महिलाओं का अपना बैंक
२ अक्टूबर २०१३भारतीय महिला बैंक की कर्मचारी भी ज्यादातर महिलाएं होंगीं. बैंक में केवल महिलाएं खाता खोल सकेंगी और उन्हें आसानी से कर्ज भी मिल सकेगा. महिला खाता धारकों के लिए बीमा और पेंशन जैसी सेवाएं भी होंगीं. 2013 में बैंक नई दिल्ली के अलावा छह और शहरों में अपनी शाखाएं खोलेगा.
महिलाओं का सशक्तिकरण
भारत में नेशनल अलायंस फॉर वीमेन की उप प्रमुख पैम राजपूत कहती हैं, "भारत में ज्यादातर परिवारों में महिलाओं को गृहस्थी की वित्तीय योजना से अलग रखा जाता है. अब भी पुरुष घर का पैसा संभालते हैं. रुढ़िवादी इलाकों में रह रही महिलाओं को बैंक जाने में दिक्कत होती है जहां उन्हें पुरुष कर्मचारियों से बात करनी पड़ती है."
संयुक्त राष्ट्र के कई शोधों में पता चला है कि अगर महिलाएं कमाने लगें तो परिवार में उनका स्तर बढ़ता है. इससे देश को भी फायदा होता है. 2012 के विश्व बैंक के एक सर्वे के मुताबिक भारत में केवल 26 फीसदी महिलाओं के पास अपना बैंक खाता है. ग्रामीण भारत में यह संख्या और भी कम है. यहां रोजगार के नाम पर मजदूरी करने वाली महिलाएं अकसर पंजीकृत भी नहीं हैं.
देश की 35 फीसदी महिलाएं अब भी साक्षर नहीं हैं. पैम राजपूत कहती हैं, "वह एक फॉर्म भी नहीं भर सकतीं. ऐसे मामलों में बैंक को अपने ग्राहक तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए." राजपूत यह भी मानती हैं कि अगर महिला बैंक दूसरे वित्तीय संस्थाओं से जुड़े और नेटवर्क बनाए, तो यह ज्यादा कारगर साबित हो सकता है.
वोट बैंक को मनाने की कोशिश
भारत सरकार का कहना है कि महिलाओं के विकास के लिए वह इस प्रोजेक्ट पर करीब 14 करोड़ डॉलर का निवेश कर रही है. महिला बैंक, महिला विकास कार्यक्रमों में से एक है. नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जयंती घोष कहती हैं कि यह राशि बहुत कम है, "सरकार कहीं एक इमारत बनाकर कह रही है, देखो महिलाओं, अब तुम्हारे पास अपना बैंक है."
घोष मानती हैं कि बलात्कार की ढेरों घटनाओं के बाद सरकार लोगों को बताना चाहती है कि वह महिला सशक्तिकरण के लिए कुछ कर रही है. घोष कहती हैं कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले ये महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है.
साथ ही वो चेतावनी देते हुए कहती हैं, ऐसा बैंक महिलाओं को मुख्यधारा से और अलग करेगा, "इस बैंक का मतलब ये कहना है कि महिलाएं मुख्यधारा का हिस्सा नहीं हैं." महिलाओं को ज्यादा अधिकार देने के लिए बैंकों के अलावा और भी रास्ते हैं. घोष कहती हैं बैंक से महिलाओं की वित्तीय योजना बिलकुल अलग हो जाएंगी और वो समाज से और ज्यादा कट जाएंगी.
रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी