भारत-कनाडा कबाब में खालिस्तानी हड्डी
२० फ़रवरी २०१८कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत यात्रा यूं तो एक सप्ताह की है, लेकिन उसके दौरान सरकारी स्तर के कार्यक्रम काफी कम हैं. यात्रा शुरू होने से पहले ही विवाद शुरू हो गए थे और इसे किसी भी दृष्टि से शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह अपने तमाम मतभेदों के बावजूद उनका स्वर्ण मंदिर में स्वागत करने, खुद स्वर्ण मंदिर दिखाने और फिर वार्तालाप करने के इच्छुक थे. लेकिन ट्रूडो सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.
कांग्रेसी नेता अमरिंदर सिंह खालिस्तानी आतंकवाद के घोर विरोधी हैं और कनाडा को वह इसका अड्डा मानते हैं. उनका यह आरोप भी है कि ट्रूडो सरकार में रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन खालिस्तानियों के समर्थक हैं और सिखों के वोट की खातिर सरकार भी उन्हें प्रश्रय देती है. सज्जन ने इन आरोपों को "अपमानजनक" और "हास्यास्पद" बताया है लेकिन इस बात से शायद ही कोई इंकार कर सके कि खालिस्तान आंदोलन को कनाडा से भारी आर्थिक और राजनीतिक समर्थन मिलता था. वहां भारतीय मूल के 12 लाख लोग रहते हैं जो वहां की कुल आबादी का तीन प्रतिशत हैं.
1980 के दशक में हुए हवाई जहाज अपहरण और कनिष्क विमान हादसे पर कनाडा सरकार की कार्रवाई भी भारत में रहने वाले अनेक लोगों को बेहद लचर लगी है. बहरहाल, यात्रा शुरू होने के ऐन पहले कनाडा सरकार ने अमरिंदर सिंह का प्रस्ताव मान लिया. अब दोनों के बीच मुलाकात और बातचीत होगी, लेकिन कार्यक्रम के मुताबिक इसके लिए केवल 20 मिनट ही मिलेंगे. अब इतने कम समय में क्या विचार-विमर्श हो सकेगा, इसके बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है.
ट्रूडो के भारत आगमन पर उनकी आगवानी करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो क्या, केबिनेट स्तर का मंत्री भी नहीं पहुंचा. एक राज्यमंत्री ने उनका स्वागत किया. इसके साथ ही इस आशय की अफवाहें गर्म हो गयीं कि भारत सरकार उनकी यात्रा को महत्व देना तो दूर, हकीकत में इसे नजरअंदाज ही कर कर रही है. हालांकि यह जरूरी नहीं कि प्रधानमंत्री किसी विदेशी राज्याध्यक्ष का स्वागत करने हवाई अड्डे जाएं, लेकिन विदेशी मेहमानों के प्रति अपनी गर्मजोशी के लिए मशहूर नरेंद्र मोदी से लोग अक्सर यह अपेक्षा करते हैं. लेकिन उनके साथ शुक्रवार को ट्रूडो की आधिकारिक वार्ता भी रस्म अदायगी जैसी ही है क्योंकि मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी भी खालिस्तानी पृथकतावाद और आतंकवाद के घोर विरोधी हैं. जब तक पंजाब में अकाली दल की सरकार थी, तब तक उसे बहुत-सी बातों की अनदेखी करनी पड़ती थी लेकिन अब इस सहयोगी दल की वहां सरकार भी नहीं है.
दरअसल जस्टिन ट्रूडो की भारत यात्रा के प्रति यहां इसलिए भी बहुत उत्साह नहीं दिख रहा क्योंकि भारत-कनाडा संबंधों का आर्थिक आधार भी बहुत मजबूत नहीं है और दोनों देशों के बीच केवल प्रतिवर्ष केवल आठ अरब डॉलर का व्यापार होता है. हां, यह जरूर है कि वहां एक लाख से अधिक भारतीय छात्र पढ़ते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि व्यापार और उद्योग के प्रति सबसे अधिक दोस्ताना रवैया रखने वाले नेता की है. जाहिर है कि कनाडा के व्यापारी और उद्योगपति भारत जैसे बड़े बाजार और बड़ी अर्थव्यवस्था में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने के लिए बेताब हैं. लेकिन इस यात्रा के दौरान इन क्षेत्र में भी कोई बहुत अधिक महत्वपूर्ण बात नहीं होने जा रही है. उलटे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि संभवतः मोदी भी ट्रूडो के साथ बातचीत के दौरान कनाडा में खालिस्तानी समर्थन का मुद्दा उठाएंगे. यानी अधिक संभावना इसी बात की है कि यह यात्रा बिना किसी उल्लेखनीय उपलब्धि के समाप्त हो जाएगी.