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भारत पाक तनावों के बीच सिंधु जल संधि वार्ता

मारिया जॉन सांचेज
२० मार्च २०१७

भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर पिछले सालों से तनातनी चल रही है. करीब सात दशक पुरानी संधि के तहत हर साल होने वाली दो- दिवसीय वार्ता सोमवार को लाहौर में शुरू हो गई है.

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Neelum-Jhelum Wasserkraftwerk
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Mughal

पिछली वार्ता मई 1915 में हुई थी और अगली 2016 में होनी थी लेकिन उड़ी में हुई आतंकवादी घटना के बाद इसे टाल दिया गया था. अब संधि की शर्तें पूरी करने के लिए वार्ता की जा रही है लेकिन दोनों ही देश इसके प्रति बहुत अधिक उत्साहित नहीं लगते क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल के बंटवारे के सवाल को आतंकवाद को पाकिस्तानी समर्थन की समाप्ति के साथ जोड़ दिया है. भारत सरकार ने पिछले कुछ महीनों के दौरान कश्मीर में 15 अरब डॉलर की लागत वाली छह पनबिजली परियोजनाओं पर हो रहे काम की गति को तेज कर दिया है जिसके कारण पाकिस्तान की आशंकाएं और भी ज्यादा बढ़ गई हैं. कश्मीर पर पाकिस्तान अपना हक जताता है और पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य को विवादास्पद क्षेत्र बताता है. इसलिए उसके लिए इन परियोजनाओं को बिना विरोध के स्वीकार करना संभव नहीं है क्योंकि इनका रणनीतिक महत्व भी है.

इनमें सबसे बड़ी परियोजना सावलकोट संयंत्र की है जो 1856 मेगावाट का होगा. चिनाब नदी पर लगने वाली इन परियोजनाओं के पूरा होने के बाद जम्मू-कश्मीर के बिजली उत्पादन में तीन गुना बढ़ोतरी होने की आशा है. इस समय राज्य में 3000 मेगावाट बिजली पैदा होती है. हालांकि इन परियोजनाओं को पूरा होने में कई साल लगेंगे लेकिन उन्हें भारत सरकार की ओर से मंजूरी मिलना ही पाकिस्तान को भड़काने के लिए काफी है. यह अलग बात है कि इन परियोजनाओं की तकनीकी रूपरेखा 1991 में बनी थी और हर पहलू की जांच-पड़ताल करने के बाद उन्हें मंजूरी मिलने में इतना अधिक समय लग गया. लेकिन पर्यावरणवादी अभी भी इनका विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह समूचा क्षेत्र बाढ़, भूस्खलन और भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र हैं.

सिंधु जल संधि 1960 में हुई थी जब भारत में जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और पाकिस्तान में फील्ड मार्शल अयूब खान राष्ट्रपति थे. इसे विश्व बैंक के तत्वावधान में संपन्न किया गया था और विवाद होने पर विश्व बैंक ही उसे सुलझाने के लिए मध्यस्थता करता है. पिछले साल पाकिस्तान ने किशनगंगा और रातले पनबिजली योजनाओं पर आपत्ति दर्ज कराते हुए विश्व बैंक के दरवाजे पर दस्तक दी थी. बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू भी कर दी थी लेकिन भारत के ऐतराज जताने पर उसे रोक दिया गया. सोमवार से लाहौर में शुरू हुई वार्ता में एक फांस यह भी है कि भारत इन परियोजनाओं पर बात करना चाहता है लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि अब गेंद विश्व बैंक के पाले में है और बैठक में उन पर चर्चा करना बेमानी होगा.

जिस बैठक का एजेंडा ही विवाद में घिरा हो, उसकी सफलता की बहुत अधिक उम्मीद करना मुश्किल है. बहुत अधिक संभावना यही है कि दो दिन तक वार्ता के नाम पर कदमताल करने के बाद भारतीय प्रतिनिधिमंडल स्वदेश लौट आएगा और परियोजनाओं पर विवाद बना रहेगा. सिंधु जल संधि के बारे में यह बात जरूर कही जानी चाहिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच आज तक जितने भी समझौते या संधियां हुईं, उनमें से केवल यही अकेली ऐसी है जिसका अभी तक पालन होता आया है और जिसकी सफलता असंदिग्ध रूप से सिद्ध हुई है.