बेटी को मिली मां की कोख
१९ सितम्बर २०१२दोनों ऑपरेशन मंगलवार को यूनिवर्सिटी ऑफ गॉथनबर्ग में किए गए. डॉक्टरों के अनुसार दोनों महिलाओं की उम्र तीस से ऊपर है. हालांकि महिलाओं के बारे में और कोई जानकारी नहीं दी गयी है. ऑपरेशन करने वाले मुख्य डॉक्टर माट्स ब्रेनस्टॉर्म ने बताया, "दस से अधिक सर्जन ने इस ऑपरेशन में हिस्सा लिया. इन सब ने कई सालों तक इस पेचीदा सर्जरी के लिए ट्रेनिंग ली थी."
यूनिवर्सिटी ने ऑपरेशन के बारे में बयान जारी कर कहा है, "जिन दो मरीजों को नया गर्भाशय मिला है, उनकी सेहत ठीक है, लेकिन वे सर्जरी से थक गयी हैं. गर्भाशय देने वाली दोनों मांएं भी ठीक हैं और चल फिर रही हैं. उन्हें कुछ दिनों में अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी."
यूनिवर्सिटी का कहना है की अकेले स्वीडन में ही दो से तीन हजार के बीच महिलाएं गर्भाशय ना होने के कारण मां नहीं बन पातीं. इस तरह की तकनीक ऐसी महिलाओं के लिए वरदान साबित हो सकती है.
ऑपरेशन कराने वाली एक महिला ने कहा कि वह जानती है कि कई लोग नैतिकता की दुहाई दे कर इसे गलत बताते हैं, लेकिन उनके लिए इस ऑपरेशन का मतलब है अपनी एक शारीरिक कमजोरी से निजात पाना और उसे वापस पा लेना जो कैंसर के कारण उनसे छिन गया था. सालग्रेंसका अस्पताल की वेबसाइट पर उन्होंने अपने बयान में लिखा है, "मेरे लिए यह बहुत ही अनोखा तजुर्बा रहा. हमें एक बहुत ही खूबसूरत मौका मिला है."
डॉक्टरों का कहना है कि अगले साल तक ये महिलाएं गर्भधारण करने के लिए तैयार हो जाएंगी, हालांकि वह मां बन सकेंगी इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती. एक साल बाद आईवीएफ की मदद ली जाएगी. ब्रेनस्टॉर्म ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, "हमें 2014 में ही पता चल पाएगा कि क्या यह सच में सफल हो पाया है." ब्रेनस्टॉर्म ने माना कि आईवीएफ तकनीक की मदद से 25 से 30 प्रतिशत मामलों में ही सफलता मिल पाती है.
इन दोनों ही महिलाओं के गर्भाशय को प्रसव के बाद एक बार फिर निकाल लिया जाएगा. ब्रेनस्टॉर्म ने बताया कि दो बच्चे हो जाने के बाद ऐसा किया जाएगा ताकि उन्हें जीवन भर दवाएं ना लेनी पड़ें.
इस तरह का पहला ऑपरेशन पिछले साल तुर्की में किया गया था. स्वीडन में इसी साल आठ और महिलाओं के ऑपरेशन की योजना है. इन दस महिलाओं को एक लम्बी सूची में से चुना गया है. सभी की उम्र तीस से ऊपर है क्योंकि डॉक्टरों का मानना है कि इस उम्र में आईवीएफ सबसे ज्यादा सफल रहता है. स्वीडन में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की टीम 1999 से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.
आईबी/एनआर (एएफपी/डीपीए/रॉयटर्स)