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महिला अधिकार पर राजनीति की मार

२ जनवरी २०१३

दिल्ली बलात्कार कांड ने भारत में महिला अधिकारों के मुद्दे को एक बार फिर भड़का दिया है और इस बात की मांग होने लगी है. भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध होते हैं और सत्ता में उनकी भागीदारी गिनती की है.

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तस्वीर: dapd

प्रीति जोशी ने जब दिल्ली बलात्कार कांड के बारे में सुना और जाना कि इसके विरोध में लोग इंडिया गेट पर प्रदर्शन करने जमा हो रहे हैं, तो वह भी इसमें शामिल हो गई. यह फैसला करते हुए 21 साल की छात्रा जोशी को ज्यादा परेशानी नहीं हुई. दिल्ली में हुई इस घटना के बाद जिस तरह से लोगों की भीड़ उमड़ी है, उसने नेताओं के होश उड़ा दिए हैं. शायद यह पहला मौका है, जब कोई चुनाव महिला अधिकारों के मुद्दे पर लड़ा जा सकता है. भारत में अगले साल 2014 में आम चुनाव होने हैं.

लेकिन पक्के तौर पर यह कहना भी जल्दबाजी होगा. भारत में सबसे ज्यादा वोटर गांवों में रहते हैं, जिनके लिए बुनियादी चीजें ही पूरी नहीं पड़तीं, उनके लिए महिला अधिकारों की चर्चा दूर की कौड़ी लगती है. सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी कहती हैं, "गांव के लोगों को बुनियादी विकास के बारे में ज्यादा चिंता रहती है."

लेकिन शहर वालों के लिए आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. दिल्ली में पढ़ाई कर रही प्रीति जोशी कहती हैं, "मुझे लगता है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं, जहां हमारी आवाज का महत्व है. नेताओं को चाहिए कि वह बिजली, पानी और सड़क से आगे की हमारी मांगों को सुनें."

महिलाओं के खिलाफ अपराध

भारत हमेशा से एक पुरुष प्रधान देश रहा है, जहां औरतों के खिलाफ अपराध आम बात हैं. बलात्कार के अलावा दहेज हत्या, तेजाब फेंकना, ऑनर किलिंग और महिला भ्रूण हत्या के मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन दिल्ली के बलात्कार कांड की वीभत्सता ने लोगों के मन में गुस्सा भर दिया है, जहां एक 23 साल की छात्रा का चलती बस में छह लोगों ने बलात्कार किया और उसे इस कदर जख्मी कर दिया कि अस्पताल में दो हफ्ते तक संघर्ष के बाद उसने दम तोड़ दिया.

Gruppenvergewaltigung schockiert Indien
तस्वीर: dapd

कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी का कहना है, "इस छात्रा की मौत ने उस घाव पर नमक छिड़क दिया है, जो बरसों से खुला हुआ है. सामाजिक दबाव की वजह से महिलाएं चुप हो जाया करती थीं लेकिन अब समय बदल गया है." उनका कहना है कि शायद यह पहला मौका है, जब नेता महिलाओं को भी वोट के लिए अहम समझ रहे हैं.

सरकार से नाराजगी

सरकार ने जिस तरह से इस मामले से निपटा, उसकी वजह से भी भारत के लोग गुस्से में हैं. लोगों ने सड़क पर उतर कर अपना विरोध जताया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस मुद्दे पर बयान देने में हफ्ते भर का वक्त लग गया और उनके बयान से भी लोग शांत नहीं हुए. सिंह ने कहा, "हम लोग बिना किसी देरी के न सिर्फ इस मामले की जांच करेंगे, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा के दूसरे उपाय भी करेंगे." हालांकि सरकारी सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री सिंह अपनी तरफ से कदम उठाने से पहले गृह मंत्रालय और दिल्ली सरकार के कदमों का इंतजार करना चाहेंगे.

इस पूरे मामले में राहुल गांधी नदारद रहे. कांग्रेस उन्हें 2014 का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताता है और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसी स्थिति में राहुल गांधी को इस मुद्दे पर खुल कर सामने आना चाहिए था. लेकिन उन्होंने अपना पहला बयान तब दिया, जब 13 दिन के संघर्ष के बाद छात्रा की मौत हो गई. जानकार कहते हैं कि यह दिखाता है कि नेता किस भुलावे में हैं. राजनीतिक विश्लेषक स्वपन दासगुप्ता ने अपने कॉलम में लिखा, "एक बात बिलकुल साफ है कि भारत का राजनीतिक धड़ा इस प्रदर्शन से हक्का बक्का है. गैर राजनीतिक लोग बिना किसी नेता के सड़कों पर उतर आए हैं."

मुश्किल है असर

हालांकि अभी से यह कहना मुश्किल है कि इसका राजनीति पर क्या असर पड़ेगा. पिछले साल भारत ने ऐसा ही गुस्सा सड़कों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ देखा था, जब अन्ना हजारे ने लोगों को लामबंद किया था. लेकिन कुछ समय बाद यह प्रदर्शन खत्म हो गया.

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तस्वीर: RAVEENDRAN/AFP/Getty Images

महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत में बरसों में महिलाओं के लिए कानून हैं लेकिन उन पर ठीक ढंग से अमल नहीं हो रहा है. एक मुश्किल यह भी है कि भारतीय संसद के ज्यादातर सदस्य बुजुर्ग पुरुष हैं और जहां महिलाओं की सही भागीदारी नहीं है. भारत में स्थानीय निकायों में महिलाओं को भले ही आरक्षण मिल गया हो लेकिन संसद में उनकी संख्या बस 10 फीसदी से कुछ ज्यादा है. भारत 145 देशों की सूची में 110वें नंबर पर है. जीनिवा की इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन की इस सूची में पाकिस्तान भी भारत से ऊपर है.

भारतीय संसद में पिछले 18 साल से महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल लटका पड़ा है. बीजेपी की सांसद निर्मला सीतारमण का कहना है, "राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण को देख कर टिकट देती हैं." महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टियों ने उन उम्मीदवारों तक को टिकट दिया है, जिन पर बलात्कार के आरोप रहे हैं. भारत में छह विधायकों पर बलात्कार के आरोप हैं, जबकि दो सांसदों सहित 36 जनप्रतिनिधियों (विधायक और सांसद) पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले हैं.

एजेए/एमजे (रॉयटर्स)

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