भारत पाक विवाद का कश्मीर पर असर
१३ अप्रैल २०१८दक्षिण एशियाई पड़ोसियों को विभाजित करने वाली कश्मीर के पहाड़ी इलाके में मौजूद सीमा 2003 में हुए संघर्षविराम के बाद अपेक्षाकृत शांत थी. कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित है लेकिन दोनों ही पूरे कश्मीर पर दावा करते हैं. पिछले महीनों में नियंत्रण रेखा कही जाने वाली सीमा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन के मामलों में लगातार तेजी आई है. इलाके में सैनिक झड़पों की स्वतंत्र रूप से पुष्ट हुई जानकारी का पूरी तरह अभाव है और दोनों पक्षों द्वारा दिए गए आंकड़े एक दूसरे से मेल नहीं खाते. हालांकि दोनों ही देशों के आंकड़े पिछले दो सालों में गोलाबारी में वृद्धि का एक जैसा ट्रेंड दिखाते हैं.
भारत के अनुसार पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम को तोड़ने के मामले 2015 के 152 से बढ़कर 2017 में 860 हो गए. 2018 के जनवरी और फरवरी में नई दिल्ली ने 351 मामले दर्ज किए हैं. पाकिस्तान तो और ज्यादा उल्लंघनों का दावा कर रहा है. उसके अनुसार भारत ने दो साल पहले के 168 की तुलना में 1970 बार संघर्ष विराम किया है. पाकिस्तान के मुताबिक इस साल मार्च के शुरू तक 415 मामले हुए.
अमेरिकी शांति संस्थान के लिए 2017 में संघर्ष विराम पर रिपोर्ट लिखने वाले हैप्पीमॉन जैकब का कहना है कि इन आंकड़ों पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है. भारत की राजधानी में रहने वाले स्वतंत्र विश्लेषक जैकब भारत और पाकिस्तान की मीडिया में आने वाली रिपोर्टों के आधार पर संघर्ष विराम पर नजर रखते हैं. इसके अलावा वे इलाके का दौरा भी करते हैं और दोनों पक्षों के सैनिक अधिकारियों के साथ बात करते हैं. इस्लामाबाद के आंकड़ों के ज्यादा होने पर जैकब कहते हैं, "भारत पाकिस्तान से ज्यादा फायरिंग कर रहा है. उसके पास ज्यादा ताकत, सैनिक और चौकियां हैं." विश्लेषकों के अनुसार भारत ने कश्मीर में 500,000 सैनिक तैनात कर रखे हैं जबकि पाकिस्तान ने 50 हजार से 100,000 तक. दोनों ही पक्ष इस संख्या की पुष्टि करने से इंकार करते हैं..
दोनों पड़ोसियों के विवाद की वजह बहुत ही जटिल है, एक दूसरे से उलझे मामले. जैकब की रिपोर्ट के अनुसार नियंत्रण रेखा पर तब अधिक शांति होती है जब भारत और पाकिस्तान रचनात्मक बातचीत कर रहे होते हैं. जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में क्रिसमस पर पाकिस्तान का अचानक दौरा किया तो उम्मीद की किरणें दिखीं. लेकिन रिश्तों की ऐसी परतें खुलीं जिसने संवाद के प्रयासों को पटरी से उतार दिया और संघर्ष विराम के बार बार उल्लंघन का माहौल बना दिया. आपसी विवाद में बदले की भावना बहुत जोरदार है. एक भारतीय अधिकारी ने एएफपी से कहा, "कोई उल्लंघन सजा से नहीं बचता." कश्मीर में पाकिस्तानी सैनिकों के कमांडर जनरल अख्तर खान भी कहते हैं, "हम हमेशा कार्रवाई करते हैं ताकि दूसरा पक्ष इसे दोहराने की जुर्रत न करे."
दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाने में कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन तथा उसके खिलाफ भारत की सैनिक कार्रवाई की भी भूमिका है. 1980 के दशक से चल रहे अलगाववादी आंदोलन में दसियों हजार लोग मारे गए हैं. इसमें पहली अप्रैल को मारे गए 20 लोग भी शामिल हैं. नई दिल्ली नियमित रूप से पाकिस्तान पर इस आंदोलन को भड़काने का आरोप लगाता है. पाकिस्तान इससे इंकार करता है लेकिन भारत की कार्रवाई का इस्तेमाल अपने यहां भारत के खिलाफ गुस्सा भड़काने के लिए करता है. पाकिस्तान में इस साल चुनाव होने हैं जबकि भारत में 2019 में चुनाव होंगे. जैकब कहते हैं कि कश्मीर ऐसा मुद्दा है जिसका फायदा दोनों पक्ष उठा सकते हैं, "दोनों ही सरकारें राजनीतिक फायदे के लिए नफरत का इस्तेमाल करती हैं, बातचीत का मतलब कमजोरी होगा."
इस अंतहीन गुना भाग का मतलब नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले कश्मीरियों के लिए डर है. मदरपुर में रहने वाले 70 वर्षीय पाकिस्तानी मोहम्मद सिद्दिक कहते हैं, "मैंने भारतीय सैनिकों की ऐसी गोलाबारी पहले कभी नहीं देखी." ऐसा ही लोग भारत की ओर भी महसूस करते हैं. ऊरी जिले में रहने वाले 38 वर्षीय मुस्ताक खान ने एएफपी से कहा, "बहुत ही भयानक मंजर था जो मैंने अपनी जिंदगी में देखा है." सिलीकोट के 26 वर्षीय जहूर अहमद कहते हैं, "हम दहशत में जी रहे हैं. हमने आसमान से गोलों की ऐसी बरसात नहीं देखी. तकरीबन हर रोज गोलाबारी होती है." दोनों देशों का दावा है कि 2015 से इन झडपों में उनके 100 से ज्यादा नागरिक मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं.
हालांकि आपसी तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों की पिछले दिसंबर में बैंकाक में मुलाकात हुई है लेकिन सरकारी बयानों में आक्रामक रुख बना हुआ है. इस्लामाबाद के राजनयिक हलकों में विवाद के भड़कने की संभावना को गंभीर माना जा रहा है. लेकिन फिर भी कोई भी देश इस विवाद में हाथ डालने को तैयार नहीं है. संयुक्त राष्ट्र भी चुप है, हालांकि 1948 से ही सीमा के दोनों पार उसका निरीक्षण मिशन तैनात है. एक पश्चिमी राजनयिक ने एएफपी से कहा, "कश्मीर का सवाल दांव पर नहीं है, इलाके की स्थिरता दांव पर है." परमाणु युद्ध का खतरा और आर्थिक शक्ति के रूप में उभरते भारत से झगड़ा मोल लेने की विश्व समुदाय की अनिच्छा इस चुप्पी की वजह है. उनकी उम्मीद ये है कि कश्मीर में जितना कम हल्ला होगा उतने ही कम जानें जाएंगी.
एमजे/एनआर(एएफपी)