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भारत के नागरिकता कानून पर यूरोपीय संसद में बहस

महेश झा
२७ जनवरी २०२०

यूरोपीय संसद इस हफ्ते भारत में हाल में पास नागरिकता संशोधन कानून पर चर्चा कर रही है. बहस का प्रस्ताव देने वाले यूरोपीय सांसदों को चिंता है कि भारत में स्टेटलेस लोगों का संकट पैदा हो सकता है.

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Straßburg Europäisches Parlament
तस्वीर: picture-alliance/dpa

आम तौर पर यूरोपीय संसद में दूसरे लोकतांत्रिक देशों के कानूनों पर चर्चा नहीं होती, लेकिन भारत का नया नागरिकता कानून इतना विवादास्पद हो गया है कि यूरोपीय संसद के कई संसदीय दलों ने इस कानून पर बहस और संसद द्वारा प्रस्ताव पास किए जाने की पहल की है. इन संसदीय दलों में छोटे मोटे संसदीय दल ही नहीं हैं, ऐसी पार्टियां भी हैं जो यूरोप के दूसरे देशों में सरकार चला रही हैं. प्रस्ताव देने वाली पार्टियों में प्रोग्रेसिव अलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रैट्स (एसएंडडी), यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (पीपीई), ग्रुप ऑफ ग्रीन्स, यूरोपियन कंजरवेटिव्स एंड रिफॉर्मिस्ट ग्रुप (ईसीआर), रिन्यू यूरोप ग्रुप और यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट शामिल हैं, जिसमें यूरोप की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टियां, क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टियां, लिबरल पार्टियां और ग्रीन पार्टियां शामिल हैं. यह सब यूरोपीय संघ के प्रमुख देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और इटली में सत्ता में हैं.

यूरोप की सत्ताधारी पार्टियों के सांसद

यूरोपीय संसद में 28 सदस्य देशों के 751 सदस्य हैं जो अलग अलग देशों से चुनकर आते हैं, लेकिन यूरोपीय संसद में पहुंचने पर आपसी समझबूझ और विचारधारा के आधार पर एक संसदीय दल में शामिल होते हैं. 2019 में चुनी गई यूरोपीय संसद में इस समय 8 संसदीय दल हैं जिनमें से छह ने भारत के नागरिकता कानून का मुद्दा संसद में उठाने का फैसला किया है. जिन दो संसदीय दलों ने अपना अलग से प्रस्ताव नहीं दिया है उनमें से एक यूरोप विरोधियों का दल है जिनमें जर्मनी के 11 सांसद भी शामिल हैं. वे सब के सब धुर दक्षिणपंथी एएफडी के सदस्य हैं. आठवां ग्रुप उन 57 सांसदों का है जो किसी संसदीय दल के सदस्य नहीं हैं.

Frankreich EU-Parlament in Straßburg
यूरोपीय संसद का अधिवेशनतस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/R. Monaldo

यूरोपीय संसद में पेश प्रस्तावों में भारतीय अधिकारियों से कानून का विरोध करने वालों के साथ रचनात्मक तरीके से बातचीत करने और उनकी मांगों पर विचार करने की अपील की गई है. यूरोपीय वामपंथियों और ग्रीन वामपंथियों के दल ने तो अपने प्रस्ताव में यहां तक कहा है कि नागरिकता कानून भारत में नागरिकता देने की प्रक्रिया में खतरनाक बदलाव है और इससे दुनिया का सबसे बड़ा नागरिकताविहीन नागरिकों का संकट पैदा हो सकता है और भयानक मानव त्रासदी ला सकता है. प्रस्ताव में कहा गया है कि "चिंताओं को दूर करने, सुधार की पेशकश करने, सुरक्षा बलों को संयम दिखाने को कहने और जवाबदेही तय करने के बदले सरकार के बहुत से नेता विरोधियों को बदनाम करने, झिड़की देने और धमकी देने में लगे हैं." इस संसदीय दल ने अपने प्रस्ताव में कश्मीर में धारा 370 को समाप्त करने की भी चर्चा की है.

धुर दक्षिणपंथी सांसदों से संपर्क

कश्मीर पर विश्व समुदाय को अपने साथ रखने के प्रयासों में भारत सरकार ने यूरोपीय संघ के कुछ सांसदों को आमंत्रित किया था और उन्हें कश्मीर का दौरा कराया था. इनके चुनाव को लेकर भी विवाद हुआ था. उनमें से एक तिहाई धुर दक्षिणपंथी थे तो दूसरे राष्ट्रवादी और आप्रवासन विरोधी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सांसदों के इस दल से मुलाकात की थी. यूरोपीय संसद के प्रमुख दलों के समर्थन से भारतीय नागरिकता कानून पर होने वाली चर्चा से लगता है कि भारतीय अधिकारियों ने मुख्य राजनीतिक दलों के सांसदों को साथ लाने की कोशिश नहीं की है और धुर दक्षिणपंथी तथा राष्ट्रवादी सांसदों को कश्मीर बुला कर उन्हें नाराज कर दिया है. यूरोपीय संसद ने इसे सांसदों का निजी दौरा बताया था.

यूरोपीय संसद में नागरिकता कानून पर प्रस्तावित चर्चा पर प्रतिक्रिया में भारत सरकार के सूत्रों ने कहा है कि यूरोपीय संसद को ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जो लोकतांत्रिक तरीके निर्वाचित संसद के अधिकारों पर सवाल उठाए. भारत का नया नागरिकता कानून पिछले महीने पास हुआ था और इस महीने से लागू हो गया है. इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता शर्तों में छूट दी गई है, लेकिन मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया गया है. भारत में इस कानून का व्यापक विरोध हो रहा है. विपक्ष का कहना है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है. यूरोपीय संसद में पेश प्रस्तावों पर गुरुवार को मतदान होगा.

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ये हैं यूरोपीय संघ के सदस्य देश