1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत का आर्थिक आधार मजबूत

३ सितम्बर २०१०

अगर विश्व की अर्थव्यवस्था में फिर से मंदी आती है और उसकी वजह से निर्यात घटते हैं, तो नई उभरती दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर रहेगी. उसके उत्पादन का सिर्फ 20 फीसदी निर्यात पर निर्भर है.

https://p.dw.com/p/P3uH
घरेलू मांग बढ़ेगी.तस्वीर: AP

जर्मनी के आर्थिक समाचार पत्र हांडेल्सब्लाट ने लिखा है कि अनेक संकेत मिल रहे हैं कि भारत में घरेलू मांग बढ़ने वाली है. मानसून अच्छा होने की वजह से रिकार्ड पैदावार होने वाली है. इससे मुद्रास्फीति घटेगी और देहाती जनता की आय भी बढ़ेगी. खरीदारी बढ़ेगी, जो अर्थव्यवस्था में वृद्धि के लिए एक बड़ा योगदान होगा. इसके अलावा संरचना के क्षेत्र में भारी निवेश की जरूरत है और अनेक उद्यम अपनी क्षमता बढ़ाना चाहते हैं. और सबसे बड़ी बात कि वेतनों में वृद्धि से भी घरेलू मांग में तेजी आएगी.

पर्यावरणवादियों और आदिवासियों के लिए भारी जीत. ब्रितानी कंपनी वेदांता रिसोर्सेज की बॉक्साइट खनन परियोजना को अनुमति न दिए जाने पर ऐसी टिप्पणी करते हुए बर्लिन के वामपंथी दैनिक नॉएस डॉएचलांड का कहना है कि इस सिलसिले में सलाहकार समिति की रिपोर्ट निर्णायक रही है. समाचार पत्र में इस सिलसिले में कहा गया है:

इस अध्ययन का एक नतीजा निर्णायक रहा होगा : यहां बॉक्साइट के खनन से भारतीय विधिव्यवस्था में आदिवासियों का विश्वास खत्म हो सकता है, आंतरिक सुरक्षा पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा. यह माओवादी विद्रोहियों की तेजी से बढ़ती गतिविधियों की ओर इशारा था, उड़ीसा में जिन्हें असंतुष्ट, शोषित, सामाजिक रूप से पिछड़े हुए आदिवासियों का बढ़ता हुआ समर्थन मिल रहा है. यह देखना बाकी है कि कोंढ आदिवासियों के इस मामले से एक सिलसिला शुरू होगा या नहीं, उनकी जीत पक्की होगी या नहीं. बहरहाल, खनन मंत्री बीके हांडिक ने आश्वासन दिया है कि अब से हर मामले की कायदे से जांच की जाएगी.

पाकिस्तान में बाढ़ का पानी कुछ घटा है, उसकी समस्या नहीं घटी है. देश के दक्षिण में तो स्थिति पहले से बदतर हुई है. नॉए त्स्युरिषर त्साइटुंग के संवाददाता की रिपोर्ट में बाढ़पीड़ित लोगों की स्थिति की चर्चा करते हुए कहा गया है:

संकट का अंत नजर नहीं आता. सुक्कुर में हर रोज नए शरणार्थी आए जा रहे हैं. राहतकर्मियों और शरणार्थियों को पनाह देने वाले अनेक रिश्तेदार भी अब इस आर्थिक बोझ को सहने के काबिल नहीं रह गए हैं. शहरी जिंदगी पर भी इसका भारी असर पड़ रहा है. गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुलने वाले थे, लेकिन स्कूलों में शरणार्थी ठहरे हुए हैं और अनिश्चित काल के लिए उन्हें बंद रखा गया है.

बाढ़ के चलते पाकिस्तान की सरकार की विश्वसनीयता खत्म सी है, राष्ट्रपति जरदारी पर जनता का विश्वास मिट्टी में मिल चुका है. फाइनेंशियल टाइम्स डॉएचलांड में ऐसी टिप्पणी की गई है. समाचार पत्र की राय में बाढ़ के चलते पाकिस्तान में लोकतंत्र खतरे में है:

इस विपदा में सेना निखर रही है, विदेशी मददगार लोगों की तकलीफों को कम करने में काम आ रहे हैं, सिर्फ सरकार का कहीं अता पता नहीं. जहां सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय मददगार नहीं पहुंच पा रहे हैं, वहां चरमपंथियों की बन आई है. मारगला में अल खिदमत के स्थानीय नेता का कहना था कि सरकार पर किसी को यकीन नहीं है. सिर्फ सरकार के खिलाफ प्रचार ही नहीं चल रहा है. पिछले समय में तालिबान को सेना के हमलों में काफी नुकसान उठाना पड़ा था. अब सेना राहत के कामों में फंसी है, और दूसरे इलाकों में तालिबान अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है.

पहले एक हफ्ते तक खामोशी और फिर साफ साफ ठुकरा देना. लेकिन आखिरकार पाकिस्तान सरकार ने भारत की मदद स्वीकार कर ली. बर्लिन के साप्ताहिक डेर फ्राइटाग की राय में ओबामा सरकार की ओर से भारी दबाव डाला गया था. साप्ताहिक पत्रिका का कहना है:

पाकिस्तान में ओबामा की नीति का तकाजा है कि इस महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक साझेदार को मदद की एक बेड़ी में बांध रखा जाए, जिससे वह बाहर न निकल सके. इसमें भारत की मौजूदगी बहुत महत्वपूर्ण है. भारतीय मदद चीन के मुकाबले में होगा, राहत के कामों में जिनकी व्यापक उपस्थिति अमेरिकियों को कतई नहीं भाती है.

बाढ़ की इस विभीषिका के बीच कराची में हत्याओं का सिलसिला जारी है. मोटर सायकिल पर सवार कातिल आते हैं, अंधाधुंध गोली चलाकर फिर भाग जाते हैं. स्थानीय नेता इसके शिकार हो रहे हैं. यह एमक्यूएम और अवामी नेशनल पार्टी के बीच भयानक सत्ता संघर्ष का नतीजा है. समाचार पत्र फ़्रांकफूर्टर आलगेमाइने त्साइटुंग में कहा गया है:

खाई इतनी गहरी हो चुकी है, कि मध्यस्थता के लिए सरकार की कोशिशें काम नहीं आ रही हैं. सरकार के लिए यह इतना गंभीर मामला है कि बाढ़ के बावजूद अगस्त के शुरुआत में प्रधान मंत्री खुद कराची गए और दोनों पक्षों के नेताओं से उन्होंने बातचीत की. नतीजा था एक आचार संहिता पर सहमति कि दोनों पक्ष हिंसा को बढ़ावा नहीं देगे. पुलिस हालात पर काबू पाने में पूरी तरह से नाकाम है.

और इस सबके ऊपर मैच फिक्सिंग. समाचार पत्र सुएडडॉएचे त्साइटुंग में इस सिलसिले में कहा गया है:

सवाल सिर्फ इन आरोपों का नहीं है. सुरक्षा की समस्या से क्रिकेट जगत भी ग्रस्त है. पिछले साल आतंकवादियों ने श्रीलंका के खिलाडियों पर हमला किया था. उसके बाद से कोई टीम पाकिस्तान में खेलने को तैयार नहीं है. क्रिकेट के पदाधिकारी मांग कर रहे हैं कि अगर आरोप साबित हो जाएं, तो समूची टीम पर प्रतिबंध लगा दिया जाए.

संकलन: अना लेमान्न

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य