1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

मध्य प्रदेश में संवैधानिक संकट

चारु कार्तिकेय
१६ मार्च २०२०

मध्य प्रदेश विधानसभा में विश्वास मत कराने की जगह अध्यक्ष ने सभा को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया. बीजेपी ने अध्यक्ष के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है और तुरंत विधानसभा में विश्वास मत कराने की मांग की है. 

https://p.dw.com/p/3ZVzk
Indien Bhopal  Kamal Nath
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/B. Kinu

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो जाने से जो घटनाक्रम शुरू हुआ था उसने मध्य प्रदेश को एक संवैधानिक संकट की दहलीज पर ला खड़ा किया है. सिंधिया के पार्टी से इस्तीफे के साथ उनके वफादार माने जाने वाले कम से कम 22 कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था, जिससे मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार पर खतरा बन आया था. राज्यपाल लालजी टंडन ने विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति को चिट्ठी लिख कर सोमवार 16 मार्च को विधानसभा में विश्वास मत कराने के लिए कहा था. लेकिन सोमवार को विधानसभा में विश्वास मत नहीं हुआ. राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान शोरगुल हुआ, जिसकी वजह से अभिभाषण पूरा किए बगैर राज्यपाल को विधानसभा से चले जाना पड़ा. उसके बाद अध्यक्ष ने कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के उद्देश्य के लिए विधानसभा को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया. कमलनाथ ने राज्यपाल को चिट्ठी लिख कर यह भी कहा कि उनका विधान सभा अध्यक्ष को चिट्ठी लिखकर विश्वास मत कराने को कहना असंवैधानिक था. कमलनाथ ने यह भी कहा कि राज्यपाल अध्यक्ष के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते.

विधानसभा की गतिविधियों को लेकर राज्यपाल और अध्यक्ष के अधिकारों पर यह बहस पुरानी है. लेकिन इस विषय पर खुद सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि विधान सभा की कार्यवाही से जुड़े फैसलों में अध्यक्ष का फैसला सर्वोपरि है. बावजूद इसके, एक बार फिर यह सवाल सुप्रीम कोर्ट ही पहुंच गया है. बीजेपी ने अध्यक्ष प्रजापति के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है और तुरंत विधानसभा में विश्वास मत कराने की मांग की है. उम्मीद है कि मामले पर सुनवाई मंगलवार 17 मार्च को होगी.

मध्य प्रदेश विधानसभा में 230 सीटें हैं और राज्य में सरकार बनाने के लिए 116 सीटें चाहिए होती हैं. 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 114 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 109. दोनों में से किसी के पास अकेले बहुमत नहीं है. सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के एक विधायक, बहुजन समाजवादी पार्टी के दो और चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला था और इनके समर्थन से वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बना ली.

छह विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो चुके हैं और इस समय विधानसभा में सिर्फ 222 सदस्य हैं, जिसकी वजह से सरकार बनाने के लिए किसी भी पक्ष को 112 विधायकों का समर्थन चाहिए. कांग्रेस और बीजेपी दावा कर रही हैं कि उनके उनके पास 108 और 107 विधायक हैं. अगर सभी 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए जाएं तो तस्वीर फिर बदल जायेगी. लेकिन अब सबकी निगाहें मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर रहेंगी. 

गुजरात में भी कांग्रेस में संकट

मध्य प्रदेश के साथ साथ गुजरात में भी कांग्रेस के सामने विधायकों का संकट खड़ा हो गया है. वहां 26 मार्च को राज्य सभा की चार सीटों के लिए चुनाव होने हैं. 182 सदस्यों की गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के पास 73 विधायक थे जिनकी बदौलत पार्टी को दो सीटें जीतने की उम्मीद थी. लेकिन चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के पांच विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और अब कांग्रेस को लग रहा है कि वो एक से ज्यादा सीट नहीं जीत पाएगी. पार्टी ने अपने सभी विधायकों को गुजरात से निकाल कर जयपुर पहुंचा दिया है. पार्टी को डर है कि चुनाव से पहले कहीं और विधायक इस्तीफा ना दे दें. 

 

क्या होती है विधान परिषद और कैसे होता है गठन 

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें