बिहार: किस किस के लिए खास रहे चुनावों के नतीजे
2020 के बिहार विधान सभा चुनावों के नतीजों से नितीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव तक और चिराग पासवान से लेकर असदुद्दीन ओवैसी तक, कई नेताओं और पार्टियों के लिए बड़े बदलाव के संकेत निकल कर आए हैं. एक नजर इन रुझानों पर.
बनी रहेगी एनडीए की सरकार
243 सदस्यों की विधान सभा में 125 सीटें जीत कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सत्ता में बनी रहेगी. लेकिन राज्य में पहली बार बीजेपी जेडीयू को पीछे कर एनडीए का बड़ा दल बन गई है. बीजेपी का संख्या-बल 2015 की 53 सीटों से बढ़ कर 74 पर पहुंच गया है और जेडीयू का 71 से गिर कर 43 पर आ गया है.
भाजपा का हुआ 'विकास'
सालों से राज्य में जेडीयू को बड़ा साझेदार मानने वाली बीजेपी ने अब जेडीयू को पीछे छोड़ दिया है. संभव है अब वो वरिष्ठ साझेदार की तरह व्यवहार करे और एनडीए के साझा मुद्दों की जगह अपने एजेंडे के मुद्दों को आगे बढाए. नीतीश का चेहरा पीछे कर बीजेपी अपना कोई चेहरा भी आगे कर सकती है.
आरजेडी की हद यहीं तक
चुनावी रैलियों में भारी भीड़ आकर्षित करने वाले तेजस्वी यादव भीड़ को वोटों में तब्दील नहीं कर पाए. 75 सीटों के साथ आरजेडी अभी भी विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी रहेगी लेकिन बहुमत ना होने के कारण विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा.
कमजोर कड़ी कांग्रेस
2015 की 27 सीटों के मुकाबले इस बार सिर्फ 19 सीटें जीत कर कांग्रेस ने महागठबंधन के प्रदर्शन को भी पीछे खींच लिया. यह सीटों को बांटने की महागठबंधन की रणनीति की भी विफलता है.
'चिराग' तले अंधेरा
अपने संस्थापक रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद का पहला चुनाव एलजेपी के लिए घातक रहा. पार्टी का संख्या बल दो सीटों से एक पर आ गया, लेकिन चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ जो मोर्चा खोला था उससे जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान हुआ.
'लेफ्ट' अभी भी बाकी है
वामपंथी पार्टियों ने दो दशकों से भी ज्यादा समय के बाद बिहार विधान सभा में इतनी सीटें हासिल की हैं. सीपीआईएमएल को 12 और सीपीआई, सीपीआईएम को 2-2 सीटें मिली हैं. महागठबंधन में लड़ी हुई सीटों में जीती हुई सीटों का सबसे अच्छा अनुपात सीपीआईएमएल का ही है.
सीमांचल ने चुना नया विकल्प
कई सालों से बिहार में अपनी किस्मत आजमा रही असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने पहली बार बिहार में पांच सीटें जीती हैं. लगभग इन सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर अभी तक बिहार की पुरानी पार्टियों कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू का दबदबा था.