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मेडिकल पाठ्यक्रम से 'टू फिंगर टेस्ट' को हटाने का रास्ता साफ

क्रिस्टीने लेनन
८ मई २०१९

विवादास्पद वर्जिनिटी टेस्ट या टू फिंगर टेस्ट को महाराष्ट्र में मेडिकल के पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है. महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के पाठ्यक्रम पैनल ने मेडिकल के पाठ्यक्रम से इसे हटाने की अनुमति दे दी है.

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Spanien |  Eine Demonstrantin mit einem feministischen Symbol im Gesicht
तस्वीर: imago/ZUMA Press/J. Merida

'टू फिंगर टेस्ट' को अवैज्ञानिक और महिला विरोधी बता कर इसे हटाये जाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी. चिकित्सा शिक्षा बोर्ड ने आपत्तियों और सुझावों का संज्ञान लेते हुए वर्जिनिटी टेस्ट या टू फिंगर टेस्ट की पढ़ाई को पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश कर दी है. अब तक वर्जिनिटी टेस्ट एमबीबीएस द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में शामिल रहा है.

क्या होता है टू फिंगर टेस्ट

टू फिंगर टेस्ट यानी टीएफटी के माध्यम से महिलाओं का कौमार्य परीक्षण किया जाता है. यानी इस टेस्ट के जरिये यह पता लगाने की कोशिश होती है कि महिला के साथ संभोग हुआ है या नहीं. देश में प्रचलित टू फिंगर टेस्ट से बलात्कार पीड़ित महिला की योनि की जांच इस धारणा के साथ की जाती है कि संभोग के परिणामस्वरूप इसमें मौजूद हाइमन यानी यौन झिल्ली फट जाती है. अंदर प्रवेश की गई उंगलियों की संख्या से डॉक्टर अपनी राय देता है कि महिला की सेक्स लाइफ सक्रिय है या नहीं. योनि के लचीलेपन से यह पता लगाया जाता है कि संभोग जबरन हुआ या फिर महिला की मर्जी से.

अब इस विवादास्पद टेस्ट की पढ़ाई महाराष्ट्र के मेडिकल छात्रों को नहीं करनी पड़ेगी. महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के रजिस्ट्रार डॉक्टर कालिदास डी चव्हाण का कहना है कि टू फिंगर टेस्ट को लेकर कोर्ट के आदेश के बाद इस टेस्ट को पाठ्यक्रम से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ स्टडीज ने टू फिंगर टेस्ट को पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश कर दी है. अब यूनिवर्सिटी की अकादमिक परिषद इस पर अंतिम फैसला लेगी. डॉक्टर कालिदास डी चव्हाण के अनुसार, "फैसला इसी महीने होना है, अगले सत्र से यह पाठ्यक्रम से बाहर हो सकता है.”

अवैज्ञानिक है यह टेस्ट 

सेवाग्राम स्थित महात्‍मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में फॉरेंसिक साइंस के प्रोफेसर इंद्रजीत खांडेकर का कहना है कि कई अध्ययनों से यह तथ्‍य सामने आया है कि महिलाओं की योनि में मौजूद हाइमन की जांच से पक्के तौर पर यह पता लगाना मुश्किल होता है कि उसने यौन संबंध बनाए हैं या नहीं. ऐसा भी देखा गया है कि बिना यौन संबंधों के ही हाइमन फट जाता है.

मेडिकल के साथ साथ कानून की भी पढ़ाई कर चुके डॉक्टर इंद्रजीत खांडेकर ने वर्जीनिटी और टू फिंगर टेस्ट के खिलाफ अदालती लड़ाई लड़ी है. उनका मानना है कि राज्य में हर साल मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश ले रहे लगभग 5 हजार भावी डॉक्टरों को अवैज्ञानिक टू फिंगर टेस्‍ट के बारे में बेवजह पढ़ाया जा रहा है. डॉक्टर खांडेकर ने टू फिंगर टेस्‍ट को मानव अधिकारों का उल्लंघन करने वाला और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाला बताते हुए अपनी रिपोर्ट मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस को भेजी थी. इसी रिपोर्ट के आधार पर महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस ने अब मेडिकल के पाठ्यक्रम से इसे हटाने का फैसला लिया है.

खांडेकर की रिपोर्ट के अनुसार वर्जिनिटी टेस्ट कोई उपयोगी क्लीनिकल टूल नहीं है और इससे महिला को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से परेशानी होती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह टेस्ट योनि के रास्ते संभोग और इसके इतिहास के बारे में निर्णायक साक्ष्य नहीं देता है.

महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के फैसले का स्वागत करते हुए डॉक्टर हिमांशु शर्मा कहते हैं कि देश के बाकी राज्यों को भी वर्जीनिटी टेस्ट को मेडिकल पाठ्यक्रम से बाहर कर देना चाहिए.

टू फिंगर टेस्ट पर पांबदी

टू फिंगर टेस्ट से रेप पीड़ित महिलाओं को होने वाले मानसिक कष्ट को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में इस पर रोक लगा दी थी. अदालती आदेश के बाद देश में महाराष्ट्र पहला राज्य था जिसने अपने यहां टू फिंगर टेस्ट पर पाबंदी लगाई. डॉक्टर हिमांशु शर्मा कहते हैं, "मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के बाद बहुत से ऐसे तरीके हैं जिनसे रेप विक्टिम को न्याय दिलाया जा सकता है." वैसे, रोक के बावजूद बावजूद देश के कई राज्यों में इस टेस्ट के जारी रहने की रिपोर्टें आती रहती हैं.

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