मलेशिया को किस बात का डर सता रहा है?
२१ अक्टूबर २०१९मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने सोमवार को कहा कि निर्यात पर निर्भर उनके देश की अर्थव्यवस्था को चीन, अमेरिका के बीच बढ़े कारोबारी जंग के नतीजे में कारोबारी प्रतिबंधों और बढ़ते संरक्षणवाद से नुकसान हो सकता है. मलेशिया के खिलाफ भारत भी कुछ कदम उठा सकता है.
मलेशियाई प्रधानमंत्री ने जिन प्रतिबंधों की आशंका जताई है उसके स्रोत के बारे में कुछ नहीं बताया है. हालांकि उन्होंने कहा कि वह निराश हैं क्योंकि मुक्त व्यापार की वकालत करने वाले अब "बड़े पैमाने" पर कारोबार बाधित करने में जुटे हैं. चीन और अमेरिका की कारोबारी जंग की ओर इशारा करते हुए उन्हेंने कुआलालंपुर में एक प्रेस काफ्रेंस में कहा, "दुर्भाग्य से हम बीच में फंस गए हैं. आर्थिक रूप से हम दोनों अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े हैं और भौतिक रूप से हम भौगोलिक कारणों से दोनों के बीच फंस गए हैं. इस तरह की बातें कही जा रही हैं कि हमारे ऊपर भी प्रतिबंध लग सकता है."
अमेरिका और चीन की लड़ाई
मलेशिया से निर्यात के लिए तीन सबसे बड़े ठिकानों में दो तो अमेरिका और चीन ही हैं. तीसरा ठिकाना सिंगापुर है. दो बड़े देशों के टकराव के असर को कम करने के लिए मलेशिया अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने में जुटा है. मलेशियाई प्रधानमंत्री ने शक्तिशाली देशों के दबंगई की भी शिकायत की. उनका इशारा यूरोपीय देशों का मलेशिया के प्रमुख उत्पाद पाम ऑयल के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की ओर था. मलेशिया के सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ पाम ऑयल की हिस्सेदारी करीब 2.8 फीसदी है. पिछले साल कुल निर्यात का करीब 4.5 फीसदी पाम ऑयल था.
तेल के लिए मलेशिया में बड़े पैमाने पर ताड़ के पेड़ लगाए जा रहे हैं और इसके लिए जंगलों को साफ किया जा रहा है. यही वजह है कि यूरोपीय संघ और पर्यावरण की चिंता करने वाले इसका विरोध करते हैं. प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद का कहना है, "अपने ज्यादातर जंगलों को साफ करने और हानिकारक उत्सर्जन को घटाने से इनकार करने के बाद अब वो रहने की जगह और रोजगार के लिए जंगलों को साफ करने से रोक कर गरीब देशों को और गरीब बना रहे हैं." यूरोपीय संघ ने 2030 तक पाम ऑयल को अक्षय ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल से धीरे धीरे हटाने के लिए इस साल एक प्रस्ताव पास किया है.
भारत से चिंता
मलेशिया की चिंता यहीं तक नहीं है. बीते कुछ सालों में भारत उसके पाम ऑयल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है. भारत जितना तेल का आयात करता है उसमें करीब दो तिहाई हिस्सा पाम ऑयल का है. मलेशिया के पाम ऑयल बोर्ड के दिए आंकड़ों के मुताबिक इस साल के पहले नौ महीनों में भारत ने 3 करोड़ नब्बे लाख टन से ज्यादा तेल का आयात किया है. 2018 के पहले 9 महीने में आयात किए गए पाम ऑयल के मुकाबले यह मात्रा दोगुने से ज्यादा है. पाम ऑयल का आयात करने वाले देशों में दूसरे नंबर पर चीन है जिसने करीब 1 करोड़ 61 लाख टन तेल का आयात किया.
मलेशिया के लिए यह मात्रा कितनी अहम है इसे इस बात से समझ सकते हैं कि उसका कुल पाम ऑयल निर्यात इस साल अब तक करीब 14 करोड़ टन से कुछ ज्यादा है. भारत इसका लगभग 25 फीसदी आयात अकेला करता है हालांकि आने वाले वक्त में इसमें कमी होने के आसार हैं.
हाल ही में कश्मीर में भारत के उठाए कदमों का मलेशिया ने संयुक्त राष्ट्र में विरोध किया था. भारत को इस बयान से तकलीफ हुई है और आशंका है कि वह मलेशिया से तेल का आयात कम या बंद कर सकता है. बीते हफ्ते खबर आई थी कि भारतीय व्यापारी मलेशिया से तेल की खरीदारी को घटा रहे हैं. हालांकि अभी इस बारे में सरकार की ओर से कुछ नहीं कहा गया है लेकिन अनाधिकारिक तौर पर कदम उठाए जा रहे हैं. पूर्वी और मध्य एशिया के जानकार और मलय यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राहुल मिश्रा का कहना है, "पहला जवाबी कदम तो सितंबर में ही उठा लिया गया जब भारत में आयात शुल्क 5 फीसदी बढ़ाया गया. हालांकि यह घरेलू उद्योग को प्रतियोगी बनाने और इंडोनेशिया से अच्छी डील मिलने के नाम पर किया गया."
जब ज्यादातर मुस्लिम देशों ने कश्मीर के मामले पर बयान देने से खुद को रोके रखा तो मलेशिया को कश्मीर का मामला उठाने की जरूरत क्यों पड़ गई? भारत तो लंबे समय से मलेशिया को एक बहुसांस्कृतिक देश के रूप में समर्थन देता आया है. इसके जवाब में राहुल मिश्रा का कहना है, "प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद कुछ घरेलू समस्याओं का समाधान ढूंढ रहे हैं. मुस्लिम रुढ़िवादियों का समर्थन, जाकिर नाइक से नजदीकियां, और मलेशिया-पाकिस्तान के सम्बंधों में आयी नई तेजी का इसमें खासा योगदान है.”
आशंका जताई जा रही है कि भारत बिना कुछ कहे, अनाधिकारिक तौर पर या फिर किसी और बहाने से मलेशिया को तेल आयात में कमी कर अपनी नाराजगी का अहसास दिलाएगा. अमेरिका, चीन की कारोबारी जंग, यूरोपीय संघ को पर्यावरण की चिंता और उस पर से भारत की कथित नाराजगी मलेशियाई प्रधानमंत्री को चिंता में डालने की पर्याप्त वजहें नजर आ रही हैं.
रिपोर्ट: निखिल रंजन (रॉयटर्स)
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