1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ममता बनर्जी के राज्य में किसानों की जान लेता आलू

प्रभाकर मणि तिवारी
२८ मार्च २०१७

कहा जाता है कि बंपर फसल देख कर किसानों के चेहरे खुशी से खिल उठते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल में ठीक इसका उल्टा हो रहा है. इस साल आलू की बंपर खेती से उनके चेहरे मुरझा गए हैं.

https://p.dw.com/p/2a64c
Bildergalerie Indien Nahrung
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

कीमतें काफी गिर गई हैं और लागत तक वसूल नहीं हो पा रही है. यानी आलू यहां किसानों की मौत की वजह बन गया है. अब तक चार आलू किसान आत्महत्या कर चुके हैं. सरकार ने सीधे आलू खरीदने का फैसला जरूर किया है. लेकिन इससे भी हालत में कोई सुधार नहीं आया. राज्य में कोल्ड स्टोरेजों की कमी ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है.

दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक

पश्चिम बंगाल देश में उत्तर प्रदेश के बाद आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. भारत में पैदा होने वाली कुल फसल में बंगाल का योगदान एक चौथाई है. यहां अबकी 1.1 करोड़ टन आलू की फसल हुई है. इसमें से घरेलू खपत 55 लाख टन है जबकि आम तौर पर पड़ोसी राज्यों को 45 लाख टन आलू बेचा जाता है. इसके बाद भी 10 लाख टन आलू बच गया है. नतीजतन कीमतें तेजी से गिर रही हैं. आलू किसानों की सहायता के लिए राज्य सरकार ने 460 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य का एलान किया है. साथ ही उसने मिड डे मील और दूसरी सामाजिक योजनाओं के लिए 28 हजार टन आलू किसानों से सीधे खरीदने का फैसला किया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "इस साल राज्य में आलू की बंपर फसल हुई है. नतीजतन किसान बेहद कम कीमत पर इसे बेच रहे हैं."

आलू उगाने वाले प्रमुख जिलों मसलन पश्चिम मेदिनीपुर, वर्दवान और हुगली में खासकर छोटे किसान कोल्ट स्टोरेज तक आलू की ढुलाई का खर्च और कोल्ड स्टोरेज का किराया चुकाने में असमर्थ हैं. नतीजतन उनको बिचौलियों के हाथों उत्पादन लागत से भी कम पर पैदावार बेचनी पड़ रही है. इस फसल की उत्पादन लागत 450 से 500 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है. लेकिन खुले बाजार में फिलहाल इसकी कीमत 380 से 430 रुपये प्रति क्विंटल है.

Bildergalerie Indien Nahrung
किसान परेशान, सरकार का घडियाली इंतजामतस्वीर: DW/P. Mani Tewari

भंडारण क्षमता की कमी

आलू कीमतें तेजी से गिरने की एक प्रमुख वजह राज्य में कोल्ड स्टोरेजों की कमी है. यहां महज 70 लाख टन आलू के भंडारण की क्षमता है. नतीजतन पूरी फसल को यहां रखना संभव नहीं है. एक आलू किसान जीवन दास कहते हैं, "अतिरिक्त आलू को रखना एक गंभीर समस्या है. नतीजतन हमें बिचौलियों के हाथों उत्पादन लागत से भी कम पर इसे बेचना पड़ रहा है." दूसरी ओर, वेस्ट बंगाल कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष पतित पावन दे कहते हैं, "यहां आलू रखने का किराया सरकार तय करती है. पड़ोसी बिहार में यह दर 2400 रुपये प्रति टन है जबकि यहां 1360 रुपये. इसी वजह से नए कोल्ड स्टोरेज नहीं बन रहे हैं. यह घाटे का सौदा है." वह कहते हैं कि सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार कर किराए को संशोधित करना चाहिए. उसी स्थिति में नए लोग कोल्ड स्टोरेज के कारोबार में आएंगे. कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि स्टोरेज क्षमता बढ़ा कर इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. दे कहते हैं, "कोल्ड स्टोरेज की स्थापना में प्रति टन क्षमता के लिए आठ हजार रुपये का निवेश जरूरी है. इसके अलावा हर सीजन में इसके संचालन पर 1250 रुपये प्रति टन का खर्च है. लेकिन 1360 रुपये प्रति क्विंटल के कम किराए के चलते इस क्षेत्र में नया निवेश नहीं हो रहा है."

आत्महत्याएं

भारी नुकसान की मार से बदहाल राज्य के आलू किसान मौत को गले लगा रहे हैं. इसी सप्ताह बर्दवान जिले में एक और किसान ने आत्महत्या कर ली. राज्य की विपक्षी राजनीतिक पार्टी सीपीएम ने दावा किया है कि बीते डेढ़ महीनों में कम से कम चार किसान आत्महत्या कर चुके हैं. लेकिन सरकार ने ऐसी किसी घटना की जानकारी से इंकार किया है. कृषि मंत्री पूर्णेंदु बसु ने यहां पत्रकारों से कहा कि उनको नुकसान के चलते किसी आलू किसान की आत्महत्या की कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि किसी के आत्महत्या करने के पीछे उसका आलू की खेती करना ही अकेली वजह नहीं होती.

बर्दवान जिले के मेमारी इलाके में आलू की खेती करने वाले चंदन पाल (40) ने भारी नुकसान और लगातार बढ़ते कर्ज से परेशान होकर कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली. सीपीएम नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "चंदन ने पचास हजार रुपये का कर्ज लेकर 2.80 एकड़ खेत में आलू की खेती की थी. लेकिन बंपर पैदावार की वजह से कीमतों में भारी गिरावट की वजह से उसकी लागत तक नहीं वसूल हो सकी. इससे वह भारी तनाव में था और इसी वजह से उसने कीटनाशक पीकर जान दे दी." इससे पहले बीते सप्ताह पश्चिम मेदिनीपुर जिले के केशपुर ब्लाक में 45 साल के एक अन्य किसान स्वपन हाजरा ने भी आत्महत्या कर ली थी. हाजरा के पुत्र इंद्रजीत कहते हैं, "मेरे पिता ने मोटे ब्याज पर कर्ज लेकर चार बीघे जमीन पर आलू की खेती की थी. लेकिन फसल की लागत तक वसूल नहीं हो सकी. उल्टे कर्ज लगातार बढ़ रहा था." इसी जिले में पहले दो अन्य आलू किसान भी आत्महत्या कर चुके हैं.

पश्चिम मेदिनीपुर जिले के सीपीएम नेता तरुण राय कहते हैं, "अगर सरकार को सचमुच किसानों की चिंता है तो उसे और अधिक मूल्य पर आलू खरीदना चाहिए. वह महज घड़ियाली आंसू बहा रही है."

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की ओर से आलू खरीद की कोई ठोस नीति नहीं बनाने और राज्य में भंडारण क्षमता नहीं बढ़ाने तक आलू की फसल इसी तरह किसानों के लिए मौत का सबब बनती रहेगी.

(सिंगूर में क्या क्या हुआ)