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भारत के लोगों का नया ठिकाना बन रहा है पुर्तगाल

१ मार्च २०२४

दक्षिण पश्चिमी पुर्तगाल के छोटे से कस्बे साओ तेओतोनियो में पुर्तगाली से ज्यादा भारतीय और नेपाली रेस्त्रां हैं. इसकी वजह तब समझ में आती है, जब यहां के खेतों और बागों में आप भारत और नेपाल के लोगों की बहुतायत देखते हैं.

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साओ तेओतोनियो में बस का इंतजार करते दो भारतीय
पुर्तगाल के खेतों और बागों में काम करने के लिए भारत से बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैंतस्वीर: Patricia de Melo Moreira/AFP

नेपाल से आए 36 साल के मेश खत्री साओ तेओतोनियो के ग्रीनहाउसों में रसभरी और स्ट्रॉबेरी जमा करते हैं. उनकी बीवी 28 साल की ऋतु खत्री शहर में कैफे चलाती हैं. उनका सात साल का बेटा पुर्तगाली भाषा बोलता है और थोड़ी बहुत अंग्रेजी भी जानता है लेकिन नेपाली बिल्कुल नहीं.

खत्री दिसंबर 2012 में पुर्तगाल आए. उससे पहले वह बेल्जियम में काम करते थे. उन्होंने बताया, "मैं यहां इसलिए आया क्योंकि बेल्जियम में रेजिडेंट परमिट हासिल करना बहुत मुश्किल है." पुर्तगाल आने के पांच साल बाद उन्हें यहां रेजिडेंसी मिल गई और उसके दो साल बाद पुर्तगाल का पासपोर्ट.

पुर्तगाल में दक्षिण एशियाई

लिस्बन की सड़कों पर साइकिल से डिलीवरी करने वालों में अब भारतीय और दक्षिण एशियाई लोग ज्यादा दिखते हैं. शुक्रवार की नमाज के वक्त सैकड़ों मुसलमान मौरारिया की पतली सड़कों पर बनी दो मस्जिदों में जाने के लिए कतार में खड़े हो जाते हैं. 43 साल के पाकिस्तानी यासिर अनवर ने बताया कि रुआ दो बेनफोर्मोसो में इतने बंगाली दुकानें और रेस्त्रां हैं कि लोग उसे 'बांग्लादेश स्ट्रीट' कहने लगे हैं.

साओ तेओतोनियो के अपने कैफे में बच्चों के साथ नेपाल की ऋतु खत्री
भारत और दक्षिण एशियाई लोगों का नया ठिकाना बन रहा है पुर्तगाल तस्वीर: Patricia de Melo Moreira/AFP

अनवर 2010 में यहां बिना वीजा के आए. इससे पहले वो कुछ समय डेनमार्क और नॉर्वे में भी रहे थे. उन्हें हमेशा यहां से निकाले जाने का डर रहता था. आखिरकार कानून में बदलाव के बाद 2018 में उन्हें दस्तावेज मिले. लंबे समय तक बार और रेस्त्रांओं में फूल बेचने के बाद आखिर एक रेस्त्रां मालिक ने उन्हें नौकरी दी. अनवर को पुर्तगाली भाषा और खाना बनाना सिखाया. अब वो पुर्तगाली पासपोर्ट पाने के इंतजार में हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनकी बीवी और दो बच्चे उनके साथ रहेंगे. 

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विदेशियों की संख्या बढ़ी

अलेंतेजो के इलाके में पिछले एक दशक में आबादी 13 फीसदी बढ़ी लेकिन खेतीबाड़ी करने वालों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है. प्रवासी कामगारों के कारण इस इलाके की रौनक लौटी है. यूरोप में आप्रवासियों के लिए सबसे खुली नीति अपनाने वाले पुर्तगाल में पिछले पांच सालों में विदेशी लोगों की आबादी दोगुनी हो गई है. 2018 तक पुर्तगाल में विदेशियों की संख्या पांच लाख से कम थी. पिछले साल यह संख्या 10 लाख तक पहुंच गई. यहां की आबादी में हर दसवां आदमी विदेशी है. यह आंकड़े शरणार्थियों से जुड़ी पुर्तगाल की एजेंसी एआईएमए के हैं. 

