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समाज

बेघर लोगों का नया आशियाना बन रहे हैं डबल डेकर बस

३ जुलाई २०१९

बेघरी की समस्या यूरोपीय शहरों का सिरदर्द बनता जा रहा है. लंदन में बेघरों को राहत देने के लिए बसों में रैन बसेरा बनाने की पहल की गई है. इस पहल का मकसद लोगों को फिर से रोजगार में लाना और सामान्य जिंदगी में शामिल करना है.

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Großbritannien Obdachlose in London
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Jones

एक मसाज टेबल, एक स्नग चेयर, हरा भरा धुपहला मैदान, यह कोई हॉलिडे रिजॉर्ट नहीं है, बल्कि लंदन के प्रसिद्ध डबल डेकर बसों में से एक है जहां इस साल गर्मियों में 40 बेघर लोग रहेंगे. चार पुराने बसों को ब्रिटेन ​स्थित सामाजिक उद्यम Buses4Homeless ने बेघर लोगों के रहने के लिए तैयार किया है. यहां सोने, भोजन करने, खाना पकाने, नौकरी के प्रशिक्षण और आराम करने की जगह है. दक्षिण लंदन के क्रॉयडन में बसों की अस्थायी जगह पर बसेज4होम के संस्थापक डेन एटकिन्स कहते हैं, "किसी के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण चीज घर है, जहां वे रहते हैं. लंदन में रैन बसेरों में बिस्तरों की संख्या में कमी के कारण काफी सारे लोगों के लिए रहने की समस्या पैदा हो गई है."

लंदन में बढ़ते किरायों, सरकारी भत्तों में कमी और सामाजिक आवास की कमी के बीच लगभग एक दशक से बेघरों की संख्या में इजाफा हो रहा है. लंदन के मेयर की मदद से जमा डाटा के अनुसार, पिछले साल लंदन में घर के बाहर सोने वालों की संख्या में 18 प्रतिशत इजाफा हुआ और वह एक दशक के रिकॉर्ड 8,855 पर पहुंच गया. इनमें ज्यादातर संख्या पार्कों या दरवाजों पर सोने वालों की थी. रेल के सामान वाले डिब्बे में एक दोस्त को सोते हुए देखकर पहल करने वाले एटकिन्स ने कहा कि वह "यह समझना चाहते थे कि लोग कैसे और क्यों बेघर हो जाते हैं, और उन्हें समाज में फिर से शामिल करने में मदद करना चाहते थे." परिवहन कंपनी स्टेजकोच द्वारा दान की गई बसों में तीन महीने का कार्यक्रम चलता है जिसके दौरान यात्री खाना बनाना, बुनियादी व्यवसायिक प्रशिक्षण या योग कक्षा का आनंद ले सकते हैं.

Spikes gegen Obdachlose in London
बेघरों को सोने से रोकने के लिए दरवाजे पर लगे कीलतस्वीर: picture-alliance/dpa

वैकल्पिक आश्रय

बेड़े के "वेलबिइंग बस" के घास से ढके छत पर एक लकड़ी की बेंच पर बैठे 50 वर्षीय जेम्स एनिमेटेड रूप से अपने मोबाइल फोन पर टाइप कर रहे हैं. जेम्स (सुरक्षा कारणों से बदला हुआ नाम) ड्रग का कारोबार करने वाले पड़ोसी की धमकी के बाद से बेघर हैं. जेम्स को पिछले अक्टूबर में अपना ब्रीक्सटन फ्लैट छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था. एटकिन्स से मिलने के बाद जेम्स एक बस में सो रहे हैं. हालांकि आश्रय को अभी तक आधिकारिक तौर पर नहीं खोला गया है. जेम्स कहते हैं, "या तो मुझे घर छोडना था या अपनी जिंदगी से हाथ धोना पडता. लेकिन हाउसिंग एसोसिएशन ने मुझे कभी दूसरा फ्लैट नहीं दिया."

Großbritannien London - Bus bei Nacht
इन बसों में सो सकेंगे बेघरतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Economou

जेम्स रैन बसेरों की तुलना में बस को सुरक्षित और अधिक आरामदायक पाते हैं. उनका कहना है, "वहां रैन बसेरों में हर बेड के पास पावर सॉकेट नहीं है, इसलिए जब आप अपने फोन को चार्ज करने के लिए जाते हैं तो आपका सामान चोरी हो सकता है". प्रत्येक "स्लीपिंग बस" में 20 लोगों रह सकते हैं. उनके लिए यहां सामान रखने की जगह, एक पावर सॉकेट और गोपनीयता के लिए पर्दा हैं. एटकिन्स का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है कि बसों में ज्यादातर पुरुष ही रहेंगे क्योंकि बेघरों में इनकी आबादी ही सबसे ज्यादा है. हालांकि वे ऐसा स्थान बनाना चाहेंगे जहां महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें.

सच्ची कहानियां

कम्यूनिटी वॉलंटियर के रूप में काम करते रहे जेम्स कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि नई बसें "बेघर लोगों की वास्तविक कहानियां" दिखाएंगी. वेस्टमिंस्टर सिटी काउंसिल के लिए बेघरों के कॉर्डिनेटर के रूप में काम कर चुके जेम्स कहते हैं, "यदि आप आज की खबर देखें तो हर बेघर व्यक्ति या तो नशेड़ी है या भिखारी है. लेकिन मेरी स्थिति  साबित करती है कि आप एक पल बेघर लोगों के साथ काम कर रहे हैं और कुछ समय बाद सड़क पर हैं.". बेड़े में "पाठशाला बस" पर यात्री माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस स्किल कोर्स से लेकर प्रेजेंटेशन वर्कशॉप तक कर सकते हैं. प्रशिक्षण और मेंटरिंग प्रमुख जोनाथन फाल कोर्स चलाएंगे. वे कहते हैं कि उनका उद्देश्य बेघर लोगों को रोजगार पाने के लायक बनाना और उन्हें नौकरी के अवसरों से जोड़ना है. बस के साथ अच्छी बात यह है कि हम इसे कहीं भी ले जा सकते हैं. उदाहरण के लिए इसे एक जॉब सेंटर के सामने भी पार्क कर सकते हैं.

लंदन के मेयर सादिक खान के एक प्रवक्ता ने बेघरों के लिए बस की पहल पर कहा कि शहर में काफी संख्या में लोग सडकों पर रहने के लिए मजबूर हो रहे हैं. उन्होंने कहा, "कल्याण कटौती मे कमी को वापस करना, स्वास्थ्य सेवाओं में निरंतर निवेश और नए सामाजिक आवास में निवेश के कदमों को बदले बिना बेघरों की समस्या का सामाधान संभव नहीं होगा." यदि बस शेल्टर प्रोजेक्ट सफल होता है तो एटकिन्स की योजना बेघरों के लिए कुछ गाड़ियों को 2 या तीन बेडरूम वाले फ्लैट में बदलने की है. वे कहते हैं, "लंदन की अल्ट्रा लो एमिशन ज़ोन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करने के कारण कई सारे बस बेकार हो जाएंगे. तो क्यों नहीं फिर से उनका उपयोग कर लिया जाए."

आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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