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बिहार में एनडीए के लिए तंग होते हालात

२१ दिसम्बर २०१८

बिहार की राजनीति भारतीय जनता पार्टी के लिए कभी आसान नहीं रही है. लेकिन हालिया घटनाक्रम ने बिहार में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. एक के बाद एक सहयोगी उसका साथ छोड़ रहे हैं.

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Indien Karnataka Wahlen
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

बीजेपी अगर 2005 के बाद बिहार की सत्ता में आई थी, तब भी वह 'छोटे भाई' की भूमिका में रही थी. अगले लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से जिस तरह पार्टियों का बाहर जाना जारी है, उससे यह तय माना जा रहा है कि बीजेपी की 'गांठ' जरूर कमजोर हुई. यह दीगर बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद उसे एक बड़ा साथी जनता दल (युनाइटेड) के रूप में मिल गया है.

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) बीजेपी का साथ छोड़ चली गई. उसके बाद नीतीश कुमार की जेडी (यू) बीजेपी के साथ तो जरूर आई, लेकिन राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (आरएलएसपी) की नाराजगी बढ गई और अंत में उसने एनडीए से ही किनारा कर लिया. 

ऐसे में कमजोर पड़ रही बीजेपी को अब बिहार एनडीए के लिए मजबूत घटक दल माने जाने वाली एलजेपी ने भी परोक्ष रूप से एनडीए छोड़ने की धमकी दे दी है. ऐसे में देखा जाए तो आने वाला समय बीजेपी के लिए आसान नहीं है. राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि बीजेपी की 'गांठ' बिहार में ढीली पड़ी है.

बिहार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बीजेपी ने इतिहास से भी सीख नहीं ली है. उन्होंने कहा, "बीजेपी एक बार फिर वर्ष 2004 की तरह गड़बड़ा रही है. अपने सहयोगियों से सीट बंटवारे को लेकर बात करने में बीजेपी की मजबूरी नहीं थी, पर वह इस ओर ध्यान नहीं दे रही." 

उनका कहना है कि परिवार से एक भाई के जाने से परिवार कमजोर हो जाता है, इसे नकारा नहीं जा सकता. ऐसे में एनडीए से आरएलएसपी का जाने का अगले चुनाव में तो प्रभाव पड़ेगा, लेकिन कितना पड़ेगा, उसका अभी आकलन नहीं किया जा सकता. 

उन्होंने बीजेपी द्वारा गठबंधन के नेताओं से बात नहीं करने पर बड़े स्पष्ट तरीके से कहा, "दूध का जला, मट्ठा भी फूंककर पीता है, मगर बीजेपी अपने इतिहास से भी सीख नहीं ले रही है."

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त इसे 'प्रेशर पॉलिटिक्स' कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही में बीजेपी की तीन राज्यों में हार हुई है, ऐसे में एलजेपी के नेता बीजेपी पर दबाव बनाकर लोकसभा चुनाव में अधिक सीटें चाहते हैं. उन्होंने हालांकि दावे के साथ कहा, "एलजेपी अभी एनडीए को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली है, क्योंकि महागठबंधन में जितनी पार्टियों की संख्या हो गई है, उसमें एलजेपी को वहां छह-सात सीटें नहीं मिलेंगी." 

दत्त हालांकि यह भी कहते हैं कि एनडीए के साथ बिहार में जेडी (यू) जैसी बड़ी पार्टी आ गई है, ऐसे में बीजेपी छोटे दलों को तरजीह नहीं दे रही, जिस कारण आरएलएसपी ने किनारा करना उचित समझा. 

बीजेपी और जेडी (यू) के नेता हालांकि एनडीए में किसी प्रकार के मतभेद से इनकार कर रहे हैं. बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बातें कहने का हक है. सभी पार्टियां अपनी दावेदारी रखती हैं और रख रही हैं, जिसे मतभेद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.  

--आईएएनएस

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