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समाज

ब्रेक्जिट नो डील से जर्मनी में दवाओं की किल्लत का अंदेशा

२९ मार्च २०१९

जर्मनी ने चेतावनी दी है कि यदि ब्रेक्जिट पर डील नहीं होती है तो ईयू को दवाओं की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है. खून की जांच से जुड़े प्रोडक्ट पर खास तौर से असर दिखेगा और जर्मनी में अप्रैल से ही यह दिखना शुरू हो सकता है.

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Deutschland Blutspende
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Marzoner

जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान ने कहा है कि अगर ब्रिटेन बिना किसी डील के यूरोपीय संघ से अलग हो जाता है तो ऐसे में "हजारों लाखों की संख्या में" चिकित्सीय सामग्री की कमी हो जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रेक्जिट होने के बाद कंपनियों और उनके द्वारा बनाई जाने वाली दवाओं और मेडिकल सामान के लाइसेंस को ले कर समस्या हो सकती है. यह समस्या सिर्फ यूरोपीय संघ की ही नहीं, बल्कि ब्रेक्जिट के बाद के ब्रिटेन की भी होगी.

श्पान ने इन बातों पर ध्यान दिलाया:

- दिल के मरीजों द्वारा इस्तेमाल होने वाला पेसमेकर, कई तरह के मेडिकल इम्प्लांट और खून के नमूने लेने के लिए इस्तेमाल होने वाला सामान उपलब्ध नहीं रहेगा.

- जिन चीजों के सर्टिफिकेशन की महारत ब्रिटेन के पास है, उन चीजों को सर्टिफाई करने के लिए विशेषज्ञों को खोजने में ईयू को काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

- ब्रसेल्स और ईयू के सदस्यों को एक साझा "क्राइसिस प्लान" और ऐसी व्यावहारिक प्रक्रियाओं के बारे में एकमत होना होगा जिससे नो-डील ब्रेक्जिट से निपटा जा सके.

- ब्रिटेन द्वारा सर्टिफाई की जाने वाली सामग्री के ईयू में वितरण के लिए एक साल के वक्त की जरूरत पड़ेगी.

- ईयू के सदस्य देश भी सर्टिफिकेशन कर सकें, इसके लिए प्रक्रिया को तेज करना होगा.

श्पान ने चेतावनी भरे स्वर में कहा कि यदि ब्रेक्जिट सुनियोजित रूप से नहीं होता है, तो "यह मानना सही होगा कि हजारों लाखों की संख्या में मेडिकल प्रोडक्ट्स की यूरोपीय संघ के 27 देशों में पहुंच नहीं रह जाएगी और इसलिए ये यूरोप के बाजार के लिए उपलब्ध ही नहीं होंगे."

उन्होंने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा चिंता इन-विट्रो से जुड़े उत्पादों को लेकर है, मिसाल के तौर पर खून में एचआईवी की जांच के लिए इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट, "मुझे इस बात की चिंता है कि जर्मनी में मरीजों के लिए खून की जांच वाले प्रोडक्ट अप्रैल 2019 के मध्य से ही उपलब्ध नहीं रहेंगे."

Infografik Brexit next steps EN

मेडिकल सामग्री को ले कर यह समस्या इसलिए है क्योंकि अगर 12 अप्रैल तक ब्रिटेन की संसद ब्रेक्जिट पर किसी डील पर सहमति नहीं बना पाती है तो ब्रिटेन को एक तीसरे देश के रूप में देखा जाएगा और उसके विशेषज्ञों द्वारा सर्टिफाई किए गए उत्पादों को ईयू के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकेगा. साथ ही जो कंपनियां ब्रिटेन में दवाएं बनाती हैं और जो यूरोप के विभिन्न हिस्सों से ब्रिटेन को दवाएं निर्यात करती हैं, दोनों को ही अतिरिक्त नौकरशाही और अतिरिक्त लागत का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में सप्लाई चेन पर भी भारी असर पड़ेगा.

ब्रिटेन से सालाना साढ़े चार करोड़ दवाओं के पैकेट ईयू में निर्यात किए जाते हैं जबकि आयात की संख्या 3.7 करोड़ पैकेट की है. दवाओं की किल्लत को ले कर यह डर नया नहीं है. रिपोर्टें बताती हैं कि ब्रिटेन ब्रेक्जिट की चिंता में ही भारी मात्रा में दवाओं की स्टॉकपाइलिंग कर रहा है. ब्रिटेन में इस्तेमाल होने वाली तीन चौथाई दवाएं ईयू से ही आती हैं. ब्रिटेन सरकार ने कंपनियों को कम से कम छह हफ्ते तक की दवाएं जमा करने को कहा है. इसमें काउंटर पर मिलने वाली सात हजार तरह की दवाएं शामिल हैं.

रिचर्ड कॉनर/आईबी