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क्या उद्धव ठाकरे का हाल देख डर गए नीतीश कुमार

मनीष कुमार
९ अगस्त २०२२

बीते नौ साल में दो बार राजनीतिक सहयोगी बदल चुके नीतीश कुमार ने एक आखिरकार एक बार फिर पाला बदल लिया. अब वे महागठबंधन का हिस्सा बन कर बिहार में अपनी सरकार बनाएंगे, जिसका साथ उन्होंने पांच साल पहले छोड़ दिया था.

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नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़ आरजेडी के साथ जाने का फैसला किया है
नीतीश कुमार ने बीजेपी को छोड़ आरजेडी के साथ जाने का फैसला किया हैतस्वीर: CMO Bihar

राजनीतिक घमासान के बीच जदयू ने साथ छूटने का ठीकरा बीजेपी के सिर फोड़ा है. मंगलवार को पटना के 1, अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पर जेडीयू विधायक दल की बैठक बुलाई गई. आरसीपी सिंह प्रकरण की चर्चा करते हुए इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कमजोर करने की साजिश करार दिया गया. बीजेपी से अलग होने का निर्णय करते हुए विधायकों ने नीतीश कुमार को एक नये गठबंधन के लिए अधिकृत कर दिया. नीतीश कुमार ने बैठक के दौरान अपने सांसदों व विधायकों से साफ कहा कि बीजेपी ने जेडीयू को अपमानित करने के साथ ही हमेशा कमजोर करने की कोशिश की. बीजेपी ने अब तक धोखा ही दिया है.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक दल के नेता व लालू प्रसाद के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव ने करीब 115 विधायकों का समर्थन पत्र नीतीश कुमार को सौंपा है, जिनमें राजद के अलावा कांग्रेस और वामदल भी शामिल है. वहीं, जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर नये गठबंधन के लिए नीतीश कुमार को बधाई देते हुए कहा है कि नीतीश जी आगे बढि़ए, देश आपका इंतजार कर रहा है. लालू की बेटियों ने भी अपने भाई तेजस्वी को बधाई दी है.

दोपहर बाद करीब चार बजे नीतीश कुमार ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल फागू चौहान को अपना इस्तीफा सौंप दिया. वर्तमान में बिहार विधानसभा की 243 सीटों में राजद के 79, बीजेपी के 77, जेडीयू के 45, कांग्रेस के 19, वामदलों के 16, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के चार तथा एआइएमआइएम के एक और एक निर्दलीय विधायक हैं, जबकि मोकामा (पटना) के राजद विधायक अनंत सिंह के सजायाफ्ता होने से एक सीट खाली है.

2020 में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे नीतीश कुमार
2020 में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे नीतीश कुमारतस्वीर: IANS

काफी पुराना है तल्खी का सिलसिला

बिहार की सियासत में इस दिन की भूमिका काफी पहले से तैयार हो रही थी. राज्य में सत्तारूढ़ नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के दो प्रमुख घटक बीजेपी व जेडीयू की तनातनी कई बार साफ दिखी.

यह सिलसिला 2019 के आम चुनाव के बाद से ही शुरू हो गया, जब जेडीयू को केंद्रीय मंत्रिमंडल में मांग के अनुरूप तीन सदस्यों के लिए जगह नहीं मिली. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में स्वयं को नरेंद्र मोदी का हनुमान कहने वाले चिराग पासवान की भूमिका ने जख्म को गहरा करने में अहम भूमिका निभाई.

उस वक्त चिराग पासवान एक तरफ तो एनडीए में रहने की बात कह रहे थे और दूसरी तरफ नीतीश सरकार पर निशाना भी साध रहे थे. उन्होंने चुन-चुन कर जेडीयू के हिस्से की 115 में से अधिकतर सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये जो जेडीयू के लिए परेशानी का कारण बन गए और पार्टी 71 से घटकर महज 43 सीट पर सिमट गई. जेडीयू की नजर में यह बीजेपी की मिलीभगत थी.

इसके बाद बोचहां विधानसभा क्षेत्र उपचुनाव के दौरान जिस तरह दबी जुबान से ही सही केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा तेज हुई, वह जेडीयू को नागवार गुजरनी ही थी. इस बार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के साथ हुई तीखी बहस से भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार असहज थे कि चिराग पासवान को राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर एनडीए की बैठक में बुला कर बीजेपी ने उन्हें नाराज कर दिया.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल को लेकर भी नीतीश कुमार भी कभी सहज नहीं रहे. पीएम नरेंद्र मोदी के एक देश, एक चुनाव यानी विधानसभा व लोकसभा चुनाव एक साथ कराये जाने के मुद्दे पर भी नीतीश बीजेपी के विरोध में थे. इसी तरह बिहार कैबिनेट के विस्तार में भी बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की दखलंदाजी व उनसे राय नहीं लिया जाना उन्हें नागवार गुजरा था.

