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भारतीय कारोबारियों के लिये कितने अहम हैं जर्मन चुनाव

अपूर्वा अग्रवाल
१८ सितम्बर २०१७

जर्मन आम चुनावों से न केवल जर्मन आम नागरिक जुड़े हुए हैं बल्कि इंडो-जर्मन क्षेत्र में सक्रिय भारतीय कारोबारियों का एक बड़ा तबका इनपर नजर बनाये हुए है. जानते हैं जर्मनी में सक्रिय भारतीय कारोबारियों की राय.

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Symbolbild Deutschland Export
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Charisius

जर्मन चुनावों को बमुश्किल एक हफ्ते से भी कम का समय बचा है. वैश्विक राजनीति और यूरोपीय संघ में जर्मनी की बढ़ती भूमिका के चलते पूरी दुनिया की निगाहें 24 सितंबर को होने वाले आम चुनावों पर टिकी है. सीडीयू-सीएसयू और एसपीडी के बीच हो रही इस कांटे की टक्कर में न सिर्फ यहां के आम नागरिकों की दिलचस्पी है बल्कि एक बड़ा भारतीय कारोबारी तबका भी इस पर टकटकी लगाये हुए है. भारतीय कारोबारियों का एक बड़ा हिस्सा जर्मनी के साथ व्यापार में सक्रिय है. कुछ कारोबारी एसपीडी को पसंद करते हैं तो कुछ का रुझान सीडीयू-एफडीपी के गठबंधन में है.

जर्मनी में सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस के सीईओ रह चुके देबजित डी चौधरी कहते हैं, "जर्मन चुनावों में दो तरह से भारतीय हित जुड़ें हुए हैं. यहां दो वर्ग हैं, पहला वर्ग ऐसे कारोबारियों का है जो भारतीय मूल के हैं और यहां पर कारोबार जमा चुके हैं. उनके लिये प्रयत्क्ष रूप से यह चुनाव अहम हैं, लेकिन दूसरा वर्ग ऐसे कारोबारियों का है जो इंडो-जर्मन क्षेत्र में काम कर रहे हैं मसलन, निर्यातक, आयातक, सलाहकारी सेवाओं में लगे कर्मचारी. उनके लिए यह चुनाव पिछले वर्ग की तुलना में कहीं अधिक अहम है."

Deutschland Nordseeküste vor Cuxhafen | Schifffahrtsroute
तस्वीर: DW/H. Franzen

उन्होंने कहा, "इस इंडो जर्मन क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को भी दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. पहला जो कामगार तबके पर निर्भर करते हैं, वहीं दूसरा निवेश और प्रबंधन सेवाओं पर जोर देता है." देबजित के मुताबिक, कामगारों पर निर्भर तबका एसपीडी को समर्थन करता है क्योंकि एसपीडी को विदेशी कंपनियों का स्वागत करने वाला और कामगारों के लिये बेहतर माना जाता है. लेकिन निवेश और प्रबंधन सेवाओं से जुड़ा वर्ग सीडीयू-सीएसयू को पसंद करता है.

भारतीय कंपनी इन्फोबींस के जर्मनी आपरेंशस के प्रमुख अविनाश जैन कहते हैं कि जर्मन सत्ता जिस को भी मिले पूर्ण बहुमत के साथ मिले. उन्होंने कहा "मैं इस मौजूदा गठबंधन को कारोबार के लिहाज से बेहद अनुकूल नहीं मानता. किसी एक दल का सत्ता में होना ज्यादा बेहतर होता है. बेहतर होगा कि पूर्ण बहुमत के साथ या तो सीडीयू-सीएसयू अपनी सरकार बना लें या एसपीडी सत्ता में आ जाये. लेकिन अगर इन दोनों का गठबंधन दोबारा काबिज होगा तो मसले जस की तस ही रहेंगे". उन्होंने कहा कि सरकार का मौजूदा खर्च कल्याणकारी नीतियों पर अधिक हो रहा है, शरणार्थियों पर जितना खर्च हो रहा है उसका कहीं न कहीं असर कारोबार पर भी नजर आता है. उनकी राय में,  शरणार्थियों के चलते यहां वीजा प्रक्रिया धीमी पड़ी है जिससे विदेशी कंपनियों के ऑपरेशंस प्रभावित हो रहे हैं. कुल मिलाकर अविनाश का मत है कि गठबंधन सरकार सत्ता में न आये लेकिन अगर आती भी है तो उन्हें अपनी नीतियां और भी स्पष्ट करने की आवश्यकता होगी ताकि विदेशी कंपनियों को नुकसान न पहुंचे.

जर्मनी में स्टर्लिंग सॉफ्टवेयर के कंट्री हेड बिजोय चक्रवर्ती इन चुनावों में सीडीयू-सीएसयू के साथ एफडीपी का समर्थन करते हैं. चक्रवती मानते हैं कि कारोबार के लिहाज ये गठबंधन बेहतर साबित हो सकता है. शरणार्थी मसले पर उनका संतुलित रवैया कारोबारियों के हित में होगा. लेकिन वीजा प्रक्रिया की धीमी गति को चक्रवती भी कारोबार के लिए ठीक नहीं मानते और इसमें सुधार पर जोर देते हैं.

वहीं, इंडो-यूरोपियन बिजनेस सलाहकार और सीडीयू से जिला परिषद की सदस्य सरिता हाइडे जर्मनी के चुनावों में विकास के मुद्दे पर कहती हैं कि जर्मनी में विकास का अर्थ बेहद ही अलग है. उन्होंने कहा "जर्मनी विकास के समावेशी रूप को स्वीकार करता है, किसी व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तित्व का विकास यहां सबसे अधिक अहम है. इसलिए सत्ताधारी दल को इस पर जोर है." हाइडे कहती हैं कि आज के वैश्विक युग में एक साथ काफी चीजें हो रही हैं, ऐसे में एक चुनौती जो सबके सामने है वह है पांरपरिक व्यवस्था में नये बदलावों का समावेश करना. उनका मानना है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति को बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए. इन चुनावों में भारत के लिहाज से देंखे तो द्विपक्षीय कारोबारी रिश्ते अहम साबित होंगे.