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ब्रह्मपुत्र पर चीनी बांध से बढ़ी चिंता

प्रभाकर मणि तिवारी
४ दिसम्बर २०२०

गलवान के मुद्दे पर आपसी तनातनी के बाद चीन ने खासकर पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों में कई परियोजनाएं शुरू की हैं. इससे भारत में चिंता है और जवाबी कदमों पर विचार किया जा रहा है.

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Grenzkonflikt China Indien
तस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

चीन सरकार की ओर से अरुणाचल प्रदेश से सटे इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बनाने के फैसले ने भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं. भारत ने इसके बारे में चीन से भी अपनी चिंता जाहिर की है. साथ ही इसके प्रतिकूल असर से निपटने के लिए अरुणाचल में चीनी सीमा पर एक पनबिजली परियोजना बनाने पर भी विचार शुरू हो गया है. गलवान के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनातनी के बाद चीन ने पूर्वोत्तर में कई परियोजनाएं शुरू की हैं. इनमें रेलवे समेत कई आधारभूत परियोजनाएं शामिल है. अब इस विशालकाय बांध के निर्माण की उसकी योजना को भी भारत पर दबाव बनाने की उसकी रणनीति माना जा रहा है.

चीनी परियोजना

चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है. अगले साल से इस परियोजना पर काम शुरू हो जाएगा. चीन की सरकारी मीडिया ने इसी सप्ताह इस परियोजना का ब्योरा देते हुए कहा था कि बांध बन जाने पर बांध बनने से दक्षिण एशियाई देशों से सहयोग के रास्ते खुलेंगे. चाइनीज पॉवर कॉरपोरेशन के चेयरमैन यान झियोंग ने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स से कहा है कि यारलंग जोंगबो नदी के निचले इलाके में इस परियोजना के बन जाने से आंतरिक सुरक्षा मजबूत होगी. साथ ही पानी की उपलब्धता भी बढ़ेगी.

तिब्बत में ब्रह्मपुत्र को इसी नाम से जाना जाता है. इस बांध का निर्माण तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के मेडॉग इलाके में किया जाना है जो अरुणाचल प्रदेश सीमा पर नियंत्रण रेखा से सटा है. पावर कॉरपोरेशन ने बीते 16 अक्तूबर को ही तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र प्रशासन के साथ उक्त परियोजना के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. भारतीय सीमा से लगे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में इंसानों की आखिरी बस्ती मेडॉग को हाल में ही हाइवे के जरिए देश के बाकी हिस्सों से जोड़ा गया था.

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चीन अरुणाचल प्रेदश पर दावा करता है

चीन पहले ही तिब्बत में 111अरब रुपये की लागत से एक पनबिजली केंद्र बना चुका है. वर्ष 2015 में बना यह चीन का सबसे बड़ा बांध है. चाइना सोसाइटी फॉर हाइड्रोपॉवर की 40वीं वर्षगांठ के मौके पर पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन यान झियोंग ने कहा था, यह बांध अब तक का सबसे बड़ा होगा. यह चीन के पनबिजली उद्योग के लिए भी ऐतिहासिक मौका होगा.

पड़ोसियों की चिंता

इस बड़े बांध की तैयारी ने भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ा दी है. दोनों ही देश ब्रह्मपुत्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं. भारत ने चीन को अपनी चिंताओं से साफ अवगत करा दिया है. हालांकि चीन ने इन चिंताओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह दोनों देशों के हितों का ध्यान रखेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के इस विशालकाय बांध की वजह से भारत के पूर्वोत्‍तर राज्‍यों और बांग्लादेश में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो सकती है.

इसके अलावा इसके जरिए चीन पूर्वोत्तर राज्यों में बाढ़ के हालात पैदा कर सकता है. दरअसल, तिब्‍बत स्‍वायत्‍त इलाके से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्‍य के जरिए देश की सीमा में प्रवेश करती है. अरुणाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग कहा जाता है. इसके बाद यह नदी असम पहुंचती है जहां इसे ब्रह्मपुत्र कहा जाता है. असम से होकर ब्रह्मपुत्र बांग्‍लादेश में प्रवेश करती है. ब्रह्मपुत्र को भारत के पूर्वोत्‍तर राज्‍यों और बांग्‍लादेश की जीवनरेखा माना जाता है. लाखों लोग अपनी आजीविका के लिए इस नदी के पानी पर निर्भर हैं.

भारत की तैयारी

तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के चीन के ऐलान के बाद भारत भी अरुणाचल में इस नदी पर एक बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर रहा है. यह पूर्वोत्तर को पानी की कमी और बाढ़ जैसे खतरों से बचाएगा. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय में आयुक्त (ब्रह्मपुत्र और बराक) टी. एस. मेहरा कहते हैं, "राज्य में दस हजार मेगावाट की एक पनबिजली परियोजना लगाने पर विचार चल रहा है. चीनी बांध के प्रतिकूल असर को कम करने के लिए अरुणाचल में बड़े बांध की जरूरत है. यह प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है. बांध बन जाने पर भारत की पानी भंडारण करने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी."

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प्रेमा खांडू और किरेन रिजुजूतस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

विशेषज्ञों की राय में ब्रह्मपुत्र पर भारत की ओर से प्रस्तावित परियोजना चीनी बांध के असर को कम कर देगी. ट्रांस बॉर्डर नदी समझौते के मुताबिक, भारत और बांग्लादेश को ब्रह्मपुत्र का पानी इस्तेमाल करने का अधिकार है. भारत ने चीन के अधिकारियों से समझौते का पालन करने को कहा है. चीन ने हालांकि इसका भरोसा दिया है. लेकिन इस मामले में उसका ट्रैक रिकार्ड ठीक नहीं है. इसलिए सरकार ने भी प्रस्तावित बांध से पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है.

विशेषज्ञों की चेतावनी

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि चीन सरकार को इस बात का भरोसा देना चाहिए कि चीनी इलाके में ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित विशालकाय बांध का अरुणाचल व असम पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल उक्त परियोजना के प्रतिकूल असर के बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन यह भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के लिए भी चिंता का गंभीर विषय है. ब्रह्मपुत्र के निचले इलाके में प्रस्तावित बांध इन देशों के लिए खतरे की घंटी है.

पर्यावरण विज्ञानी मोहित कुमार रक्षित कहते हैं, "डोकलाम और खासकर गलवान में हुए विवाद के बाद चीन ने अचानक देश की पूर्वोत्तर सीमा पर अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. उन इलाकों में इंसानी बस्तियों के अलावा रेलवे व सड़क परियोजनाएं तेजी से बनाई जा रही हैं. अब प्रस्तावित बांध परियोजना भी उसकी दबाव बढ़ाने की रणनीति का ही हिस्सा है.” अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीसी रायचौधरी का कहना है, "भारत के नजरिए से देखें तो उस परियोजना के चलते पूर्वोत्तर इलाके में बाढ़, पानी की कमी, नदी के रास्ता बदलने औऱ सूखे का खतरा बढ़ जाएगा. यह परियोजना चीन की बांह उमेठने की रणनीति का हिस्सा है.”

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