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भारत में टिड्डी हमले के पीछे है कोरोना वायरस

हृदयेश जोशी
२६ मई २०२०

भारत के कम से कम तीन राज्य इस वक्त टिड्डियों के हमले की मार झेल रहे हैं और इससे 8,000 करोड़ की मूंग दाल और बहुत सारी अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा है.

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Heuschreckenplage in Indien
तस्वीर: AFP/S. Panthaky

टिड्डियों के झुंड अभी राजस्थान, यूपी और मध्यप्रदेश के साथ हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों में दिख रहे हैं. इन राज्य सरकारों ने अलर्ट घोषित किया हुआ है और परेशान किसान थाली बजाकर और शोर मचाकर टिड्डियों को भगाने की असफल कोशिश कर रहे हैं. टिड्डियों का हमला वैसे तो नई बात नहीं है लेकिन ताजा संकट के पीछे कोरोना वायरस का भी हाथ है.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन के अधिकारियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि मॉनसून के बाद भारत को टिड्डियों के दूसरे बड़े हमले के लिये तैयार रहना चाहिए. इस हमले से खरीफ की फसल को क्षति हुई तो खाद्य सुरक्षा का संकट भी हो सकता है.

टिड्डियों के पीछे कोरोना वायरस का हाथ

Heuschreckenplage in Indien
फाइल तस्वीर: AFP/S. Panthaky

असल में डेजर्ट लोकस्ट के नाम से पहचानी जाने वाली टिड्डियों की प्रजाति हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती है. जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में होता है. मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हुआ और भारत में दिख रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण है.

अप्रैल के मध्य में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रीजनल बैठक में टिड्डियों के खतरे को लेकर चर्चा भी हुई. स्काइप द्वारा हुई इस मीटिंग में मौजूद सूत्रों ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत और पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के कई देशों के प्रतिनिधि इसमें थे. एक पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने मीटिंग में माना कि कोरोना की वजह से इस बार टिड्डियों की ब्रीडिंग रोकने के लिए दवा का छिड़काव नहीं किया जा सका और पाकिस्तान में टिड्डियों का प्रकोप काफी बढ़ गया है. इस अधिकारी ने मीटिंग में कहा कि पाकिस्तान के सामान्य लोग चूंकि अपने घरों के भीतर हैं तो उन्हें इसका अधिक पता नहीं चल रहा लेकिन इन इलाकों में किसान परेशान हैं.

असल में कोविड महामारी के कारण ईरान और पाकिस्तान इस बार टिड्डियों के प्रजनन को रोकने में इस्तेमाल होने वाली दवा नहीं मंगा पाए. एफएओ ने चेतावनी दी है कि इस हमले के बाद जून में बरसात के साथ भारत को टिड्डियों के नए हमले का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उस वक्त भारत-पाकिस्तान सीमा पर प्रजनन तेज हो जाएगा.

पिछले साल से बढ़ गया है टिड्डियों का हमला

Heuschreckenplage in Indien
थाली बजा कर टिड्डियों को भगाने की कोशिश तस्वीर: AFP/S. Panthaky

अमूमन मॉनसून के वक्त भारत में ब्रीडिंग के बाद टिड्डियां अक्टूबर तक गायब हो जाती हैं लेकिन 2019 में देर तक चले मॉनसून के कारण टिड्डियों का आतंक राजस्थान, गुजरात और पंजाब के इलाकों में इस साल जनवरी तक देखा गया. अब फिर टिड्डियों का लौट आना देश की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा झटका है.

यूपी और मध्यप्रदेश में तो टिड्डियों का यह प्रकोप 27 साल बाद दिख रहा है. इस साल फरवरी मार्च में लगातार हुई बारिश ने टिड्डियों के पनपने के लिये माहौल बनाये रखा. एफएओ ने पिछले हफ्ते कहा कि ईरान और पाकिस्तान में अनुकूल नमी वाले मौसम में टिड्डियों की ब्रीडिंग जारी है और जुलाई तक यह झुंड पाकिस्तान सीमा से भारत में आते रहेंगे.

टिड्डियां इंसानों और जानवरों पर हमला नहीं करतीं लेकिन यह फसल की जानी दुश्मन हैं. इन्हें कोमल पत्तियां बेहद पसंद होती हैं. एक वर्ग किलोमीटर में 4 से 8 करोड़ तक वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं जो एक दिन में इतनी भोजन चट कर सकती हैं जितना 35,000 लोग खाते हैं.

टिड्डियों का संकट केवल भारत या दक्षिण एशिया का नहीं है बल्कि यह दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या है जो मूल रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में हैं. अपने हमले के चरम पर हों तो यह 60 देशों में बिखरे दुनिया के 20% हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं. इनसे दुनिया की 10% आबादी की रोजी रोटी बर्बाद हो सकती है.

Somalia ruft Notstand aus wegen Heuschreckenplage
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/B. Curtis

बदलती जलवायु टिड्डियों के लिये अनुकूल

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की नई रिपोर्ट बताती है कि मुफीद जलवायु का फायदा उठाकर टिड्डियां अब अपनी सामान्य क्षमता से 400 गुना तक प्रजनन करने लगी हैं. यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि भारत उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक दिख रहा है. टिड्डियों का भारत में प्रवेश हवा के रुख पर भी निर्भर करता है. कहा जा रहा है कि पूर्वी तट पर आये विनाशकारी चक्रवाती तूफान अम्फान के कारण भी टिड्डियों के भारत में प्रवेश के लिये स्थितियां बनीं.

ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पिछले कुछ सालों में तेज गर्मी के लम्बे मौसम और फिर असामान्य बारिश और अचानक बाढ़ के रूप दिखा है. यह स्थितियां टिड्डियों के प्रजनन चक्र को बढ़ा रही हैं. पिछले साल पहले तो जुलाई तक बरसात नहीं हुई और उसके बाद मॉनसून का लम्बा सीजन चला जिसकी वजह से टिड्डियों का प्रकोप बना रहा.

अब इस साल जून में बरसात के साथ भारत-पाकिस्तान सीमा पर टिड्डियों के प्रजनन का नया दौर शुरू होगा. उसके बाद के महीनों में होने वाला टिड्डियों का हमला खरीफ की फसल बर्बाद कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो पहले ही कोरोना संकट झेल रहे भारत के लिये यह दोहरी मार होगी क्योंकि इसका असर देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है.

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