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समाज

महिलाओं के बिना अधूरा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

१८ दिसम्बर २०१८

टेक्नोलॉजी की दुनिया में महिलाओं की कमी से भारी गड़बड़ हो रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से बनने वाले प्रोडक्ट्स ठीक से काम नहीं कर रहे हैं.

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तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/McPHOTO

टेक्नोलॉजी की दुनिया में औरतों के लिए जगह बनाना हमेशा से मुश्किल रहा है और खास तौर से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में. इस बात का अंदाजा इस साल के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सबसे बड़े सम्मेलन से लगाया जा सकता है. इसमें महिला स्पीकर और लेखकों की भागीदारी की कमी और सम्मेलन के नाम पर काफी विवाद हुआ. न्यूरल सूचना संसाधन सिस्टम का वार्षिक सम्मेलन और कार्यशाला, जिसे पहले NIPS के नाम से जाना जाता था वह इस साल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. विवाद के बाद मॉन्ट्रियाल में हुए सम्मेलन का नाम थोड़ा सा बदल के NeurIPS कर दिया गया. मगर जो परेशानियां पहले से थीं वो खत्म नहीं हुई हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में केवल 20 प्रतिशत या उसे भी कम महिलाएं इंजीनियरिंग और कंप्यूटिंग से जुड़े काम करती हैं. और एआई के क्षेत्र में ये संख्या और भी कम है. स्टार्टअप इनक्यूबेटर एलिमेंट एआई का एक आकलन बताता है कि एआई के जगत में केवल 13 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं. और इसकी वजह से सिर्फ रोजगार संबंधी चुनौतियां सामने नहीं आ रही हैं. एआई और मशीन लर्निंग जो आत्म-प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल होते हैं, उनमें महिलाओं का नजरिया डालना जरूरी है.

हैना वालच माइक्रोसॉफ्ट में रिसर्चर हैं. वह सम्मेलन में वरिष्ठ कार्यक्रम अध्यक्ष भी हैं. उनका कहना है कि "मशीन लर्निंग में जितनी विविधता होगी हम उतने बेहतर प्रोडक्ट बना सकेंगे जो भेदभाव ना करें." एआई सिस्टम डाटा के विशाल भंडार से पैटर्न की तलाश करता है. जैसे हम अपने वॉइस असिस्टेंट से क्या कहते हैं और अपने सोशल मीडिया पर किस तरह की फोटो डालते हैं, इन सबको देखकर एआई अपना विश्लेषण तैयार करता है. और फिर सिस्टम भी यूजर के लिंग के मुताबिक बर्ताव करने लगता है.

इस मामले में महिलाओं की बहुत कम भागीदारी से कई तरह की गलतियां सामने आ रही हैं. कुछ समय पहले ही माइक्रोसॉफ्ट के एक चैटबॉट ने सेक्सिस्ट और नस्ली टिप्पणी की थी. गूगल ने बताया कि उनके एक परीक्षण में जिसमें वो अपने ईमेल में ऐसी सुविधा देना चाहते थे जिससे वह पहले बता दे कि कोई क्या लिखना चाहता है, उसमें भी लिंग संबंधी भेदभाव वाली समस्याएं देखी गईं. गूगल के मुताबिक उनका एल्गोरिदम पहले से धारणा बना चुका था कि अगर कोई नर्स लिखे तो एल्गोरिदम मान लेता था कि वो महिला ही होगी और अगर इंजीनियर लिखा जाए तो वह पुरुष ही होगा. कंपनी ने बताया कि इस सुविधा को मई में शुरू करने से पहले कंपनी को लिंग से जुड़े सारे सर्वनामों को को हटाना पड़ा.

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तस्वीर: imago

कई रिसर्चर और प्रोडक्ट डिजायनर इस चुनौती पर काम कर रहे हैं. मगर वालच का कहना है कि, "इतना महत्वपूर्ण सम्मेलन जिसमें नई खोज के बारे में बात होती है और लोगों को नौकरी के लिए चुना जाता है, उसका एक अजीब सा नाम बदलकर कोई खास फायदा नहीं हुआ."

