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ब्रिक्स से भारत को क्या हासिल हुआ?

राहुल मिश्र
२२ नवम्बर २०२०

ब्रिक्स बैंक ने पिछले कुछ महीनों में चीन को 49 हजार करोड़ और भारत को 7,000 करोड़ रुपये का ऋण दिया है. दिल्ली एनसीआर की रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट सिस्टम कॉरिडोर परियोजना को 3,700 करोड़ रुपये का ऋण भी यहीं से मिला है.

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Narendra Modi
फाइल फोटो तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/M. Metzel

कोविड-19 महामारी चीन के साथ ब्राजील और भारत के तनावपूर्ण संबंधों और तमाम अंतर्विरोधों और विवादों को परे हटाते हुए ब्रिक्स की 12वीं शिखर वार्ता 17 नवंबर को सम्पन्न हुई. बैठक में जहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद पर और कड़ी कार्यवाही की वकालत की, तो वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोविड-19 से लड़ने के लिए साझा प्रयास और वैक्सीन बनाने की गुहार लगाई.

इस शिखरवार्ता का सबसे बड़ा परिणाम रहा – मॉस्को घोषणापत्र. 97 बिंदुओं वाले इस महत्वाकांक्षी घोषणापत्र में वह सब कुछ है जिस पर अगर अमल हो जाय तो न सिर्फ यह पांच ब्रिक्स-सदस्य देश दुनिया के बेहतरीन देशों की गिनती में होंगे, बल्कि इन देशों की अर्थव्यवस्थाएं, ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण जरूरतें और आम आदमी की जिंदगियों में भी बड़े और मूलभूत परिवर्तन आ जाएंगे.

चीन के अलावा ब्राजील, रूस, भारत, और दक्षिण अफ्रीका जैसी दुनिया की पांच तेजी से उभरती हुई आर्थिक ताकतों के इस बहुपक्षीय समूह की यह पहली वर्चुअल बैठक थी, जिसकी अध्यक्षता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की. वैसे तो यह अधिवेशन जुलाई में सेंट पीटर्सबर्ग में होना था लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से ऐसा नहीं हो सका. इसके बावजूद, रिपोर्टों के अनुसार पिछले एक साल में ही ब्रिक्स देशों ने अलग-अलग स्तर पर 100 से ज्यादा आपसी बैठकें की हैं. इसके साथ ही साथ एक शिखर वार्ता, 4 शेरपा बैठकें और 22 मंत्री-स्तरीय वार्ताएं भी हुई हैं. जी-20 देशों के समूह में भी इन देशों की अच्छी खासी भूमिका है. जी-20 की शिखर वार्ता 21-22 नवंबर को होनी है. इस संदर्भ में ब्रिक्स शिखर वार्ता की सफलता महत्वपूर्ण स्थान रखती है. रूस के अध्यक्षीय कार्यकाल के बाद अब 2021 में भारत ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा.

2010 में दक्षिण अफ्रीका के सदस्यता ग्रहण करने के बाद ब्रिक्स अपने इस स्वरूप में सामने आया. इससे पहले 2009 में भारत, चीन, रूस, और ब्राजील ने ‘ब्रिक' की स्थापना की थी. कुछ विशेषज्ञों ने इंडोनेशिया को भी जोड़ने की वकालत की लेकिन इस विचार के बहुत समर्थक नहीं मिले. जो भी हो, पिछले एक दशक में ब्रिक्स ने कई बड़े मील के पत्थरों को पार किया है. उदाहरण के तौर पर 2020 तक इन पांचों देशों का कुल जीडीपी 20 ट्रिलियन के आंकडे को पार कर चुका है. ब्रिक्स के यह पांच देश आपसी व्यापार और निवेश बढ़ाने पर भी ध्यान दे रहे हैं. इनमें से प्रमुख सेक्टर हैं कृषि, डिजिटल टेक्नॉलजी, ऊर्जा और स्वास्थ्य सम्बंधी सेवाएं. इन्हीं प्रयासों को मूर्त रूप देने के लिए इन्होंने 2013 में ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल की भी स्थापना की थी.

ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल और ब्रिक्स बिजनेस फोरम का एक प्रमुख उद्देश्य एमएसएमई सेक्टर को बढ़ाना भी रहा है. भारत और चीन के लिए तो यह खास तौर पर अहम स्थान रखता है. 2014 में इन देशों ने ब्रिक्स की साझा बैंक - न्यू डिवेलपमेंट बैंक (ब्रिक्स बैंक) की स्थापना की. यह न्यू डिवेलपमेंट बैंक ही है जिसने पिछले कुछ महीनों में अरबों रुपये के ऋण दिए हैं जिसमें चीन (49 हजार करोड़) के साथ-साथ भारत (7000 करोड़) और दक्षिण अफ्रीका (7000 करोड़) को भी ऋण मिला है.

लेकिन अगर इन देशों ने सिर्फ स्वास्थ्य सेवाओं को विकसित करने में एक दूसरे के साथ जमकर और ईमानदारी से काम किया होता, तो ये देश कोविड-19 से प्रभावित देशों की सूची में इतने ऊपर नहीं होते और हजारों करोड़ रुपये शायद पहले ही हजारों जाने बचा देते. चीन को छोड़ दें तो 2020 के शुरूआती महीनों में यह सभी देश कोविड महामारी से बुरी तरह प्रभावित देशों में कहीं नहीं थे और आज कोविड के कुल मामलों में भारत दूसरे, ब्राजील तीसरे, रूस पांचवें, दक्षिण अफ्रीका सोलहवें पायदान पर है. दुनिया का सबसे पहले कोविड प्रभावित देश चीन आज प्रभावित देशों की सूची में काफी नीचे है और ऐसा कैसे हुआ यह कोई नहीं बता सकता. बहरहाल, गौरतलब बात यह है कि स्वास्थ्य संबंधी एहतियातों और हॉस्पिटल और मूलभूत चिकित्सा सुविधाओं से हजारों जानें बच सकती थीं.

इसके बावजूद, यह कहना बेमानी होगा कि ब्रिक्स से भारत को कुछ हासिल ही नहीं हुआ. कोविड लोन के अलावा भी कई मोर्चों पर न्यू डिवेलपमेंट बैंक भारत की मदद कर रहा है.  न्यू डिवेलपमेंट बैंक ने इसी हफ्ते दिल्ली एनसीआर की रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आरआरटीएस) कॉरिडोर परियोजना को 3700 करोड़ रुपये का ऋण देने का निर्णय लिया है. रिपोर्टों के अनुसार दिल्ली सरकार ने इतना ही ऋण इसी साल सितंबर में भी लिया था. माना जा रहा है कि लगभग 80 किलोमीटर और 30 हजार करोड़ से ज्यादा लागत की यह रेल मल्टीमोडल परियोजना 2025 तक दिल्ली को गाजियाबाद के रास्ते मेरठ से जोड़गी. इसके अलावा दिल्ली-गुरुग्राम-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरीडोर बनाने की योजना भी है. इसमें दो राय नहीं कि पर्यावरण प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी और अप्राकृतिक जनसंख्या दबाव झेल रही दिल्ली के लिए यह बड़ी राहत का कदम होगा.

ब्रिक्स जैसी संस्थाओं का असली मकसद यह नहीं होना चाहिए कि वह रूस और चीन के लिए अमेरिका से प्रतिस्पर्धा का हथियार बने या भारत ब्रिक्स की सदस्यता को चीन से कड़वाहट या अमेरिका से दोस्ती के पैमाने पर तौल कर देखे. इसके उलट, पांच विकासशील देशों के इस संगठन को अपनी ताकत आपसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और मानव संसाधनों के विकास में लगानी चाहिए.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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