ब्राजील का पुर्तगाल के साथ ऐतिहासिक संबंध है. वहां के लोगों की संख्या यहां अब भी सबसे ज्यादा है, करीब चार लाख. इसके बाद ब्रिटेन और दूसरे यूरोपीय देशों की बारी आती है. यहां लगभग 58,000 भारतीय और 40,000 नेपाली हैं. यह संख्या पुर्तगाल के कई पूर्व उपनिवेशों से आए लोगों से ज्यादा है. पुर्तगाल में सबसे ज्यादा लोग जिन 10 देशों से आ रहे हैं, उनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हैं.

साओ तेओतोनियो में एक रेस्तरां के बाहर बैठा हिंदुस्तानी जोड़ा
साओ तेओतोनियो में पुर्तगाली से ज्यादा भारतीय और नेपाली रेस्त्रां हैंतस्वीर: Patricia de Melo Moreira/AFP

पुर्तगाल में खेती, मछली पकड़ने और रेस्त्रां में काम करने आए लोगों की बड़ी संख्या है. 2015 से ही सत्ता पर काबिज पुर्तगाल की समाजवादी सरकार इसे बढ़ावा दे रही है. हालांकि 10 मार्च को होने जा रहे चुनाव में अगर सरकार बदली, तो फिर परिस्थितियां भी बदल सकती हैं.

बीते दिनों में पुर्तगाल में धुर दक्षिणपंथी चेगा पार्टी की लोकप्रियता बढ़ी है. हालांकि सर्वेक्षण दिखाते हैं कि आप्रवासियों का मुद्दा पुर्तगाल के लिए उतना बड़ा नहीं है, बाकी यूरोप से उलट यहां प्रवासन का मुद्दा सकारात्मक है. 2019 में बनी चेगा के लिए भी आप्रवासियों का मुद्दा उसके घोषणा पत्र में प्राथमिकताओं की सूची में सातवें नंबर पर है. चुनाव से पहले सर्वेक्षणों में पार्टी को 20 फीसदी वोट मिलते दिखे हैं.

पुर्तगाल को विदेशियों की जरूरत

ज्यादातर यूरोपीय देशों में आप्रवासियों को जरूरी दस्तावेज हासिल करने में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसी वजह से बहुत से लोग अवैध तरीके से काम करते हैं. पुर्तगाल में इसका उल्टा है. आप्रवासियों को बहुत जल्द देश की वैध अर्थव्यवस्था में शामिल कर लिया जाता है. सरकारी एजेंसी एआईएमए के अधिकारी लुई गोएस पिनहाइरो ने बताया, "पुर्तगाल में आप्रवासियों की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण है कि यहां उनकी जरूरत है." पिनहाइरो ने ध्यान दिलाया कि, यूरोप में सबसे अधिक बुजुर्गों की आबादी इटली के बाद पुर्तगाल में है.

साओ तेओतोनियो के लुई कार्लो विला भी अपने बागों से सेव चुनने के लिए विदेशी कामगारों पर निर्भर हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है, हमारे यहां की आबादी बूढ़ी है और हमारे पास अब खेतों में काम करने वाले लोग नहीं हैं."

ऋतु खत्री के रेस्त्रां में काम करता एक नेपाली युवक
लोग यहां खेतों, बागों और रेस्त्रांओं में काम करने के लिए आते हैंतस्वीर: Patricia de Melo Moreira/AFP

उनके बागों में छह भारतीय कड़ी मेहनत करते हैं. उनमें से एक हैप्पी सिंह ने अंग्रेजी में कहा, "आई लव पुर्तगाल, पैसा अच्छा है, काम अच्छा है और भविष्य अच्छा है." विला विदेशी मजदूरों को वैध तरीके से काम पर रखते हैं. उन्हें इन लोगों में अपने परिवार का भी इतिहास दिखता है. उन्होंने बताया, "मेरे पिता भी नौकरी के लिए यहां बाहर (फ्रांस) से आए थे."

