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भारत में लाखों बच्चे खसरे के टीके से महरूम

२६ अप्रैल २०१९

बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2017 के बीच भारत में 29 लाख बच्चों को खसरे का टीका नहीं दिया गया.

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Impfung gegen Masern, Saeugling bekommt eine Impfung gegen Masern
तस्वीर: imago images/photothek

जन्म के बाद पहले साल में बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए कई तरह के टीके दिए जाते हैं. इनमें एक बेहद महत्वपूर्ण टीका खसरे यानी मीजल्स का होता है. यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार बच्चों को खसरे का टीका नहीं दिए जाने के कारण दुनिया के कई देशों में खसरे के प्रकोप की संभावना कई गुना बढ़ गई है.

संगठन के आकलन के मुताबिक 2010 से 2017 के बीच दुनिया भर में कुल 16.9 करोड़ बच्चों को खसरे का पहला टीका नहीं दिया गया. इस दौरान हर साल तकरीबन 2.11 करोड़ बच्चों को खसरे की वैक्सीन नहीं मिली. इस चूक में सबसे ऊपर रहा नाइजीरिया जहां 40 लाख बच्चे इस टीके से महरूम रहे. और इसके बाद दूसरे नंबर पर रहा भारत का नाम. भारत में एक साल की उम्र से कम 29 लाख बच्चों को टीका नहीं दिया गया. अमेरिका में यह संख्या 25 लाख और पाकिस्तान में 12 लाख रही.

यूनिसेफ के अनुसार 2019 के पहले तीन महीनों में दुनिया भर में खसरे के 1,10,000 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 300 फीसदी अधिक हैं. एक अनुमान के मुताबिक, 2017 में 1,10,00 लोगों की मृत्यु खसरे के कारण हुई, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे.

खसरा एक संक्रामक बीमारी है जिससे देखने और सुनने की क्षमता खत्म हो सकती है, मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है और जान भी जा सकती है. बच्चों को इससे बचाने के लिए खसरे की वैक्सीन की दो खुराकें दी जाती हैं. यूनिसेफ के अनुसार दोनों खुराकों का कम से कम 95 फीसदी कवरेज होने पर ही इसके खतरे को रोका जा सकता है. लेकिन 2017 में पहली खुराक की 85 फीसदी और दूसरे की 67 फीसदी कवरेज ही दर्ज की गई. इसके लिए खराब चिकित्सा प्रणाली, गरीबी और लोगों में टीकाकरण के खिलाफ अवधारणाओं को जिम्मेदार बताया गया है.

अमेरिका, फिलीपींस, थाईलैंड, ट्यूनीशिया समेत यूरोप के कई देशों में खसरे के मामले चिंताजनक रूप से बढ़ रहे हैं. यूनिसेफ ने विकसित देशों में खसरे के प्रकोप पर गहरी चिंता जताई है. 2010 से 2017 के बीच फ्रांस में छह लाख और ब्रिटेन में पांच लाख बच्चों को इस टीके से दूर रखा गया. इन देशों में टीकों का खर्च बीमा कंपनियां उठाती हैं लेकिन टीका लगवाना अनिवार्य नहीं है. कई लोगों का मानना है कि टीके लगवाने से उनके बच्चों में ऑटिज्म और डाउन सिंड्रोम समेत कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. हालांकि इस धारणा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. ऐसा भी माना जाता है कि टीकाकरण केवल फार्मा इंडस्ट्री की एक जालसाजी है और बच्चों को इसकी कोई जरूरत नहीं होती है.

यूनिसेफ की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिएटा फोर ने इस बारे में कहा कि दुनिया भर में खसरा फैलने की इस संभावना की नींव कई साल पहले ही रख दी गई थी, "खसरे का वायरस उन बच्चों को बड़ी आसानी से प्रभावित करता है जिन्हें खसरे का टीका नहीं दिया गया है. अगर हम वास्तव में इस खतरनाक बीमारी को फैलने से रोकना चाहते हैं तो हमें गरीब और अमीर सभी देशों में हर बच्चे को खसरे का टीका देना होगा."

आईबी/आरपी (रॉयटर्स)

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