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भारत में विभीषिका बनती बाढ़

प्रभाकर मणि तिवारी
७ अगस्त २०१८

भारत में हर साल आने वाली बाढ़ में सैकड़ों लोग मरते हैं और लाखों विस्थापित होते हैं. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर इसे रोकने के तत्काल उपाय नहीं हुए को आने वाले सालों में देश के प्रमुख शहर भी प्रभावित होंगे.

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Indien Assam - Hochwasser
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों में से 20 फीसदी भारत में ही होती है. विश्व बैंक के एक ताजा अध्ययन में यह बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से 2005 तक देश की आधी आबादी के रहन-सहन के स्तर में और गिरावट आ सकती है. वर्ष 2018 में बाढ़ और इसकी वजह से होने वाले हादसों में अब तक लगभग छह सौ लोगों की मौत हो चुकी है.

भयावह आंकड़े

केंद्र सरकार की ओर से जुलाई के आखिरी सप्ताह में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 1953 से 2017 के बीच 64 वर्षों में बाढ़ से एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. यानी हर साल औसतन 1,654 लोगों के अलावा 92,763 पशुओं की मौत होती रही है. विभिन्न राज्यों में आने वाली बाढ़ से सालाना औसतन 1.680 करोड़ की फसलें नष्ट हो जाती हैं और 12.40 लाख मकान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते 64 वर्षों के दौरान 2.02 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ और 1.09 लाख करोड़ की फसलों का. इसके अलावा बाढ़ से 25.6 लाख हेक्टेयर खेत भी नष्ट हो गए. इस दौरान बाढ़ से 205.8 करोड़ लोग प्रभावित हुए. देश में बाढ़ से होने वाली मौतों की तादाद वर्ष 1953 में सबसे कम (37) थी जबकि वर्ष 1977 में यह सबसे ज्यादा (11,316) थी.

इस साल भी विभिन्न राज्यों में बाढ़ का कहर जारी है. इसमें अब तक लगभग छह सौ लोगों की मौत हो चुकी है और करोड़ों की संपत्ति व फसलों को नुकसान पहुंचा है. उत्तर प्रदेश में बाढ़ का प्रकोप सबसे ज्यादा है और यहां बाढ़ व उससे संबंधित घटनाओं में 154 लोगों की मौत हो चुकी है. पश्चिम बंगाल और केरल में भी बाढ़ से दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों का स्थान है. असम, मणिपुर, त्रिपुरा और नागालैंड में अब तक बाढ़ और जमीन धंसने की घटनाओं में 73 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से 41 लोग तो अकेले असम में ही मारे गए हैं. देश के छह राज्यों में बाढ़ ने लाखों लोगों को बेघर बना दिया है.

Indien Assam - Hochwasser
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

विश्व बैंक की रिपोर्ट

इस बीच, विश्व बैंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया भर में बाढ़-संबंधित मौतों के कुल मामलों में से 20 फीसदी भारत में होते हैं. इसमें चेतावनी दी गई है कि आने वाली सदी में भारत के कोलकाता और मुंबई के अलावा पड़ोसी देशों के ढाका और कराची महानगरों में लगभग पांच करोड़ लोगों को बाढ़ की गंभीर विभीषिका झेलनी पड़ सकती है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, "पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है और यह अगले कुछ दशकों तक लगातार बढ़ता रहेगा. जलवायु परिवर्तन का देश में बाढ़ की स्थिति पर व्यापक असर होगा. इसकी वजह से बार-बार बाढ़ आएगी और पीने के पानी की मांग बढ़ेगी.”

रिपोर्ट के मुताबिक, इससे कई स्वास्थ्य-जनित समस्याएं भी पैदा होंगी. रिपोर्ट में ओडीशा, आंध्र प्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब को बाढ़ के प्रति सबसे संवेदनशील राज्यों की सूची में रखा गया है. विश्व बैंक ने कहा है कि वर्ष 2050 तक छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बन जाएंगे जबकि देश के 10 सबसे प्रभावित जिलों में से महाराष्ट्र में विदर्भ के सात जिले शामिल होंगे. इससे पहले इसी साल फरवरी में इंडिया स्पेंड ने एक साइंस जर्नल में छपे अध्ययन में कहा था कि वर्ष 2040 तक देश के ढाई करोड़ लोगों के सामने बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा.

तबाही की वजह

यह सही है कि बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा पर पूरी तरह अंकुश लगाना संभव नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के अलावा इंसानी कदमों ने इस खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है. लेकिन बाढ़ प्रबंधन के जरिए इससे होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है. विडंबना यह है कि जिन बांधों का निर्माण बाढ़ पर अंकुश लगाने के लिए किया गया था वही अब बाढ़ की सबसे प्रमुख वजह बनते जा रहे हैं. केंद्रीय जल आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 1950 में जहां महज 371 बांध थे वहीं अब उनकी तादाद पांच हजार के आस-पास पहुंच गई है.

Indien Assam - Hochwasser
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

असम के बाढ़ नियंत्रण विशेषज्ञ जतिन बरूआ कहते हैं, "नदियों पर बनने वाले बांध और तटबंध पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा पहुंचाते हैं. उद्गमस्थल पर भारी बारिश की स्थिति में नदियां उफनने लगती हैं और तटबंध तोड़ते हुए आसपास के इलाकों को डुबो देती हैं.” इससे पहले विश्व बैंक की कई रिपोर्टों में भी यह बात कही जा चुकी है कि खासकर गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटी में बने बांध खास प्रभावी नहीं हैं और उनसे फायदे की जगह नुकसान ही ज्यादा होता है. बरुआ कहते हैं, "सरकारों को एक एकीकृत योजना के तहत बाढ़ प्रभावित इलाकों में आधारभूत ढांचे को मजबूत करने पर जोर देना चाहिए. इसके तहत सड़कों, ब्रिज और तटबंधों पर खास ध्यान देना जरूरी है.”

जंगलों के कटने का असर

विशेषज्ञों का कहना है कि आम तौर पर तटबंध टूटने से कई इलाकों में  बाढ़ विनाशकारी साबित होती है. ऐसे में तटबंधों को चौड़ा और मजबूत बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. सुंदरबन इलाके में बाढ़ नियंत्रण पर बरसों से काम करने वाले प्रोफेसर अनिमेष घोष कहते हैं, "तेजी से घटते जंगल भी बाढ़ की विभीषिका बढ़ाने में सहायक होते हैं. सरकार को वन क्षेत्र बढ़ाने और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश लगाना चाहिए.”

पहाड़ी इलाकों में तेजी से खड़े होते कांक्रीट के जंगल को नियंत्रित कर बाढ़ और भूस्खलन से होने वाला नुकसान काफी हद तक कम किया जा सकता है. इसके तहत भूस्खलन के प्रति संवेदनशील इलाकों में किसी स्थायी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारें हर साल मानूसन के सीजन में आने वाली बाढ़ पर हाय-तौबा तो मचाती हैं. लेकिन उसके गुजर जाने के बाद वह लगातार गंभीर होती जा रही इस समस्या से मुंह मोड़ लेती हैं. ऐसे में साल-दर-साल इस प्राकृतिक आपदा से होने वाला नुकसान बढ़ने का ही अंदेशा है.

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