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मलेरिया की मीठी दवाई

२० मार्च २००९

मलेरिया के लिए विकसित दवाईयां अब तक केवल बड़ों के लिए ही बनाई गई हैं. बच्चे इनके कड़वे स्वाद की वजह से इन्हें थूक देते हैं, और मलेरिया होने का ख़तरा बढ़ जाता है. लेकिन इस बीच चिकित्सक अब बच्चों की तरह सोचने लगे हैं.

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मलेरिया- अब भी जानलेवातस्वीर: DW-TV

स्विट्ज़रलैंड के दो संस्थानों ने एक ख़ास दवाई बनाई हैं - मलेरिया को ध्यान में रखते हुए . जो बच्चों को आसानी से दी जा सकती है. मलेरिया से बचने के लिए कई इलाज हैं , लेकिन ऐसी शायद ही कोई दवाई है , जो बच्चों के लिए ख़ास तौर पर बनाई गई हो . हर साल विश्व में लगभग पचास करोड़ लोगों को मलेरिया हो जाता है . इनमें से करीब 10 लाख लोगों के लिए यह बीमारी घातक साबित होती है . दक्षिण अफ़्रीका के बच्चों के लिए मलेरिया एक बहुत ख़तरनाक बीमारी साबित हो रही है, जबकि दवाईयां केवल बड़ों के लिए मिलती हैं . मतलब , छोटे बच्चों को गोली का पाउडर बनाकर दिया जा सकता है या फिर उन्हें डांट - डपट कर दवाई खिलाई जा सकती हैं . लेकिन अधिकतर बच्चे दवाई को थूक देते हैं जिस वजह से उन की मलेरिया से रक्षा नहीं की जा सकती.

Warten auf Malaria Test in Maputo
बच्चों के लिए घातकतस्वीर: AP

डॉक्टरों ने अफ्रीका के बच्चों के लिए ख़ास दवाई बनाई है . आर्टेमीसिनिन नाम के मूल औषधीय तत्व वाले इस मिश्रण को चेरी के स्वाद वाले जूस के रूप में बच्चों को पिलाया जा सकता है . ऑर्गनाईसेशन मेडिसिन्स फॉर मलेरिया , जनेवा के क्रिस हेन्शल बताते हैं , किस तरह मलेरिया की दवाई को बच्चों के लिए आकर्षक और स्वाद युक्त बनाया जा सकता है." सबसे पहले तो उसका स्वाद बुरा नहीं होना चाहिए. अब बच्चों को तो नहीं पता कि यह दवाई उन्हें बीमारी से बचाएगी . लेकिन हर बच्चे को पता चल जाता है कि उसे कुछ बहुत ही बुरे स्वाद वाली चीज़ खिलाई जा रही है. और वह इसे थूक देता है. ये दवाईयां सच में बहुत कड़वी होती हैं और बच्चे इन्हें लेने से मना करते हैं."

कोआर्टेम डिस्पेर्सिबेल नाम की यह दवाई जेनेवा के ऑर्गनाईसेशन मेडिसिन्स फॉर मलेरिया वेंचर और स्विस दवाई उत्पादक नोवार्टिस द्वारा ख़ास कर बच्चों के लिए बनाई गई है . वैसे चेरी के स्वाद वाली दवाई का ख़्याल इतना मुश्किल नहीं है , तो फिर बच्चों के लिए इस विकल्प को सोचने में इतने दिन क्यों लगे. क्रिस हेन्शल बताते हैं, "मलेरिया अब बच्चों की बीमारी है . पहले ऐसा नहीं था,मलेरिया सबको होता था . इसलिए दवाई सबके लिए एक तरह की होती थी और बड़ों को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती थी . बच्चों के बारे में बाद में सोचा गया . आजकल हम सबके लिए दवाईयां बनाते हैं , केवल सैनिकों और यात्रियों के लिए ही नहीं."

07.07.08 DW-TV Global 3000 Malaria
नई दवाईयों की ज़रूरततस्वीर: DW-TV

विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने 2007 में पहली बार बच्चों के लिए अलग दवा बनाने की ज़रूरत को पहचाना . डॉ . सू हिल नें कुछ साल पहले WHO के लिए ऐसी सूची बनाने की कोशिश की , जिसमें उन बीमारियों के नाम है , जिनके लिए खास बच्चों की दवाई को विकसित करना ज़रूरी है. डॉ. हिल का मानना है कि विकसित देशों में भी उन दवाईयों में से, जो बच्चों को दी जा सकती हैं, केवल 50 प्रतिशत का वाकई में बच्चों पर परीक्षण किया गया है . बच्चों के लिए ख़ास दवाई न होने की समस्या विकसित देशों में भी है..

Kampagne gegen Malaria in Kenia
मलेरिया के ख़िलाफ केन्या में मुहिमतस्वीर: picture-alliance/dpa

कई दवाईयां, जो बड़ों के लिए फ़ायदेमंद होती हैं, बच्चों के पेट या गुर्दों के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं. बात यह है, कि बच्चों की दवाईयों के उत्पादन से किसी भी निजी कंपनी को लाभ नहीं होता. अतः वह ऐसी दवाईयों को बनाना भी नहीं चाहती. नोवार्टिस कंपनी इस क्षेत्र में मार्गदर्शक की भूमिका निभा तो रही हैं , लेकिन कोआर्टेम डिस्पेरसिबेल को अब भी बाज़ार में नहीं ख़रीदा जा सकता. डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के टीडो श्यौन अंगेरर बताते हैं कि अफ्रीका में केवल एक तिहाई बच्चों को मलेरिया से बचाव की दवा मिलती है. इनमें से बहुत ही कम बच्चों को अपनी उम्र के हिसाब से कोई दवाई मिलती है. बच्चों को ज़्यादातर क्लेरेक्विन दी जाती है.

इस बीच इस दवाई का असर कम हो गया है और WHO इस दवाई को लेने की सलाह भी नहीं देता. डॉ. हिल कहती हैं, " मलेरिया में यह परेशानी है , कि इसके कीटाणु पर धीरे धीरे दवाई का असर घटता जाता है. इसलिए हमेशा अलग तरह की दवाईयों की ज़रूरत पड़ती है. हम चाहते हैं कि कंपनियां अलग अलग तरह की दवाईयां बाज़ार में लाएं."

जैसा कि डॉ. हिल बता रही हैं- हमें मलेरिया के लिए ही नहीं बल्कि हर बीमारी में बच्चों के लिए खास दवाईयों की ज़रूरत है . जहां तक दुनिया में कहर मचा रही व्याधियों का सवाल है , उन्हें देखते हुए दवा कंपनियों को विशेषज्ञों की मदद से बच्चों के लिए ऐसी दवाईयां बनाने की ज़रूरत है जिनका इस्तेमाल वे आसानी से कर सकें और बीमारी से निजात भी उन्हें मिल सके. और ये भी ध्यान रखा जाना ज़रूरी है कि बच्चों की दवा के दाम बड़े न हों.

रिपोर्ट :डॉयचे वेले/ मानसी

एडिटर :शिव जोशी