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पढ़ाई और मेहनत से नहीं हो सकते अमीर

२७ नवम्बर २०१२

आधे से ज्यादा युवा जर्मन सोचते हैं कि पढ़ाई और योग्यता से बेहतर जीवन हासिल नहीं किया जा सकता. ऐसा सोचने वाले ये युवा कम आय वाले परिवारों के हैं. जर्मनी में किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है.

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तस्वीर: Fotolia/Andrey Kiselev

जर्मनी की तुलना में स्वीडन के लोग अभी भी मानते हैं कि पढ़ाई से आगे बढ़ा जा सकता है. जर्मनी में आलेन्सबाख डेमोग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने स्वीडन के एक हजार और जर्मनी के 1,800 निवासियों का तुलनात्मक अध्ययन किया.

इसमें सामने आया कि जर्मनी में कम आय समूह के 55 फीसदी युवा जो 30 साल से कम उम्र के हैं, वो नहीं मानते कि कोशिशों और काबिलियत से वह अपनी सामाजिक स्थिति बेहतर बना सकते हैं. इतना ही नहीं, जर्मनी की एक तिहाई जनसंख्या मानती है कि कोशिशों और मेहनत से सफलता नहीं मिलती बल्कि परिवार कहां का है इस पर सब कुछ निर्भर है. बिल्ड डेयर फ्राऊ और आलेन्सबाख शोध के नतीजे के मुताबिक, " प्रदर्शन मायने नहीं रखता. सब कुछ परिवार पर निर्भर करता है. स्वीडन में स्थिति बिलकुल अलग है. दो देशों के बीच किए गए इस तुलनात्मक शोध में सामने आया है कि वहां (स्वीडन में) सामाजिक वर्ग से बिलकुल अलग तीन में से दो वयस्क मानते हैं कि कोशिश करने पर कोई भी नाम कमा सकता है. जबकि जर्मनी में इसके विपरीत कहा जाता है, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो पापा जैसे बेरोजगारी भत्ता लूंगा."

शोध प्रस्तुत करते हुए आलेन्सबाख की निदेशक रेनाटे कोएखर ने कहा, पूर्वी जर्मनी में खासकर लोगों ने बहुत निराशावादी प्रतिक्रिया दी जबकि बराबर मौकों की कोशिश की जाती है. उनमें से सिर्फ एक तिहाई लोग मानते हैं कि सामाजिक स्तर सुधारने में मेहनत काम आ सकती है. जर्मनी के पश्चिमी हिस्से में वहीं 47 फीसदी लोगों का मानना था कि कोशिशें और मेहनत काम आती है.

यह शोध जर्मनी के परिवार और समान अधिकार मंत्रालय और महिला पत्रिका बिल्ड डेयर फ्राऊ ने करवाया है. इस शोध में देखा जा सकता है कि जर्मनी और स्वीडन में शुरुआती शिक्षा को लेकर समाज में कितना मतभेद है. स्वीडन में माता पिता बच्चों को किंडरगार्टन या नर्सरी भेजने में बिलकुल नहीं सोचते. उनके मुताबिक इससे बच्चों को फायदा ही होता है. वहीं जर्मनी में जो माएं अपने शिशुओं को नर्सरी या प्लेस्कूल में भेजती हैं उन्हें खराब मां समझा जाता है. अक्सर परिवार सोचते हैं कि बच्चों के मां से दूर रहने पर बच्चों को तकलीफ होती है.

रिपोर्ट पर टिप्पणी देते हुए मंगलवार को फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी एफडीपी के फिलिप रोएसलर ने कहा, "अगर मेहनत से समाजिक स्तर में सुधार करने को श्रेय नहीं दिया जाए और आर्थिक विकास शैतान का काम माना जाए, जिस पर ग्रीन पार्टी ने अपने विचार रखे थे, तो हम नीचे की ओर तो जाएंगे ही. सिर्फ एशिया ही नहीं बल्कि हमारे यूरोपीय पड़ोसियों ने भी इसे हमसे पहले समझ लिया था. "

Deutsche Studenten mit Kindern
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वहीं जर्मनी की मध्य वामपंथी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की मानुएला श्वेसिग ने डी वेल्ट अखबार से कहा कि सामाजिक स्तर में सुधार नहीं होने के जिम्मेदार नौकरी देने वाले हैं. "जिसे भी स्कूलों में अच्छे नंबर मिलते हैं या फिर शिक्षा के दौरान अच्छे छात्र होते हैं उन्हें बाद में सिर्फ ट्रेनी का काम मिलता है या फिर कम समय वाली नौकरियां मिलती हैं. जिसके कारण उन्हें लगता है कि मेहनत किसी काम नहीं आती. इसलिए कम समय वाली नौकरियां कम से कम जर्मनी में अपवाद होनी चाहिए."

शोध संस्थान की निदेशक रेनाटे कोएखर कहती हैं, "हम जर्मनों को अपने पड़ोसी स्वीडन से सीखना चाहिए कि माता पिता की भूमिका को आराम से कैसे निभाना है. इसमें जर्मन राजनीति की भूमिका भी जरूरी है. स्वीडन में छोटे बच्चों के लिए नर्सरी की कोई कमी नहीं और ये सारे बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले हैं. इस कारण माता पिता में विश्वास और सुरक्षा की भावना पैदा होती है. वहीं जर्मनी में अधिकतर माएं यही सोचती हैं कि उन्हें परिवार और नौकरी में से एक को चुनना होगा. क्योंकि उन्हें किंगटगार्टन या नर्सरी में बच्चों को नुकसान पहुंचने का डर होता है. क्योंकि उनके मन में कहीं ये भावना होती है कि बच्चों को वहां भेजने पर वह बुरी मां कहलाएंगी. जर्मनी में वैसे भी छोटे बच्चों के लिए बहुत कम नर्सरी या केजी स्कूल हैं."

चार मई से 19 मई 2012 के बीच जर्मनी में सोलह साल से ज्यादा के 1,835 लोगों से इस बारे में सवाल पूछे गए. स्वीडन में इसी मुद्दे पर 17 मई से 24 जून 2012 के बीच 1,058 लोगों से पूछा गया.

रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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