प्रशांत महासागर में गिरा चीनी स्पेस स्टेशन
२ अप्रैल २०१८जुलाई 2016 में पहली बार यह खबर बाहर आई कि चीन का अंतरिक्ष स्टेशन तियांगॉन्ग-1 नियंत्रण से बाहर हो चुका है. तब अंदाजा लगाया गया कि तियांगॉन्ग-1 2017 के अंत तक पृथ्वी पर गिरेगा. लेकिन गणनाएं गलत साबित हुई. मार्च 2018 के अंत में पता चला कि तियांगॉन्ग-1 अब पृथ्वी पर गिरने ही वाला है.
दो अप्रैल 2018 की सुबह आखिरकार यह हो ही गया. चीन के मानव अंतरिक्ष इंजीनियरिंग सेंटर के मुताबिक तियांगॉन्ग-1 प्रशांत महासागर में अनियंत्रित ढंग से पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल हुआ. वायुमंडल में घुसते समय उसकी रफ्तार 26,000 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. तेज रफ्तार, घर्षण और उच्च तापमान के चलते स्पेस स्टेशन वायुमंडल में दाखिल होते समय ही धधकते हुए टूटता चला गया. 34.1 फुट लंबे अंतरिक्ष स्टेशन का ज्यादातर हिस्सा आकाश में ही जल गया. बचे खुचे टुकड़े दक्षिण प्रशांत महासागर के वीरान इलाके में गिरे.
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 8.5 टन वजनी तियांगॉन्ग-1 का करीब 20 से 30 फीसदी वजन महासागर में गिरा होगा. प्रशांत महासागर में इसका गिरना एक बड़ी राहत थी. क्रैश से करीब दो घंटे पहले चीन के वैज्ञानिकों ने कहा कि स्पेस स्टेशन ब्राजील के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर साओ पाओलो पर गिरेगा. इस जानकारी से साओ पाओलो में अफरा तफरी सी मच गई.
हालांकि नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने इस दावे का खंडन किया. दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों ने बताया कि स्पेस स्टेशन समुद्र में क्रैश होने जा रहा है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के रि एंट्री एक्सपर्ट होल्गर क्राग के मुताबिक, "पृथ्वी के वायुमंडल में दोबारा लौटने की जगह का सटीक अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता है." क्राग कहते हैं कि अंतरिक्ष से गिरती ऐसे मलबे से इंसान को बहुत ही कम खतरा होता है. इसकी संभावना इतनी है कि किसी एक शख्स पर एक साल में दो बार आकाशीय बिजली गिरे.
आम तौर पर भारी उपग्रहों या अंतरिक्ष स्टेशन में रि एंट्री बूस्टर लगाए जाते हैं. मशीनों की समय सीमा खत्म होने पर इन बूस्टरों को सक्रिय किया जाता है. बूस्टर भारी भरकम मशीन को पृथ्वी के निर्जन इलाके की तरफ लाते हुए क्रैश करने में मदद करते हैं. लेकिन तियांगॉन्ग-1 से पूरी तरह संपर्क टूट गया. स्पेस स्टेशन पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो चुका था.
ओेएसजे/एनआर (एएफपी, डीपीए, रॉ़यटर्स)