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भदेसी हैं चमगादड़ भी

१४ सितम्बर २०१०

बोलचाल से ही तो समझ में आता है, कि देस कहां है. अब पता चला है कि यह बात सिर्फ इंसानों पर भी लागू नहीं होती. चमगादड़ भी देसी भासा बोलते हैं, भदेसी होते हैं.

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तस्वीर: Max-Planck-Institut

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि चमगादड़ आंचलिक भाषा बोलते हैं, जिसके जरिए इलाके और नस्ल के मुताबिक उनकी पहचान बनी रहती है. न्यू साउथ वेल्स के तटीय इलाके में अपने शोध के दौरान ऑस्ट्रेलिया के फॉरेस्ट साइंस सेंटर के शोधकर्ता ब्रैड लॉ को पता चला कि जैसे जैसे इलाका बदलता है, चमगादड़ों की आवाज के अंदाज में फर्क आता जाता है.

इलाके के साथ साथ चमगादड़ों की नस्ल में भी थोड़ा फर्क आने लगता है और ब्रैड लॉ का कहना है कि काफी समय से वैज्ञानिकों का ख्याल था कि दूसरे जानवरों की तरह उनकी बोली में भी जरूर फर्क होगा, लेकिन अब यह बात अध्ययन के जरिए साबित की जा सकी है.

बुश टेलीग्राफ मैगजीन के नए अंक में उन्होंने कहा कि बोली के आधार पर चमगादड़ की प्रजातियों के चयन की क्षमता अभी विकसित करनी पड़ेगी. उनकी राय में बोली पहचानने के मामले में तेजी लाना इस सिलसिले में बेहद जरूरी है. एक सी बोली पहचानने के क्षेत्र में तरीकों को स्वचालित बनाना इसकी एक महत्वपूर्ण शर्त है.

फॉरेस्ट साइंस सेंटर के अलावा उलॉन्गगॉन्ग व बालारात विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस परियोजना में भाग लिया था. उन्होंने चमगादड़ों की बोली के चार हजार नमूने इकट्ठा किए और उनके विश्लेषण के लिए एक खास सॉफ्टवेयर तैयार किया गया.

दिशा निर्देशन और शिकार के लिए चमगादड़ अपनी बोली का इस्तेमाल करते हैं. साथ ही इसके जरिए अपने और दूसरे कुनबों के बीच फर्क भी तय किया जाता है - बिल्कुल इंसानों की तरह.

वैसे इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक मान रहे हैं कि उनका शोध अभी प्रारंभिक स्तर पर है. एक तरीका बनाया जा सका है, अभी इसे कारगर बनाना बाकी है. फिर इसके आधार पर पशु संरक्षण के क्षेत्र में किफायती प्रणालियां विकसित की जा सकती हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ए कुमार