महाराष्ट्र और हरियाणा में सत्ता की जंग जारी
२१ अक्टूबर २०१९महाराष्ट्र की विधानसभा में 288 सीटें हैं. 2014 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. बीजेपी को सबसे अधिक 122 सीटें मिली थीं और 63 सीटों साथ दूसरे नंबर पर थी शिव सेना. राज्य की राजनीति पर कभी हावी रही कांग्रेस को सिर्फ 42 सीटें मिलीं थीं और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के खाते में सिर्फ 41 सीटें आई थीं.
बीजेपी और शिव सेना ने मिल कर गठबंधन की सरकार बनाई और कई चुनौतियों के बीच अपना कार्यकाल पूरा किया. पर इस पूरे कार्यकाल के दौरान गठबंधन के बावजूद दोनों पार्टियों के बीच परस्पर प्रतिस्पर्धा भी रही. शिव सेना ने कई बार बीजेपी की नीतियों की आलोचना की और गठबंधन तोड़ देने की धमकी भी दी, लेकिन धमकी पर कभी अमल नहीं किया. इस बार दोनों पार्टियां गठबंधन में लड़ रही हैं और महाराष्ट्र की जनता से पिछली बार दिए हुए जनादेश को दोहराने करने की अपील कर रही हैं. इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होगी की इस बार राज्य के मतदाता और विशेष रूप से दोनों पार्टियों के अपने अपने समर्पित मतदाता फिर से इस गठबंधन में अपना विश्वास व्यक्त करते हैं या नहीं.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए ये व्यक्तिगत चुनौती भी है क्योंकि बतौर मुख्यमंत्री ये उनका पहला कार्यकाल था और इस बार का जनादेश उनकी सरकार के प्रदर्शन के अलावा उनके अपने नेतृत्व पर भी मत-संग्रह होगा.
विपक्ष के लिए चुनौती सिर्फ सत्तारूढ़ गठबंधन को हराने की ही नहीं, बल्कि अपनी चुनावी उपस्थिति को बनाए रखने की भी है. पिछले विधान सभा चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग 18% था और एनसीपी का उस से थोड़ा और कम. बीते पांच वर्षों में दोनों पार्टियों के कई छोटे-बड़े नेता बीजेपी भी शामिल हुए.
दल बदलने की पराकाष्ठा ही हो गई जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राधाकृष्ण विखे-पाटिल, जो विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष थे, ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. उन्हें कुछ ही दिन बाद फडणवीस सरकार में मंत्री बना दिया गया था.
एनसीपी के कई शीर्षस्थ नेताओं पर जांच एजेंसियों ने भ्रष्टाचार के कई मुकदमे लगा रखे हैं और इनका इस्तेमाल बीजेपी और शिव सेना के नेताओं ने अपनी चुनावी रैलियों में खूब किया. इन इल्जामों को झूठा साबित करना और अपनी छवि को जनता के बीच बनाए रखना पार्टी के लिए एक गंभीर चुनौती है.
वहीं हरियाणा विधानसभा में 90 सीटें हैं. यहां पिछले चुनावों में बीजेपी ने 47 सीटें जीत कर राज्य में पहली बार सरकार बनाई. फडणवीस की ही तरह मनोहर लाल खट्टर पहली बार मुख्यमंत्री बने. महाराष्ट्र की ही तरह यहां भी उनकी सरकार के प्रदर्शन के साथ साथ उनके अपने नेतृत्व पर भी मत डाला जा रहा है.
हरियाणा में कभी सत्ता पर हावी रही कांग्रेस की जमीन सिमट रही है. 2014 में कांग्रेस 15 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर थी. उसका वोट प्रतिशत भी बीजेपी के 33 प्रतिशत के मुकाबले 20.4 प्रतिशत था. यहां भी पार्टी में नेतृत्व का घोर संकट है और राज्य की पार्टी इकाई पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर हूडा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा के अलग अलग खेमों में बंटी हुई है. इतने विभाजनों के साथ पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है ये देखना होगा.
बीजेपी के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की इंडियन राष्ट्रीय लोक दल (आईएनएलडी) भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. आईएनएलडी को 2014 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से चार ज्यादा सीटें मिली थीं और वोट प्रतिशत भी कांग्रेस से ज्यादा 24.1 प्रतिशत था. हालांकि इस बार आईएनएलडी खुद भी एक नई चुनौती का सामना कर रही है.
चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी से अलग हो कर एक नई पार्टी, जननायक जनता पार्टी, बनाई है और 88 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. नतीजे आने पर ही पता चलेगा कि नई पार्टी आखिर किस का नुकसान कराएगी.
इस बीच उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 11 सीटों समेत कई राज्यों में उपचुनाव भी हो रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन 11 में से नौ सीटें जीती थीं. रामपुर की सीट एसपी और जलालपुर सीट पर बीएसपी ने जीत दर्ज की थी. इस बार बीजेपी अपने सहयोगी अपना दल (एस) के साथ चुनाव लड़ रही है. अपना दल (एस) ने प्रतापगढ़ सीट पर उम्मीदवार उतारा है.
एसपी ने आरएलडी के लिए अलीगढ़ की इगलास सीट छोड़ी थी, लेकिन उम्मीदवार का नामांकन खारिज हो गया. अब एसपी के सुधाकर सिंह घोसी में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सियासी मैदान में हैं. वहीं, बीएसपी और कांग्रेस ने अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए हैं.
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