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समाज

बेहद कठिन जिंदगी है महिला पुलिसकर्मियों की

समीरात्मज मिश्र
१२ जुलाई २०१९

भारत में महिला पुलिसकर्मियों के हालात ऐसे हैं कि बच्चा बीमार होने पर छुट्टी तक नहीं मिल पाती है और बीमार बच्चे को काम पर साथ ले आओ, तो निलंबन का सामना भी करना पड़ता है.

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Indien Frauen im Polizeidienst
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले दिनों एक महिला कॉन्स्टेबल को इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि वह अपनी दुधमुंही बच्ची को साथ लेकर ड्यूटी पर आ रही थी. हालांकि अभी कुछ महीने पहले ही झांसी में जब एक महिला पुलिसकर्मी इसी तरह बच्चे को साथ लेकर ड्यूटी पर आई तो न सिर्फ उसे सम्मानित किया गया, बल्कि उसे अपने गृह जनपद के पास तैनाती भी दे दी गई.

लखनऊ में महिलाओं की सुरक्षा और सहायता के लिए काम करने वाले पुलिस के एक विभाग विमेन पावर हेल्पलाइन 1090 में तैनात महिला सिपाही सुचिता सिंह को अपने नवजात शिशु की देखभाल के लिए जब छुट्टी नहीं मिली, तो वह बच्चे को लेकर ड्यूटी पर आने लगीं. लेकिन उनके विभाग ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुए उन्हें निलंबित कर दिया.

महिला सिपाही सुचिता सिंह ने अब इंसाफ पाने के लिए राज्य के पुलिस महानिदेशक के यहां गुहार लगाई है. डीजीपी ने फिलहाल महिला सिपाही को अपने कार्यालय से संबद्ध करके मामले की जांच शुरू करा दी है. 1090 में तैनात एक अन्य महिला सिपाही ने भी अपने उत्पीड़न का आरोप लगाया है. शानू पाल नाम की इस महिला सिपाही ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई है कि उसने जब इमरजेंसी में अफसरों से छुट्टी मांगी तो उसे डांटकर भगा दिया है.

पिछले साल झांसी के थाना कोतवाली में महिला सिपाही अर्चना जयंत की छह महीने की दुधमुंही बेटी को गोद में लेकर अपनी ड्यूटी निभाते हुए तस्वीर वायरल हुई थी. उसके बाद राज्य के पुलिस प्रमुख ने उस महिला सिपाही का सम्मान करते हुए उन्हें मदर कॉप की उपाधि दी थी और उनके गृह जनपद के नजदीक तैनाती भी दे दी थी.

Indien Tempel Frauen
पुलिस में महिलाएं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

यूपी के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने 1090 में काम करने वाली उन महिलाओं के बच्चों के लिए एक क्रेच भी बनवाया था, ताकि महिला सिपाही और अन्य कर्मी बच्चों को क्रेच में छोड़कर आसानी से काम कर सकें, लेकिन बाद में इस क्रेच को बंद कर दिया गया.

पुलिस के आला अधिकारियों ने महिला सिपाहियों के साथ किसी तरह के उत्पीड़न की बाद से तो इनकार किया है लेकिन यह सच है कि पुलिस विभाग में काम करने वाली महिलाओं को, खासकर छोटे पदों पर काम करने वाली महिलाओं को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसे लेकर कई तरह की योजनाएं बनीं, अक्सर इस मुद्दे पर सेमिनार होते हैं लेकिन समस्याएं जस की तस हैं.

यूपी में पुलिस के एक आला अधिकारी बताते हैं कि इन्हीं परेशानियों की वजह से तमाम कोशिशों के बावजूद पुलिस विभाग में महिलाएं आना नहीं चाहतीं. आज भी पुलिस में उनकी भागीदारी महज सात फीसद है. देश में दस राज्य ऐसे हैं जहां पुलिस विभाग में पांच प्रतिशत से भी कम महिलाएं हैं. पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है.

यह स्थिति तब है जबकि भारत सरकार ने 2009 में पुलिस में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को 33 फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया था. कई राज्यों ने इसे अपने यहां लागू करने की कोशिश भी की लेकिन लक्ष्य तक अभी कोई भी राज्य नहीं पहुंच सका है. 2013 में भारत के गृह मंत्रालय ने हर पुलिस थाने में कम से कम तीन महिला सब इंस्पेक्टर और दस महिला पुलिस कॉन्स्टेबल नियुक्त करने की सिफारिश की लेकिन ऐसा शायद ही कोई राज्य हो जिसने इस पर पूरी तरह से अमल किया हो.

पुलिस विभाग में महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाने की राह में सबसे बड़ी अड़चन यही है कि अभी भी महिलाओं में यह विश्वास नहीं बन पाया है कि यह विभाग महिलाओं के लिए भी उतना मुफीद है जितना कि पुरुषों के लिए. हालांकि ऐसा नहीं है कि इस विभाग के पुरुष कर्मचारी कोई बहुत अच्छी स्थिति में हैं लेकिन महिलाओं के लिए तो स्थितियां ज्यादा प्रतिकूल हैं.

उत्तर प्रदेश में एडीजी के पद पर तैनात एक वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी इसकी वजह बताती हैं, "दरअसल यह पेशा पुरुषों के लिए बना था, इसलिए हर चीज पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाई गई. न सिर्फ पुलिस की नीतियां और इंफ्रास्ट्रकचर बल्कि हथियार तक पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए और विभाग का माहौल भी उसी हिसाब से ढल गया. लेकिन अब चूंकि महिलाएं इस पेशे में आने लगी हैं तो उनके मुताबिक माहौल को ढालना होगा ताकि वे पुरुषों के साथ उतनी ही दक्षता के साथ काम कर सकें."

Indien Jalandhar | Polizistinnen bei Yoga Lachtherapie am 1. Januar
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Mehra

यूपी पुलिस में तैनात एक महिला कॉन्स्टेबल नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं कि अक्सर पुरुष सहयोगियों और अधिकारियों का सहयोग तो मिलता है लेकिन महिलाकर्मियों को हर तरह के शोषण का भी शिकार होना पड़ता है. उनके मुताबिक कार्यस्थल पर तमाम तरह की दिक्कतों के अलावा पुरुष सहकर्मियों का महिलाओं के प्रति व्यवहार भी बहुत प्रताड़ना देता है.

महिला पुलिसकर्मियों की दिक्कत सबसे ज्यादा तब बढ़ जाती है जब उन्हें कहीं बाहर किसी मिशन पर या दंगा नियंत्रण इत्यादि जैसी जगहों पर भेजा जाता है. एक महिला पुलिसकर्मी बताती हैं, "बाहर तैनाती के दौरान महिला और पुरुष पुलिस कर्मियों की बैरक अलग-अलग भले ही होती हैं लेकिन उनके बीच किसी तरह की दीवार नहीं होती. कई बार तो दरवाजे और पर्दे तक नहीं होते. ऐसी स्थिति में महिलाओं को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.”

शौचालय एक ऐसी समस्या है जिस पर भारत में पिछले चार साल से मिशन भले ही चलायी जा रहा हो लेकिन महिला पुलिसकर्मियों को इसकी कमी से आज भी दो-चार होना पड़ता है. पुलिस थानों और ड्यूटी की जगहों पर अक्सर अलग से शौचालय नहीं होते.

एक जगह से दूसरी जगह तक आने-जाने के लिए महिलाओं को भी पुरुष पुलिसकर्मियों की तरह ही ट्रकों से ही यात्रा करनी पड़ती है, जबकि उस पर चढ़ने और उतरने में महिलाओं को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसके लिए महिलाओं ने कई बार अधिकारियों को अवगत भी कराया है लेकिन फिलहाल यही व्यवस्था कायम है.

पुलिस विभाग में काम आने वाले तमाम हथियार और उपकरण आज भी महिलाओं के हिसाब से डिजाइन नहीं किए गए हैं और उन्हें भी वही उपकरण इस्तेमाल करने होते हैं जो कि उनके पुरुष सहकर्मी करते हैं. दंगों के वक्त इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार और उपकरण इतने भारी होते हैं कि कई बार महिलाओं के लिए तमाम तरह की शारीरिक परेशानियों का कारण बन जाते हैं. कई बार बाहर तैनाती के वक्त लंबे समय तक परिवार और बच्चों से दूर रहना भी महिला पुलिसकर्मियों को असहज करता है.

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