भारत पाक रिश्तों में नई करवट का मौका
१० अगस्त २०१८आज पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया वहां के होने वाले प्रधानमंत्री इमरान खान से मिल रहे हैं. अभी तक केवल अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, सऊदी अरब, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के राजदूतों ने ही उनसे मुलाकात की है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी पार्टी की विजय पर उन्हें जो रस्मी बधाई संदेश भेजा था, उसमें भी दोनों देशों के बीच के संबंधों को सुधारने के लिए "संयुक्त रणनीति" बनाए जाने की जरूरत का उल्लेख किया था, लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इमरान खान के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ-ग्रहण समारोह में भारत सरकार के किसी प्रतिनिधि को बुलाया जाएगा या नहीं. ऐसे अनिश्चय के माहौल में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि क्रिकेट के खेल में बॉल-टेम्परिंग की स्वीकारोक्ति करने वाले इमरान खान भारत के साथ रिश्तों का कूटनीतिक खेल खेलते समय उसके नियमों को धता बताएंगे या फिर खेल भावना के साथ सभी नियमों का पालन करते हुए चौक्के-छक्के जड़ेंगे और अपनी गेंदबाजी से टीम मोदी के छक्के छुड़ाएंगे? अभी इस या इसी तरह के दूसरे सवालों का जवाब देना जल्दबाज़ी होगी लेकिन फिर भी कुछ अनुमान तो लगाया जा ही सकता है.
इमरान खान के बारे में माना जाता है कि उन्हें पाकिस्तानी सेना का समर्थन प्राप्त है. जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे तब उनके सेना के साथ संबंध बिगड़ चुके थे हालांकि उनका पाकिस्तान की राजनीति में उदय भी तत्कालीन सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक़ की छत्रछाया में ही हुआ था. पाकिस्तान की भारत नीति को वहां का सत्ता प्रतिष्ठान तय करता है जिसके अनेक घटकों में नागरिक सरकार भी एक घटक है. सेना इसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है. इसीलिए अमेरिका आदि पश्चिमी देशों के मंत्री और अन्य उच्चाधिकारी पाकिस्तान की यात्रा के दौरान वहां की नागरिक सरकार के अलावा सेनाध्यक्ष और अन्य उच्च सेनाधिकारियों से जरूर मिलते हैं. लेकिन भारत वहां की स्थिति की हकीकत को नजरअंदाज करके केवल सरकार के साथ ही बातचीत करता रहा है और आज भी कर रहा है. यह अकारण नहीं है कि, जैसा कि पूर्व पाकिस्तानी विदेशमंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने लिखा भी है, जब जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे तब पहली बार दोनों देश कश्मीर समस्या के समाधान के लगभग अंतिम चरण तक पहुंच गए थे.
यदि पाकिस्तानी सेना भारत के साथ संबंध सुधारना चाहती है, तो भावी प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल में दोनों देशों के आपसी संबंध सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है. एक क्रिकेटर के रूप में इमरान खान करोड़ों भारतीयों के चहेते रहे हैं, भले ही एक राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने अपने भारत संबंधी बयानों से उनका दिल न जीता हो. यदि उनकी सरकार और सेना के बीच अच्छा समीकरण बना रहा और टकराव की स्थिति न बनी तो भारत के लिए उनके साथ संवाद बिठाना आसान और अर्थपूर्ण होगा. लेकिन इसके साथ ही यदि भारत सरकार पाकिस्तानी सेना के साथ भी राब्ता कायम करे तो आगे की राह और अधिक आसान हो सकती है. यह सब संभावना के क्षेत्र में है क्योंकि काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान अपनी सत्ता पर सेना के अंकुश को सहन करने के मूड में होंगे या नहीं.
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि अगले नौ माह के भीतर भारत में लोकसभा चुनाव होने हैं और नयी सरकार चुनी जानी है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को फिलहाल विपक्ष की ओर से कोई बहुत जोरदार चुनौती नहीं मिल रही है, लेकिन अगले कुछ माह के भीतर देश के राजनीतिक परिदृश्य में किस प्रकार के बदलाव होंगे, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. स्पष्ट है कि यदि पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारना भी चाहेगा तो वह अगली सरकार के बनने का इंतजार अवश्य करेगा. इन बीच माहौल को बेहतर बनाने की कुछ कोशिशें जरूर की जा सकती हैं. लेकिन यदि इमरान खान के शपथ-ग्रहण समारोह में भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि नहीं बुलाया गया, तो इसमें भी एक संदेश तो छुपा होगा ही. इस दृष्टि से आने वाले कुछ दिन और सप्ताह काफी महत्त्व के सिद्ध हो सकते हैं.