इस पर बात नहीं करता. फिर भी मायावती का हौसला पस्त नहीं हुआ और इस चुनाव में भी बीएसपी यूपी के अलावा दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव लड़ रही है.
मायावती की सोशल इंजीनियरिंग
यूपी में दलित आबादी 22 फीसदी है. दलित वोटों को मन मुताबिक एकमुश्त किसी की भी झोली में डालने की कला में माहिर मायावती ने पश्चिमी यूपी में आठ मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं जहां की 18 सीटों पर 30 से 39 फीसदी तक मुस्लिम आबादी है. इसका उसे फायदा होता भी दिख रहा है जहां मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बीजेपी के मुकाबले बीएसपी ही अपनी मजबूत दावेदारी दिखा रही है. हालांकि इन 18 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने 11 और कांग्रेस ने छह मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. पिछले चुनावों में मायावती ने ब्राह्मण दलित गठजोड़ की जिस सोशल इंजीनियरिंग को जोर शोर से हवा दी थी उसमें इस बार मुस्लिमों को भी शमिल कर लिया है.
बीएसपी कभी अपना घोषणा पत्र जारी नहीं करती. इसके राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि वोटरों को रिझाने के लिए दूसरी पार्टियों की तरह बीएसपी झूठे वादों वाले घोषणा पत्र में विश्वास नहीं करती. उनके मुताबिक बीएसपी की प्राथमिकताएं "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" की नीति पर आधारित हैं. बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर दलित ब्राह्मण और दलित मुस्लिम भाईचारा कमेटियों को बीएसपी की यूएसपी कहे जाने पर मुस्कुराते हैं. कहते हैं कि हमारी पार्टी के अलावा किसी ने ब्लाक से लेकर मजरे तक समाज को जोड़ने का काम नहीं किया. बीएसपी नेता श्रीरात क्रांतिकारी बताते हैं कि हम लोग गांव गांव हमेशा काम करते रहते हैं जबकि दूसरे दल केवल चुनाव में ही दिखते हैं.
रिपोर्ट: एस वहीद, लखनऊ
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन