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ब्रिटेन में गुरुवार को संसदीय चुनाव

५ मई २०१०

ब्रिटेन में संसदीय चुनावों से एक दिन पहले राजनीतिक नेताओं ने परिवर्तन और निरंतरता का आह्वान करते हुए मतदाताओं से वोट देने की अंतिम अपील की है.

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टेलिविज़न बहसतस्वीर: AP

ब्रिटेन में संसदीय चुनाव हो रहा है और सबसे मुंह पर एक ही शब्द है, चेंज. सभी पार्टियां परिवर्तन की बात कर रही हैं, यहां तक कि 13 साल से सत्ता पर काबिज़ लेबर पार्टी भी. खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में परिवर्तन, बेजान हो रही सामाजिक संरचनाओं में परिवर्तन और स्वयं संसद में परिवर्तन जो सांसदों के भत्ता स्कैंडल के चलते सुर्खियों में रही है. लेकिन एक और परिवर्तन भी हो रहा है. दोदलीय राजनीतिक संरचना वाले ब्रिटेन में तीसरी पार्टी का स्थापित होना.

NO FLASH Großbritannien Wahlen TV-Duell Gordon Brown Nick Clegg und David Cameron
तस्वीर: AP

संसदीय चुनावों से ठीक पहले ब्रिटेन में कांटे की टक्कर है. 6 मई को चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि ब्रिटेन ने अपना नया प्रधानमंत्री चुना है या नहीं, लेकिन सारे संकेत इस बात के हैं कि यह चुनाव ब्रिटेन के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने जा रहा है. जनमत सर्वेक्षणों का कहना है कि किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा. और अब प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन भी स्वीकार करने लगे हैं कि जीत संभव नहीं होगी. अंतिम टेलिविज़न बहस में उन्होंने माना था कि उनका काम आसान नहीं है.

यह बात उन्होंने उस घटना के बाद स्वीकार की जिसमें उन्होंने एक लेबर मतदाता को उनसे बहस करने के कारण बाद में हठी महिला बताया था. माइक ऑन होने के कारण इसे सुन लिया गया और बाद में उन्हें उस महिला से मिलकर माफ़ी मांगनी पड़ी. यह घटना मीडिया में सुर्खियों में रही लेकिन लेबर पार्टी पर इसका बहुत असर हुआ नहीं दिखता है.

Flash-Galerie Wahl in Großbritannien David Cameron
टोरी नेता डेविड कैमेरनतस्वीर: picture-alliance/dpa

पार्टी सर्वेक्षणों में तीसरे स्थान पर बनी हुई है. पहले स्थान पर डेविड कैमेरन की विपक्षी टोरी पार्टी है और दूसरे स्थान पर परंपरागत रूप से तीसरे निचले स्थान पर रहने वाली निक क्लेग की लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी. कंजरवेटिव नेता डेविड कैमेरन इस पर ज़ोर दे रहे हैं कि वे यूरो ज़ोन से दूर रहकर आर्थिक बहाली की सुरक्षा करेंगे. "मुझे एक बात साफ़ कर देने दीजिए कि मैं क्या नहीं करूंगा, ग्रीस इतनी सुर्खियों में हैं, मैं कभी यूरो में शामिल नहीं होउंगा. पाउंड हमारी मुद्रा रहेगी."

लेबर का नुकसान लिबरल डेमोक्रैटों का लाभ साबित हुआ है. ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार टेलिविज़न बहस के लिए हां कर प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने अपनी डूबती नैया को बचाने की कोशिश की थी, लेकिन इसका लाभ निक क्लेग ने अपनी पार्टी को दिलवाया. पहली बहस में जनता का समर्थन जीतकर उन्होंने अपनी पार्टी में जोश भर दिया है और दो दलीय व्यवस्था वाले ब्रिटेन में वे वोटरों को भरोसा दिला रहे हैं कि लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी को दिए गए वोट को वे बर्बाद वोट न समझें. "मैं समझता हूं कि हमें चीज़ें अलग तरह से करनी होंगी, निष्पक्षता, समृद्धि और रोज़गार मुहैया करानी होगा जिसके आप और आपके परिवार अधिकारी हैं."

अधिकांश सर्वेक्षणों में टोरी पार्टी को लेबर और लिबरल पार्टियों पर हल्की बढ़त मिली हुई है. लेकिन टोरी पार्टी इस बढ़त के साथ अकेले बहुमत नहीं जुटा पाएंगी. ब्रिटेन में त्रिशंकु संसद का बनना तय लगता है. 1970 के दशक के बाद पहली बार. लेकिन गॉर्डन ब्राउन का कहना है कि बिना लड़े हार नहीं मानेंगे. टेलिविज़न बहस के हां कहना उनकी इसी रणनीति का नतीज़ा था. "मैं आर्थिक बहाली के लिए लड़ रहा हूं क्योंकि मैं यूरोप के इर्द गिर्द जो घटनाएं देख रहा हूं और यह देखते हुए कि आर्थिक बहाली कितनी कमज़ोर है, मैं जानता हूं कि आप कोई जोखिम नहीं उठा सकते, आपको इस बात की गारंटी करनी होगी कि आप इन अहम महीनों में अर्थव्यवस्था की मदद करेंगे."

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निक क्लेग ने लोकप्रियता बढ़ाईतस्वीर: AP

आर्थिक मुश्किलों का दौर, कौन सही कौन ग़लत का संशय और उस पर यह तथ्य कि कोई नहीं जानता कि सांसदों द्वारा भत्तों के सिलसिले में की गई धांधली पर मतदाता की प्रतिक्रिया क्या होगी. वे निराश होकर घर बैठ जाएंगे या नाराज़ होकर ग्रीन पार्टी जैसी छोटी पार्टियों को वोट देंगे. नतीज़ा दिलचस्प होगा.

ब्रिटिश चुनाव से ठीक पहले कोई किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं करना चाहता. लेकिन इतना साफ़ है कि यह संसदीय चुनाव ऐतिहासिक साबित हो सकता है और ब्रिटेन के राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा हमेशा के लिए बदल सकता है. लोगों की चिंता आर्थिक स्थिति, शिक्षा और विदेशियों का आना है.

ये मुद्दे हैं लेकिन ब्रिटेन की चुनाव व्यवस्था के कारण यह कोई नहीं कह सकता कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगे. सर्वेक्षण में कंजरवेटिव पार्टी आगे हैं लेकिन युवा और आधुनिक दिखने वाले डेविड कैमेरन के लिए बहुमत का सफ़र दूर लगता है. लंदन के ब्रुनेल विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्री प्रो. जस्टिन फ़िशर कहते हैं, "मैं समझता हूं कि पूर्ण बहुमत पाना कंजरवेटिव्स के लिए बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि इसके लिए उन्हें कम से कम 116 और सीटें जीतनी होंगी."

लिबरल डेमोक्रैट्स की लोकप्रियता ने ब्रिटेन में त्रिशंकु संसद की संभावना को बड़ा कर दिया है. बहुमत न लेबर को हासिल होगा और न टोरी को लेकिन लिबरल डेमोक्रैट्स भी सरकार बनाने की हालत में नहीं होंगे. निक क्लेग को अपनी लोकप्रियता का लाभ चुनावों में क्यों नहीं मिलेगा, इसके बारे में प्रो. जस्टिन फ़िशर कहते हैं, "इस समर्थन का मतलब संसद में ज़्यादा सीट नहीं होगा क्योंकि ब्रिटेन में जर्मनी की तरह आनुपातिक चुनाव पद्धति नहीं है."

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प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउनतस्वीर: AP

ब्रिटिश संसद में 650 सीटें हैं और हर सीट सामान्य बहुमत से जीती जाती है. भारत की तरह. लिबरल डेमोक्रैट्स की समस्या यह है कि वे बहुत कम सीटें जीतेंगे. असल फ़ैसला कुछ 150 सीटों पर होगा जहां दो उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर है. और यदि सचमुच त्रिशंकु संसद बनती है तो लगभग 8 दशक बाद लिबरल डेमोक्रैट्स फिर से सत्ता में लौटेंगे और किसी एक बड़ी पार्टी के साथ साझा सरकार बनाएंगे या फिर किसी अल्पमत सरकार का समर्थन करेंगे. हर हालत में लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी का प्रबाव बढ़ने के संकेत हैं. लेकिन दूसरी छोटी पार्टियां भी हैं. एडिनबरा के लोक प्रशासन विभाग के प्रो. एबरहार्ड बोर्ट कहते हैं, "बहुत सारी छोटी मछलियां हैं जो किसी पार्टी को समर्थन के बदले अपनी मांगों को मनवाने की कोशिश करेंगी."

लेकिन छोटी पार्टियों की संभावना इस पर निर्भर करेगी कि बड़ी पार्टियां बहुमत से कितनी दूर या कितनी नज़दीक हैं. यदि वे बहुमत से दूर होंगी तो लिबरल डेमोक्रैटों का समर्थन पाने की कोशिश करेंगी. और यदि बहुमत से दूरी कुछ ही सीटों की होगी तो स्कॉटलैंड और वेल्स के राष्ट्रवादियों या उत्तरी आयरलैंड की पार्टियों की बन आएगी. सवाल यह है कि लोग मत देने जाएंगे या नहीं. लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स के रोडनी बार्कर का कहना है कि चुनावी नतीज़ो को अनिश्चितता के कारण लोग बड़ी संख्या में मत देने जाएंगे. "चुनाव परिणाम जितना अनिश्चित होता है वह उतना ही घुड़दौड़ या फ़ुटबॉल मैच जैसा हो जाता है और कम से कम लोगों की दिलचस्पी बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है."

और इस स्थिति ने ब्रिटेश चुनावों का अत्यंत रोमांचक बना दिया है. प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने हार की आशंका से पहले ही कह दिया है कि वह हार की ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं. कुर्सी किसके हाथ जाएगी यह चुनाव के बाद ही साफ़ होगा.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: राम यादव