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भारत का शेयर बाजार लहुलूहान

२७ नवम्बर २०११

विदेशों के आर्थिक संकट और देश के अंदरूनी मसलों ने भारतीय शेयर बाजार को लहुलूहान कर दिया है. बीते 11 महीनों में स्टॉक मार्केट को 550 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. सरकार की सुस्ती बीमारी को और गंभीर कर रही है.

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तस्वीर: AP

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) की कुल निवेश संपत्ति फिलहाल 1.05 ट्रिलियन डॉलर यानी 1,050 अरब डॉलर है. 2011 की शुरुआत में यह 1,600 अरब डॉलर थी. यानी बीते 11 महीनों में शेयर बाजार को सीधे तौर पर 35 फीसदी का बड़ा नुकसान हुआ है. सबसे ज्यादा नुकसान प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों (एफडीआई) को हुआ है. विदेशी निवेशकों को 100 रुपये के निवेश पर औसतन 35 रुपये का नुकसान हुआ है. भारतीय निवेशकों को हर 100 रुपये में 24 रुपये का चूना लगा.

विदेशी निवेशकों को हुआ नुकसान किसी भी तरह के अनुमान से कहीं ज्यादा है. बाहरी निवेशकों पर दोहरी मार पड़ी. रुपये की कीमत गिरने और शेयर भाव गिरने की वजह से उन्हे दोतरफा नुकसान हुआ. शेयर बाजार के जरिए भारतीय कंपनियों में पैसा लगाने वालों को भी 2011 में बहुत हानि हुई है.

Mumbai Bombay Börse
तस्वीर: UNI

नुकसान को अगर रुपये में देखा जाए तो 30 शेयर के सूचकांक वाले बीएसई से इस साल 17 लाख करोड़ रुपये बह गए. 2011 में बाजार 24 फीसदी गिरा. बीएसई के डॉलेक्स इंडेक्स को देखा जाए तो वह 35 फीसदी गिरा. डॉलेक्स इंडेक्स बीएसई सेंसेक्स की गतिविधियों को अमेरिकी डॉलर में आंकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत में आई भारी गिरावट की वजह से शेयर बाजार का इतना बुरा हाल हुआ. रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है. 2011 की शुरुआत में एक अमेरिकी डॉलर 44 रुपये का था, फिलहाल यह दर 52 रुपये प्रति डॉलर हो गई है.

रुपये में आई गिरावट के अलावा यूरोप के आर्थिक संकट और भारत की अंदरूनी हालत का भी बाजार पर बुरा असर पड़ा है. लेकिन खुद भारत सरकार की नीतियां भी निवेशकों में शंका पैदा करने लगी हैं. देश में बीते दो साल से भारी महंगाई पसरी हुई है. महंगाई कम करने के लिए सिर्फ रिजर्व बैंक सामने आया है. रिजर्व बैंक आए दिन ब्याज की दरें बढ़ा रहा है. कर्ज मंहगा होने की वजह से कारोबारियों का भरोसा कमजोर पड़ रहा है. इन बातों के अलावा निवेशक सरकार के रवैये से भी खिन्न हो गए हैं. आर्थिक सुधारों को लागू करने की रफ्तार बहुत सुस्त है.

विप्रो अध्यक्ष अजीम प्रेमजी और रिलायंस ग्रुप के मुखिया मुकेश अंबानी भी सुस्त रफ्तार को लेकर सरकार के प्रति नाराजगी जता चुके हैं. निवेशकों के भीतर यह भावना घर कर रही है कि भारत में शीर्ष सत्ता से लेकर निचले स्तर तक बहुत लेट लतीफी है. कदम कदम पर तमाम अड़चनें हैं.

बीते दो दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बड़ी तेज तरक्की की है. लेकिन हाल के दिनों में लगता है कि तरक्की के रथ को खींचते अर्थव्यवस्था के कुछ महत्वपूर्ण घोड़े भारतीय नेताओं के नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं.

रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह

संपादन: एन रंजन

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