फ्रांसिस्को फ्रांकों की कब्र के विवाद पर बंटा स्पेन
२४ अक्टूबर २०१९पसंद करने वाले फ्रांकों को एक मजबूत ताकत के रूप में देखते हैं जिसने कई सदियों के उथल पुथल के बाद सबसे लंबे समय के लिए देश में शांति कायम किया जबकि विरोधियों के लिए वो एक निरंकुश फासीवादी हैं जिसने मुश्किलों से हासिल हुई लोकतांत्रिक आजादी को मिटा दिया. करीब साढ़े तीन दशक की तानाशाही के बाद 1975 में फ्रांको की मौत के बाद लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने की कोशिश हुई. स्पेन ने फ्रांको तानाशाही के दौर में राजनीतिक अपराध के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को माफ करने के लिए एक कानून पारित किया. 2007 में समाजवादी सरकार ने एक ऐतिहासिक कानून बनाया जिसमें उन लोगों की पहचान करने की बात थी जिन्हें फ्रांको के शासन में प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी.
अब एक दशक के बाद वही पार्टी फ्रांको के अवशेषों को वैली ऑफ द फॉलेन कंप्लेक्स से बाहर ले गई है. यह पार्टी इस जगह को उन लोगों का स्मारक बनाना चाहती है जिन्होंने, गृहयुद्ध में अपनी जान गंवाई थी. नवंबर में चुनाव होने हैं और फ्रांकों के अवशेष कब्र से निकाल कर कहीं और दफनाने की बात ने देश और संसद में दरार पैदा कर दी है. 2018 में इस मामले पर हुई वोटिंग में 176 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट दिया और दो सांसद इसके विरोध में थे लेकिन 165 सदस्यों ने इस वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया था. इसमें रुढ़िवादी पीपुल्स पार्टी और मध्य दक्षिणपंथी दल क्यूदादानोस के सदस्य शामिल थे.
कार्यवाहक प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज ने पिछले महीने कहा था, "हम अपने इतिहास के एक काले अध्याय को बंद कर रहे हैं." जबकि क्यूदादानोस पार्टी के नेता अल्बर्ट रिवेरा ने उन पर "फ्रांको की हड्डियों का इस्तेमाल हमें बांटने" के लिए करने का आरोप लगाया. आखिर कौन है फ्रांको जिसकी मौत के इतने साल बाद भी उन पर देश को बांटने के आरोप लग रहे हैं.
शुरुआती जीवन
दिसंबर 1884 में फ्रांस के उत्तर पश्चिमी इलाके में गैलिसीया के एक समुद्री खजांची के घर जन्मे फ्रांसिस्को फ्रांको ने 1936 में सेना के विद्रोह का नेतृत्व किया था. पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर पर रहे फ्रांको ने 13 साल की उम्र में मैड्रिड के पास टोलेडो इंफ्रैंट्री एकेडमी में दाखिला लिया और तीन साल बाद ग्रेजुएट होकर बाहर आए. एक सच्चे कैथोलिक के रूप में पूरी जिंदगी बिताने वाले फ्रांको ने बहुत जल्द सेना में ऊंचा ओहदा हासिल कर लिया और एक कुशल कमांडर के रूप में अपनी छवि चमका ली. यूरोप में गिने चुने लोग हैं जिन्हें फ्रांको की तरह महज 33 साल की उम्र में जनरल बनने का मौका मिला हो.
गृहयुद्ध
जुलाई 1936 में फ्रांको ने स्पेन के नियंत्रण वाले मोरक्को से सैन्य विद्रोह की शुरुआत की. विद्रोह का असर इतना ज्यादा था कि यह अगले ही दिन स्पेन की मुख्यभूमि तक जा पहुंचा. दक्षिणपंथी पार्टियों, जमींदारों, उद्योगपतियों और कुलीन वर्ग के साथ ही कैथोलिक चर्चों और रजवाड़ों के समर्थन के रथ पर सवार विद्रोहियों ने स्पेन के ज्यादातर हिस्से को अपने नियंत्रण में लेना शुरू कर दिया लेकिन मैड्रिड और कुछ दूसरे शहरों में उन्हें वामपंथी रिपब्लिकन सरकारी सेना के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. देश में गृहयुद्ध छिड़ गया और फ्रांको की भूमिका अहम हो गई. तीन साल तक चले संघर्ष ने स्पेन को यूरोप में वैचारिक टकराव की जमीन बना दिया. इसके नतीजे में करीब 5 लाख लोगों की जान गई और लोगों में विभाजन की गहरी लकीर खिंच गई.