एनवीडिया में मशीन-लर्निंग की निदेशक एनिमश्री आनंदकुमार लंम्बे समय से इस सम्मेलन में भाग लेती रही हैं, उनका कहना है, "नाम बदलने से कई ऐसे मुद्दे जो औरतों और अल्पसंख्यकों से जुड़े थे, वो सामने आ गए हैं." सम्मेलन का नाम और बड़ी मुश्किल तब बन गया जब गूगल, एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट और फेसबुक जैसी कपनियां सम्मेलन में पैसा लगाने लगी और हिस्सा भी लेने लगी. दूसरी तरफ सम्मेलन में औरतों और कम जाने माने गुटों को ज्यादा बढ़ावा दिया जाने लगा.

सम्मेलन में शिरकत करने वाले अधिकारियों ने माना कि पिछले सम्मेलनों में कुछ असंवेदनशील घटनाएं हुई हैं और इसीलिए इस साल उत्पीड़न, डराने-धमकाने और यौन उत्पीड़न जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं. मगर अक्टूबर तक सम्मेलन का नाम नहीं बदला गया था. नाम बदलने से पहले एक सर्वेक्षण किया गया, जिसमें दो हजार लोगों से बात की गई. ये वो लोग थे जो सम्मेलन में हिस्सा लेते रहे हैं. इस सर्वेक्षण में भाग लेने वालों में पुरुषों की हिस्सेदारी ज्यादा थी और उन्होंने कहा कि नाम बदलने से उन्हें कोई परेशानी नहीं है. नाम बदलने के लिए आनंदकुमार ने ट्विटर पर एक हैशटैग भी शुरू किया ताकि सम्मेलन के नेताओं पर दबाव बनाया जा सके.

कैथरीन हेलर एक ड्यूक प्रोफेसर हैं और गूगल की शोधकर्ता भी. उनका कहना है, "क्षेत्र के कुछ दिग्गजों के समर्थन से भी मदद मिली." गूगल एआई के प्रमुख जेफ डीन ने एक ट्वीट में कहा कि "बहुत से लोगों को सम्मेलन के नाम की वजह से पहले ही असुविधा हो चुकी है."

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तस्वीर: Colourbox/Maxxppp/AltoPress/S. Olson

सम्मेलन के बोर्ड ने बात मानते हुए 16 नवंबर को सम्मेलन के नए संक्षिप्त नाम NeurIPS का एलान किया. सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले लोगों से कहा कि "इस नाम का सम्मान करें और फिर से अपने काम पर ध्यान देना शुरू करें." आयोजकों ने सम्मेलन के लिए नई वेबसाइट बनाई, नए साइन और पुस्तकें छापी और नए लोगो बनाने के लिए एक ब्रांडिंग कंपनी से डील भी की. अभी तक ये सारा काम खत्म नहीं हुआ है. आयोजकों ने और भी सुविधाएं जैसे, बच्चों की देखभाल करने के लिए जगह और ज्यादा पैनल बनाए हैं. यहां पूर्वाग्रह और समावेशन पर चर्चा की जाएगी. इस सबसे प्रेरित होकर आनंदकुमार ने ट्वीट किया कि "उन्हें पहली बार इंडस्ट्री का हिस्सा होने की भावना आ रही है." उन्होंने ये भी कहा कि "हमें उम्मीद है कि इससे इंडस्ट्री में शिष्टाचार भी वापस आएगा."

हीथर एम्स वर्साचे एआई स्टार्टअप न्यूरला की सह-संस्थापक हैं. उनका कहना हैं कि "रिब्रांडिंग करने से मदद मिलेगी और युवा महिलाओं को आगे आने का हौसला मिलेगा. जितना किया गया है वह काफी नही है और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरे समाज को दर्शा सके और सिर्फ एक छोटे से गुट तक न सिमट जाए."

वर्साचे ने यह भी कहा, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जो टेक्नोलॉजी बनती है वो वास्तविक दुनिया से सिखती है और निर्णय लेती है. इसीलिए ये जरूरी है कि ये टेक्नोलॉजी विचारों की विविधता का प्रतिनिधित्व करे.'

एनआर/ओएसजे  (एपी)