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बेहतर हो रहा है बॉलीवुड

२६ सितम्बर २०१३

गुजराती फिल्म 'दी गुड रोड' को इस साल भारत की ओर से ऑस्कर पुरस्कार के लिए भेजा गया है. इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. फिल्म के निर्देशक ज्ञान कोरिया की डॉयचे वेले के साथ हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:

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तस्वीर: privat

' गुड रोड' को लंचबॉक्स, मद्रास कैफे, भाग मिल्खा भाग, इंग्लिश विंग्लिश, मलयाली फिल्म सेलुलॉयड और कमल हासन की फिल्म विश्वरूप से कड़ी टक्कर मिली. इसके बावजूद फिल्म अपना रास्ता बनाती हुई ऑस्कर के लिए भेजी गई.

डीडब्ल्यू: पहले राष्ट्रीय पुरस्कार और अब ऑस्कर के लिए चुना जाना, क्या ऐसी कामयाबी की उम्मीद थी ?

ज्ञान कोरिया: सच कहूं तो इस सब के बारे में नहीं सोचा था अच्छी फिल्म बनाने की ठानी थी,यह लोगों को पसंद आ रही है, यही सबसे बड़ी कामयाबी है.इसमें कोई संदेह नहीं कि, ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व करना गौरव की बात है.हमारी टीम की मेहनत और लगन के कारण यह संभव हो पाया.इस सफलता पर हम सब खुश हैं.

इस फिल्म के बारे में कुछ बताइए?

मैंने फिल्म निर्माण के पूर्व और दौरान इस विषय पर काफी अध्ययन किया है. फिल्म का कथानक, तथ्यों का प्रस्तुतीकरण मात्र हैं. ट्रक ड्राइवरों के साथ लम्बा समय गुजारने के बाद मुझे यह अनुभव हुआ कि मुख्य सड़कें जिन्हें हम हाईवे कहते हैं हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा है. ट्रक ड्राइवर जिन परिस्थितिओं में काम करते हैं वह बिलकुल ही अविश्वसनीय है. इसे ही मै फिल्म के माध्यम से दिखाना चाहता था. ट्रक ड्राईवर किसी सुपर ह्यूमन से कम नहीं, उत्पादन तंत्र में इनका बड़ा स्थान है. आम आदमी इनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका को नहीं समझ पाता. एक मायने में यह फिल्म गुमशुदा बच्चे के माध्यम से ड्रावरों के पेशे में झांकती है.

क्या इस तरह की फिल्मों के लिए भारत में बाजार है?

कहना काफी मुश्किल है. वर्तमान में अच्छी फिल्मों और फिल्मकारों के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं है. इन फिल्मों का भविष्य है, उम्मीद है कि आने वाले समय में ऐसी फिल्मों और फिल्मकारों को समझने और सम्मान देने वालों का दायरा बढेगा.

Die Oscar Statue
तस्वीर: AP

यह फिल्म आपने गुजराती भाषा में क्यों बनाई, जबकि आप खुद ही कह रहे हैं कि इसमें राष्ट्रीय अपील है?

फिल्म के किरदारों और कहानी के हिसाब से कच्छ बहुत उपयुक्त लगा इसलिए कच्छी भाषा को ही हमने अपना लिया.

आप फिल्म इंडस्ट्री में नए हैं आपको तो कामयाबी मिल गयी लेकिन नए लोगों के लिए यहां जगह बनाना काफी चुनौतीपूर्ण साबित होता है.

नए लोगों के लिए यहां काफी मुश्किलें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की आती है. बिना अनुभव के यहां आप पर निवेश करने को कोई तैयार नहीं होता. कितना ही अच्छा आइडिया या स्क्रिप्ट आप के पास क्यों न हो, कोई निर्माता या फायनेंसर आप पर दांव लगाने को तैयार नहीं होता. दूसरी ओर इस चुनौतीपूर्ण स्थिति के अपने फायदे भी हैं. चुनौती नए लोगों को अच्छा काम और कठिन परिश्रम करने की प्रेरणा देती है. इस कारण नए लोग बेहतर फिल्में बनाते हैं.

बॉलीवुड में बन रही फिल्मों के बारे में आप का क्या कहना है? क्या इन दिनों बन रही फिल्मों से संतुष्ट हैं?

इस बारे में कभी सोचा नहीं, लेकिन इतना तो तय है कि बॉलीवुड भारत के लिए महत्वपूर्ण है. असीम उर्जा और विभिन्न रंगों से युक्त बॉलीवुड में गजब का आत्मविश्वास है, दरअसल देश को इन विशेषताओं की जरूरत है.

अब वापस बात आपकी फिल्म की. 'दी गुड रोड' को ऑस्कर में भेजा जाना कुछ लोगों को नागवार गुजरा. करण जौहर और अनुराग कश्यप नाराज बताये जाते हैं.

यह शुरुआती निराशा है. आने वाले समय में पूरी फिल्म इंडस्ट्री इस फिल्म का समर्थन करेगी. ध्यान रखिये यह सिर्फ मेरी फिल्म नहीं है, अब यह भारत की तरफ से ऑस्कर पुरस्कारों के लिए आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुनी गयी गयी फिल्म है. यानी अब यह हम सबकी फिल्म है.

यहां मै दूसरी बात भी कहना चाहूंगा जो मेरी दृष्टि में ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह कि, ऑस्कर के लिए इस बार कई फिल्मों में प्रतिस्पर्धा थी, इससे इतना तो तय है कि हमारी फिल्मों की गुणवत्ता बढ़ रही है.

इंटरव्यूः विश्वरत्न, मुंबई
संपादनः एन रंजन