पुर्तगाल का उदार कानून

पुर्तगाल में ज्यादा पारंपरिक समझे जाने वाला मछुआरा समुदाय भी विदेशियों पर ही निर्भर हैं. पोर्तो के पास काक्सिनास समुदाय में काम करने वाले क्रू के आधे लोग इंडोनेशिया के हैं. 20 मीटर लंबी ट्रॉलर नौका चलाने वाले होजे लुई गोम्स ने बताया कि उनके पिता और दादा अब इस काम को नहीं करना चाहते. इस काम में बहुत मेहनत है और पैसा दूसरे कामों से कम है.

जावा के मछुआरे सैफुल अरदानी गोम्स के लिए चौथे कांट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं. हर कांट्रैक्ट 18 महीने का होता है. 28 साल के अरदानी ने बताया, "इंडोनेशियाई मछुआरों को यहां काम करने में कोई दिक्कत नहीं होती. हमारा परिवार भी घर पर निश्चिंत रहता है क्योंकि हम अवैध नहीं हैं."

लिस्बन यूनिवर्सिटी में प्रवासन के विशेषज्ञ होर्गे मालहाइरोज कहते हैं, "आप चाहे किसी संकेत को देखें, यह यूरोप के सबसे उदार देशों में हैं." 2007 से ही पुर्तगाल उन सभी लोगों को दस्तावेज मुहैया करा रहा है जो अपनी आय घोषित करते हैं. 2018 में समाजवादी सरकार ने यह सुविधा उन लोगों को भी दे दी जो यहां अवैध तरीके से आए. 2022 में हुए संशोधन के बाद विदेशी लोगों को यहां काम ढूंढने के लिए छह महीने का वीजा मिल जाता है.

इन कानूनों ने लोगो को तस्करी का शिकार बनने से रोका है, जो दूसरे कई देशों में हो रहा है. हालांकि फिर भी लोगों की मुश्किलों से पैसा बनाने वालों को रोका नहीं जा सका है. अधिकारियों ने तस्करी के नेटवर्क ध्वस्त किए हैं. कई जगहों पर लोग खराब हालात में रह रहे थे वहां से उन्हें निकाला गया है.

ज्यादा लोगों के आने से बढ़ी चुनौतियां

मेश खत्री मानते हैं कि ज्यादा विदेशियों के ज्यादा आने से नई चुनौतियां पैदा हुई हैं. उनकी पत्नी ऋतु ने कहा, "पहले काम मिल जाता था लेकिन अब ज्यादा नस्लभेद हो रहा है. पुर्तगाली लोगों को यह पसंद नहीं है कि एक घर में 10-15 लोग रहें, खासतौर से अगर जो पुर्तगाली भाषा ना बोलते हों."

एक आशियाने की तलाश

78 साल की जूलिया दुआर्ते एक समाज सेवी संगठन की स्वयंसेविका हैं. वह शहर के मध्य में मौजूद एक सेंटर में करीब 20 बच्चों को उनका होमवर्क करने में मदद करती हैं. इनमें से सिर्फ एक बच्चे का नाम पुर्तगाली है. उन्होंने बताया, "मैंने सोचा कि मैं रिटायर होकर अपनी जिंदगी शांति से बिताउंगी लेकिन उसके बाद यहां प्रवासी कामगारों का तूफान आ गया. बहुत से लोग हैं सबको नौकरी चाहिए, रहने की जगह चाहिए, बड़ी अफरातफरी है फिर मुझे लगा कि ये अच्छे लोग हैं."

इस तरह के लोगों की मांग इतनी ज्यादा है कि गरीबी के खिलाफ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ताइपा ने अपना ध्यान प्रवासियों को यहां के समाज में समेकित करने में लगा दिया. संगठन की प्रमुख तेरेसा बराडास ने बताया, "10 या 15 साल पहले लोग इसके लिए तैयार नहीं थे. यह उस समुदाय के लिए बड़ा परिवर्तन है जो हमेशा अपने में ही सिमटा रहा है, और इस तरह के बड़े सांस्कृतिक अंतर के लिए तैयार नहीं था." पुर्तगाल का कानून परिवारों को यहां आ कर रहने की अनुमति देता है. इससे पूर्वाग्रहों को दूर करने में बड़ी मदद मिलती है क्योंकि, आप देखते हैं कि पड़ोसी का परिवार है और उनके बच्चे भी उसी स्कूल में जा रहे हैं."

एनआर/वीके (एएफपी)