विद्रोह शुरु होने के तुरंत बाद उसके नेता जनरल जोस संचुर्जो की एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई. इसके बाद बनी जुंटा में फ्रांको को शामिल नहीं किया गया था. हालांकि अगले ही महीने अगस्त में जब फ्रांको का दस्ता मोरक्को को पार कर मुख्य भूमि में घुसा और मैड्रिड की तरफ बढ़ा तो वह भी जुंटा में आ गए. सितंबर में विद्रोही जनरलों की सालामांका में बैठक हुई ताकि नेता का चुनाव हो सके. उस वक्त फ्रांको ने युद्धभूमि में तो अपना कौशल साबित कर ही दिया था, इसके अलावा जर्मनी के अडोल्फ हिटलर और इटली के बेनितो मुसोलिनी के साथ अच्छे संबंधों से यह उम्मीद भी जगी थी कि जरूरत पड़ने पर सैन्य सहयोग भी मिल जाएगा.
फ्रांको राष्ट्रप्रमुख बन गए और चुने हुए रिपब्लिकनों की जगह एक राष्ट्रवादी सरकार का गठन हुआ जिसे जर्मनी और इटली ने इसी साल नवंबर में मान्यता दे दी. अप्रैल 1937 में फ्रांको ने फालांगे फासिस्ट के साथ विलय कर लिया. इसके साध ही देश में "मूवमेंट" शुरू हुआ फिर देश में लागू सिंगल पार्टी सिस्टम 1975 में फ्रांको की मौत तक कायम रहा. हिटलर और मुसोलिनी से मिले सैनिक, जहाज और गोला बारुद के दम पर फ्रांको ने सोवियत समर्थित रिपब्लिकनों को परास्त कर दिया और अप्रैल 1939 में देश की सत्ता अपने हाथ में ले ली.
तानाशाही
देश में प्रतिरोध को पूरी तरफ से ध्वस्त करने के बाद फ्रांको ने मौत की सजाओं और बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डालने का अभियान शुरू किया जो अगले दशक तक चलता रहा. शासन पूरी तरह से तानाशाही का था जिसमें दूसरी पार्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और छात्रों या मजदूरों के हर तरह के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई. अकसर इन्हें रोकने के लिए हिंसा का इस्तेमाल भी किया गया.
सितंबर 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद पहले तो फ्रांको ने तटस्थता का एलान किया लेकिन जून 1940 में फ्रांस की हार के बाद खुले तौर पर नाजियों के साथ अपनी सहानुभूति दिखाई. हालांकि वो कभी भी औपचारिक रूप से सहयोगी नहीं बने लेकिन रूस में हिटलर की सेना के साथ स्पेन ने भी अपने सैनिको का एक दस्ता भेजा था और जर्मन पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों के लिए ढुलाई और दूसरी सुविधा मुहैया कराई थी.
1945 में जर्मनी की युद्ध में हार के बाद फ्रांको की सत्ता राजनीतिक और आर्थिक रुप से अकेली पड़ गई और स्पेन के लोगों के लिए बड़ी मुश्किलों का वक्त आ गया. शीत युद्ध के दौर में हालांकि फ्रांको के गैरसाम्यवादी विचारों को बहुत से लोगों ने पसंद किया. यहां तक कि अमेरिका ने 1953 में उसके लिए सहायता को मंजूरी दी और 1955 में ही स्पेन संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया. हालांकि नाटो और यूरोपीय आर्थिक समुदाय यानी ईईसी में यह 1975 में फ्रांकों की मौत के बाद ही शामिल हुआ.
1960 के दशक में जब स्पेन सैलानियों की पसंदीदा जगह के रूप में उभरने लगा तो फ्रांको की घरेलू नीतियों से दमन कम होने लगा हालांकि राजनीतिक विरोध पर अब भी प्रतिबंध था और सेंसरशिप लागू रहा.
1969 में फ्रांको ने खुआन कार्लोस को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया. खुआन स्पेन के राजा अल्फोंसो 13वें के पोते थे और 1931 में रिपब्लिकन के सत्ता में आने के बाद से ही निर्वासन में रह रहे थे. 20 नवंबर 1975 को फ्रांको की मौत हो गई. मौत के पहले जारी संदेश में फ्रांको ने सभी स्पेनवासियों से माफी मांगी थी. फ्रांको ने कहा था, "जिस तरह मैंने पूरे दिल से उन सब को माफ कर दिया जिन्होंने खुद को मेरा दुश्मन घोषित किया था...मैं मानता हूं कि स्पेन के दुश्मनों के अलावा मेरा और कोई दुश्मन नहीं है."
एनआर/एमजे(रॉयटर्स)
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