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बीजेपी की आरक्षण रणनीति पर मायावती ने उठाए सवाल

समीरात्मज मिश्र
२ जुलाई २०१९

माना जा रहा है कि योगी सरकार को इस फैसले का सीधा लाभ आने वाले दिनों में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मिलेगा और शायद उसे देखते हुए ही ये फैसला लाया भी गया है.

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Indien BSP Wahlveranstalltung in Mysuru
तस्वीर: IANS

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला करके एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक खेलने की कोशिश की लेकिन बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने इस पर कई तरह के सवाल उठा दिए हैं.

मायावती का कहना है कि राज्य सरकार ऐसा करके सिर्फ राजनीति कर रही है क्योंकि इन जातियों को आरक्षण देने के प्रावधान का अधिकार सिर्फ संसद को है. मायावती ने आरोप लगाया है कि योगी सरकार ने ऐसा करके न सिर्फ कानून का उल्लंघन किया है, बल्कि इन 17 जातियों के साथ छल भी किया है.

सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती ने कहा, "इन जातियों के साथ तो बहुत बड़ा छल किया गया है क्योंकि ऐसा करने से राज्य सरकार इन्हें अन्य पिछड़ी जाति यानी ओबीसी की मानेगी नहीं और अनुसूचित जाति का दर्जा इन्हें मिलेगा नहीं क्योंकि ऐसा करना राज्य सरकार के अधीन नहीं है. यदि सरकार इन्हें एससी कोटे में डालने के लिए वास्तव में गंभीर है तो पहले उसे इस कोटे में बढ़ोत्तरी करनी होगी."

मायावती का कहना है कि इस मामले में मौजूदा सरकार ने पिछली सपा सरकार के जैसे ही काम किया है. उन्होंने कहा कि बीएसपी ने तब भी इसका विरोध किया था. मायावती का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने आनन-फानन में इस कदम को आने वाले दिनों में 12 सीटों पर होने वाले विधान सभा उपचुनाव को देखते हुए उठाया है.

दरअसल, सामाजिक संरचना में लगभग दलितों वाली स्थिति में रहने वाली 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग दशकों से चल रही थी. माना जाता है कि इन 17 अति पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी की लगभग 14 फीसदी है.

पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 17 अन्य पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल कर दिया. अब इन जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र दिया जाएगा. जिलाधिकारियों को इन जातियों के परिवारों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया गया है. ये पिछड़ी जातियां निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, मांझी, तुरहा, गौड़ इत्यादि हैं.

इससे पहले समाजवादी पार्टी की सरकार ने भी ये फैसला किया था लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था. कुछ दिन पहले स्टे तो हटा लिया गया लेकिन मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है जिसका फैसला आना बाकी है.

दरअसल, कई ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का आंदोलन पिछले कई सालों से चल रहा था. न सिर्फ मुलायम सिंह यादव ने बल्कि मायावती ने भी अपने दौर में इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल कराने की कोशिश की थी और सबसे आखिरी कोशिश अखिलेश यादव ने की. उन्होंने इन जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का प्रस्ताव पास करा दिया था, लेकिन अदालत ने इस पर रोक लगा दी थी.

आरक्षण का मुद्दा हमेशा से बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है और बीजेपी सरकार ने इस मामले में एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक खेलने की कोशिश की है. पिछले कुछ वर्षों से पार्टी राज्य की उन पिछड़ी जातियों को अपनी ओर करने की कोशिश कर रही थी जो समाजवादी पार्टी के समर्थक नहीं माने जाते थे. बीजेपी ने पहले तो इनके नेताओं को साथ लेकर उनके वोट बैंक को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की और अब सीधे तौर पर उन जातियों को अपनी ओर करने का प्रयास किया है.

योगी कैबिनेट में रहते हुए ओमप्रकाश राजभर लगातार अति पिछड़ों के आरक्षण की अलग से मांग करते रहे, लेकिन अब इस मुद्दे को बीजेपी ने अपने पक्ष में कर लिया है. ठीक ऐसे ही निषाद पार्टी और कुछ अन्य पार्टियों के हाथ से भी ये मुद्दा गायब हो जाएगा यदि यह आरक्षण लागू हो जाता है.

माना जा रहा है कि योगी सरकार को इस फैसले का सीधा लाभ आने वाले दिनों में 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में मिलेगा और शायद उसे देखते हुए ही ये फैसला लाया भी गया है. लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. 17 अन्य पिछड़ी जातियों की राज्य में एक बड़ी तादाद है और इनके अनुसूचित जाति में शामिल होने से इन जातियों के लोगों का हक मारा जाएगा. ऐसी स्थिति में राज्य सरकार और बीजेपी को तमाम दलित जातियों के कोपभाजन का शिकार भी बनना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले दो-तीन चुनावों से राज्य में गैर जाटव दलितों की एक बड़ी संख्या बीजेपी के समर्थन में आ गई थी. लेकिन अनुसूचित जाति के कोटे में इन जातियों के आने से उनके लिए मौके कम होने तय हैं और इसका सीधा नुकसान उन्हें उठाना पड़ेगा. 

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