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बुर्का पहन कर पढ़ाने का फरमान

प्रभाकर, कोलकाता (संपादनः ए जमाल)३१ जुलाई २०१०

कोलकाता में एक लेक्चरर महीनों से कॉलेज नहीं जा पा रही हैं क्योंकि उन्होंने बुर्का पहन कर क्लास में पढ़ाने से इनकार कर दिया. मामला पहले तो दबा रहा, लेकिन अब सामने आने के बाद इस पर गंभीरता से कार्रवाई की जा रही है.

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शिरीन मिद्या संघर्ष को तैयारतस्वीर: DW

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में आलिया विश्वविद्यालय में शिक्षिकाओं को बुर्के में कॉलेज आने के तालिबानी फरमान पर उभरे विवाद के बाद राज्य सरकार ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं.

बंगाल के इस पहले मुस्लिम विश्वविद्यालय में बांग्ला पढ़ाने वाली 24 साल की शिरीन मिद्या बीते तीन महीने से छात्रों को नहीं पढ़ा पा रही हैं. इसकी वजह यह है कि वह बिना बुर्का पहने ही कॉलेज जाती हैं. छात्राओं और शिक्षिकाओं के लिए बुर्का पहनने का ड्रेस कोड पश्चिम बंगाल मदरसा छात्र संघ ने लागू किया है, कॉलेज ने नहीं.

शिरीन को बीते मार्च में अतिथि लेक्चरर के तौर पर विश्वविद्यालय में नियुक्ति मिली. लेकिन अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही छात्र संघ ने उनको बुर्के में कॉलेज आने का फरमान सुना दिया. शिरीन कहती है कि मुझे ज्वायन करने के दो हफ्ते बाद ही बुर्के में आने का फरमान सुना दिया गया.

Lastträger in Kalkutta Kolkata Strike
कोलकाता में बुर्के पर विवादतस्वीर: UNI

विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर सैयद शमसुल आलम कहते हैं, "विश्वविद्यालय में कोई ड्रेस कोड नहीं है. यह कैसे हो सकता है. यह घटना एक अपवाद है. हम भविष्य में ऐसे मामले में समुचित कदम उठाएंगे. "

शिरीन ने लगभग दो महीने पहले राज्य के अल्पसंख्यक विकास मंत्री अब्दुस सत्तार को पत्र लिख कर इस मामले की जानकारी दी थी. लेकिन उनको अब तक अपने पत्र का जवाब तक नहीं मिला है. अब मंत्री की नींद टूटी है. वे कहते हैं कि यह गलत है. स्कूलों व कॉलेज में शिक्षकों के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं हो सकता. हमने वाइस चांसलर से इस मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है.

पश्चिम बंगाल मदरसा छात्र संघ के सचिव सियामत अली कहते हैं कि यह सही है कि विश्वविद्यालय में कोई ड्रेस कोड लागू नहीं है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है जिसकी जो मर्जी होगी, पहन कर आ जाएगा. हमें शिक्षिकाओं का पहनावा खराब लगा. इसलिए हमने आपत्ति की. इससे मदरसे की संस्कृति को ठेस पहुंच रही थी.

यादवपुर विश्वविद्यालय से बांग्ला में एमए करने के बाद विश्वविद्यालय में नौकरी की शुरूआत करने वाली शिरीन इस ड्रेस कोड के चलते पढ़ाने की बजाय महानगर के साल्टलेक परिसर में स्थित विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में काम कर रही हैं. लेकिन उनको वेतन लेक्चरर का ही मिलता है. वह कहती है कि ज्यादातर शिक्षिकाओं को बुर्का पहनने का छात्रों का यह तालिबानी फरमान पसंद नहीं है. लेकिन उनके सामने इसे मानने के अलावा कोई चारा नहीं है.

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