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मल्टी कल्टी जर्मन फुटबॉल टीम

११ जुलाई २०१०

जर्मन समाज बदल रहा है. इसकी एक मिसाल देश की मौजूदा फुटबॉल टीम में भी देखने को मिलती है. इस टीम में आप्रवासी मूल के कई खिलाड़ी हैं जो देश की सांस्कृतिक बहुलता प्रतीक हैं.

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23 में से 11 खिलाड़ी विदेशी मूल केतस्वीर: AP

यह टीम जर्मनी में आकर बसे लोगों को प्रेरणा देती है कि मेहनत करें तो वे भी जर्मनी में कुछ भी हासिल कर सकते हैं. जर्मन समाज में आप्रवासियों के घुलने मिलने के लिए देश की सरकार की प्रभारी मारिया ब्रोमर कहती हैं कि यह प्रक्रिया व्यक्ति स्तर पर शुरू होनी चाहिए. "इसका मतलब है कि यहां रहने वाले हर किसी की यह जिम्मेदारी है कि बात बने. और गोल होने के अलावा फुटबॉल में और क्या होता है. जाहिर है कि गोल बहुत अहम है. देखने में अच्छा भी लगता है, लेकिन मैं समझती हूं कि फुटबॉल में टीम भावना सीखी जा सकती है. आप ईमानदारी सीख सकते हैं. एक दूसरे का सम्मान करना सीखते हैं. यानी विश्वास का एक माहौल बनता है. और मेरी राय में समाज में मेलजोल के लिए विश्वास बेहद जरूरी है."

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तस्वीर: AP

विदेशी मूल के खिलाड़ी

जर्मन राष्ट्रीय टीम में शामिल 23 खिलाड़ियों में से 11 ऐसे हैं जिनका जन्म जर्मनी में नहीं यानी दूसरे देश में हुआ है. या उनके माता पिता बाहर से आकर जर्मनी में बसे हैं. और यह टीम जब गोल करती है तो उनके चाहने वाले सब मिलकर नाचते हैं, भले ही वे जर्मन हो या फिर आप्रवासी मूल के लोग. ग्युल केसकिनलर जर्मन फुटबॉल संघ में आप्रवासियों को जोड़ने वाले विभाग के प्रभारी हैं. उनके लिए सबसे जरूरी यह है कि युवा खुद आगे बढ़े. "मैं कहना चाहता हूं कि निकल पड़ो. क्लब में जाओ. पार्टी में जाओ. जहां तुम हाथ बंटा सकते हो, जिम्मेदारी निभा सकते हो. यह कहना बेकार है कि उसने ऐसा किया, और उसने ऐसा नहीं किया. अगर जिंदगी अपने हाथ में लेनी है तो तुम्हे खुद उसके लिए जिम्मेदार बनना पड़ेगा. "

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म्यूलर के साथ जेरोम और खदीरातस्वीर: AP

ग्युल केसकिनलर के लिए टीम का हिस्सा बनना सबसे महत्वपूर्ण है. "हमारी राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी इस सिलसिले में सबसे बेहतरीन मिसाल हैं. उनके जरिए हम साफ साफ देख सकते हैं कि जर्मनी तभी जीत सकता है, मजबूत हो सकता है, अगर हम एक साथ जुट जाएं. इसी को टीम कहते हैं."

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तस्वीर: dpa

कई उदाहरण

लेकिन सिर्फ राष्ट्रीय टीम में ही यह बात देखने को नहीं मिलती है. विभिन्न स्तरों पर इसकी मिसाल मिलती है. 22 साल की तुर्क मूल की सिनेन तुराच सेल्स गर्ल के तौर पर ट्रेनिंग ले रही हैं. लेकिन साथ ही वह कई साल से फुटबॉल की रेफरी हैं और आप्रवासियों के साथ मेलजोल के लिए जर्मन फुटबॉल संघ की टीम में उसे भी शामिल किया गया है. वह अपने इलाके में फुटबॉल खेलती थी. फिर उसकी दोस्त के पिता ने एक दिन उससे पूछा कि क्या वह रेफरी बनना चाहेगी. "उनका कहना था – तुम्हे फुटबॉल की समझ है. दौड़ सकती हो. और नियम, वह हम देख लेंगे. फिर उन्होंने मेरा नाम रजिस्टर कराया. रेफरी की परीक्षा दी. यूथ टीम में रेफरी के तौर पर काम भी किया. ऐसे ही मामला धीरे धीरे आगे बढ़ता गया. मिसाल के तौर पर वीकेंड्स के दौरान कोर्स भी करने पड़े."

सिनेन चाहती है कि जर्मनी के फुटबॉल मैदान में जर्मन ही बोली जाए. क्योंकि यह भी विभिन्न समुदायों को आपस में जोड़ने में मदद करेगी. क्या कभी मुश्किलें भी सामने आई हैं. "पत्रकारों ने कई बार मुझसे पूछा कि क्या मुझे परेशानी होती है जब किसी जर्मन टीम के खिलाफ कोई तुर्क टीम हो. कई बार ऐसे मौके आए, जब मुझे लगा कि अब कुछ होने वाला है, लेकिन आखिरकार सब कुछ अमन चैन से निपट गया. कभी कोई मुसीबत सामने नहीं आई."

रिपोर्टः डी डब्ल्यू/उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः आभा एम