नीतीश कुमार ने बीजेपी पर जेडीयू को कमजोर करने का आरोप लगाया है
नीतीश कुमार ने बीजेपी पर जेडीयू को कमजोर करने का आरोप लगाया हैतस्वीर: IANS

ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार की नाराजगी दूर करने की बीजेपी की ओर से कोई कोशिश नहीं की गई. इसी सिलसिले में बीते पांच मई को केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अचानक पटना पहुंच कर मुख्यमंत्री से मुलाकात की. कहा गया कि बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनाव के बाद कार्रवाई का भरोसा भी नीतीश को दिया, लेकिन उसके अनुसार कुछ हुआ नहीं.

नड्डा के बयान से चौंका जेडीयू

भले ही पिछले विधानसभा चुनाव की जीत की खुशी में जेडीयू ने चिराग पासवान के मुद्दे को उतनी तवज्जो नहीं दी, लेकिन जेडीयू ने उस वक्त ही आर-पार का मूड बना लिया जब सात मोर्चों के साथ संयुक्त बैठक कर केंद्रीय योजनाओं की हकीकत तलाशने के बहाने जुलाई के अंतिम हफ्ते में अमित शाह व जेपी नड्डा बिहार आए. अमित शाह ने तो अगला चुनाव नीतीश कुमार के साथ मिलकर लड़ने की बात कही, वहीं नड्डा ने कहा कि बड़ी पार्टियां ही रह जाएंगी, क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.

इस बीच अपने ही दल के पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के साथ मिलकर बीजेपी के कथित साजिश की बू ने जेडीयू की इस धारणा को मजबूत कर दिया कि बीजेपी महाराष्ट्र की तर्ज पर यहां भी ‘एकनाथ शिंदे' तैयार कर रही है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने चिराग मॉडल का उल्लेख करते हुए कहा भी कि राज्य में एक बार फिर चिराग मॉडल पर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के साथ मिलकर काम चल रहा था.

जेडीयू अध्यक्ष का कहना था कि उनके पास यह कहने के पर्याप्त सुबूत है कि पार्टी को तोड़ने की साजिश रची जा रही थी.

हमेशा दूसरा रास्ता खुला रखते हैं नीतीश   

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार नीतीश कुमार हमेशा ही दबाव से बचने के लिए दूसरा रास्ता खुला रखते हैं. यही वजह है कि पिछले दो दशक से बिहार की राजनीति उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बीते 20 साल में सात बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार अपने तरीके से एक तरह की स्वतंत्र राजनीति करते रहे हैं.

नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक वरीष्ठ बीजेपी नेता कहते हैं, ‘‘लालू विरोध की राजनीति कर नीतीश कुमार सत्ता तक पहुंचे, लेकिन उन्हें तब बुरा नहीं लगा, जब उनकी मदद से ही उन्होंने सरकार बना ली. तब लालू परिवार भ्रष्टाचारी नहीं था. अब दो साल सरकार चलाने के बाद बीजेपी उन्हें षड़यंत्रकारी दिखने लगी. उनका इतिहास ही ऐसा रहा है. जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव से लेकर आरसीपी तक, किसको उन्होंने छोड़ा. पता नहीं कब और कौन उन्हें अच्छा लगे और वह फिर बुरा बन जाए.''

जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है, ‘‘हमारे नेता नीतीश कुमार का कद छोटा करने की कोशिश की गई. यह छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी मंजूर नहीं है.'' जेडीयू प्रवक्ता के मुताबिक पार्टी को लग रहा था कि मोदी-शाह की इस बीजेपी में सहयोगियों के लिए उतना सम्मान नहीं रह गया है. ये येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने के पक्षधर हैं. इसलिए जैसे ही अपने पुराने अध्यक्ष आरसीपी की गतिविधियां पुष्ट हुईं, पार्टी ने उन्हें दोबारा राज्यसभा का उम्मीदवार नहीं बनाया.

हालांकि, इसके साथ ही यह कहने वाले भी कम नहीं है कि ललन सिंह व उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्रीय मंत्री नहीं बनाए जाने की खुन्नस में सारा ठीकरा आरसीपी पर फोड़ते हुए बीजेपी से बदला साधा है. अगर नीतीश कुमार को लालू या उनके बेटे तेजस्वी इतने ही पसंद थे तो 2017 में उनका साथ क्यों छोड़ते. वरिष्ठ पत्रकार एसके पांडेय कहते हैं, ‘‘सवाल राजनीतिक अस्तित्व का था, इसलिए यह तो होना ही था.''