बोस्फोरस में फंसे
तुर्की के इस्तांबुल में सीरिया से आए इतने शरणार्थी रह रहे हैं जितने सारे यूरोप में. बहुत से शरणार्थियों को यह शहर जेल सा लगता है. वे अपने देश में हो रही हिंसा और यूरोप पहुंचने के सपने के बीच यहां कैद हैं.
इस्तांबुल के मेहमान
सीरिया के करीब 400,000 शरणार्थी तुर्की के महानगर इस्तांबुल में रहते हैं. अनुमान के अनुसार करीब इतने ही यूरोपीय देशों में रहते हैं.तुर्की में उन्हें मुसाफिर या मेहमान समझा जाता है. उन्हें शरण पाने या काम करने का हक नहीं
अली, उम्र 13 साल
मेरा सीरिया अब नहीं रहा, बशर अल असद ने उसे नष्ट कर दिया. इसलिए दो साल पहले मैं अपने माता-पिता के साथ अलेप्पो से भाग आया. बॉर्डर पर तुर्की की पुलिस ने हम पर गोलियां चलाईं. हम बचने के लिए जमीन पर गिर पड़े और स्मगलर के आने का इंतजार करते रहे, वे हमें इस्तांबुल लाए.
कड़ी मेहनत मामूली कमाई
अली कहता है, "मुझे अपने परिवार की मदद करनी है. अपने माता-पिता और छह भाई बहनों की." स्कूल जाने के बदले वह फातिह इलाके में एक छोटे सुपर बाजार में अवैध रूप से काम करता है. दिन में 14 घंटे का कम और हफ्ते में 47 यूरो की कमाई. "मुझे अपने घर की याद आती है. मैं दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलना चाहता हूं."
गियाथ, उम्र 22 साल
"मैं हमेशा से अपने शहर होम्स में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ना चाहता था." लेकिन फिर मुझे सेना में भर्ती होना पड़ा और खुद अपनी जनता के खिलाफ लड़ना पड़ा. इसलिए मैं वहां से भाग गया. कभी कभी मैं होम्स वापस लौटने के सपने देखता हूं और ये भी कि वहां पहले की ही तरह पूरी शांति है. ऐसा होते होते मैं बूढ़ा हो जाऊंगा.
इतना करीब यूरोप
गियाथ रोजी रोटी के लिए कई काम करता है. वैसे वह गलाता इलाके के एक होस्टल में केयरटेकर है. "यहां मेरी हर दिन हॉलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन और स्पेन के लोगों से मुलाकात होती है. मैं उनकी कहानियां सुनता हूं लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे मेरी कहानी समझते हैं. युद्ध और मौत को वे सिर्फ फिल्मों से जानते हैं."
इब्राहिम, 25 साल और गसान, 26 साल
"हम तुर्की में कोई भविष्य नहीं देखते, क्योंकि हमारा कोई दर्जा नहीं है. कल वे हमें यहां से वापस भेज सकते हैं. यह असुरक्षा और डर पैदा करती है." कहना है गसान को जो अपने भाई के साथ एक बेकर के यहां काम करता है. "दमिश्क में मैं अकाउंटेंट था, यहां कुछ भी नहीं हूं. हमने अक्सर भागकर जर्मनी जाने के बारे में सोचा है."
अलीसर, उम्र 32 साल
"हम यूरोप कैसे पहुंचेंगे, नाव से या रोड के जरिये. ऐसे सवाल सीरिया के लोगों के मन में चलते हैं." कहना है अलीसर का. उसने इस्तांबुल में एक रेडियो चैनल शुरू किया है, ऐसे लोगों के लिए जो अभी तक भागे नहीं हैं और इजलीब, हामा या अलेप्पो में रह रहे हैं. इस बीच चैनल तुर्की में रहने वाले शरणार्थियों में भी लोकप्रिय हो गया है.
मुहम्मद, उम्र 19 साल
"मैं दो साल पहले अकेला भाग गया था. मेरा परिवार अभी भी दमिश्क में है. मैं फोटोग्राफर के तौर पर काम करना चाहता हूं, लेकिन सीरिया का होने की वजह से यहां तुर्की में मुझे लोग अजीब तरीके से देखते हैं और मुझे रोजगार भी नहीं मिलता. अब में तुर्क भाषा सीख रहा हूं. शायद मुझे भागकर यूरोप चले जाना चाहिए."
मुहम्मद, उम्र 19 साल
"मैं दो साल पहले अकेला भाग गया था. मेरा परिवार अभी भी दमिश्क में है. मैं फोटोग्राफर के तौर पर काम करना चाहता हूं, लेकिन सीरिया का होने की वजह से यहां तुर्की में मुझे लोग अजीब तरीके से देखते हैं और मुझे रोजगार भी नहीं मिलता. अब में तुर्क भाषा सीख रहा हूं. शायद मुझे भागकर यूरोप चले जाना चाहिए."
यूरोप से उम्मीद
तीन हफ्ते पहले वह प्लास्टिक की नाव से भागने को तैयार था. मानव तस्कर ग्रीस ले जाने के लिए 1200 डॉलर मांग रहे थे. इसके लिए मुहम्मद ने अपनी एक कीमती चीज बेच डाली, अपना कैमरा. लेकिन अंत में डर के मारे उसने ऐसा नहीं किया. सोचता है, शायद अगली बार भागना मुमकिन हो.