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बाहरी लोगों के लिए मेघालय ने बनाया नया कानून

प्रभाकर मणि तिवारी
४ नवम्बर २०१९

पूर्वोत्तर राज्य मेघालय ने घुसपैठ रोकने और स्थानीय आदिवासियों और मूल निवासियों के हितों की रक्षा के लिए एक नया कानून बनाया है. इसके तहत 24 घंटे से ज्यादा राज्य में ठहरने वाले बाहरी लोगों को अब पंजीकरण कराना होगा.

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Bildergalerie Porträt Meghalaya - Schottland des Ostens
तस्वीर: DW/Bijoyeta Das

देश में पहली बार किसी राज्य ने ऐसा कानून बनाया है. पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इनर लाइन परमिट की व्यवस्था जरूर लागू है. लेकिन यह कानून उससे कई मायनों में अलग है. राज्य के कई संगठन लंबे अर्से से इसकी मांग करते रहे हैं.  पड़ोसी असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) लागू होने के बाद संभावित घुसपैठ के अंदेशे से इसके प्रावधानों में बड़े पैमाने पर संशोधन करते हुए इसे नए स्वरूप में लागू किया गया है.

इस बीच, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि असम में तैयार एनआरसी कोई नया या अनूठा विचार नहीं हैं. यह अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए एक ऐसा दस्तावेज है जिसके आधार पर भविष्य में दावों को निपटाया जा सकेगा.

नया कानून

मेघालय सरकार ने बीते शुक्रवार को मेघालय रेजिडेंट्स सेफ्टी एंड सिक्योरिटी एक्ट (एमआरआरएसए), 2016 को संशोधित स्वरूप में लागू कर दिया. फिलहाल इसे अध्यादेश के जरिए लागू किया गया है, लेकिन विधानसभा के अगले सत्र में इसे पारित करा लिया जाएगा.

Indien Assam und Meghalaya Proteste gegen Bangladesch-Migranten
एनआरसी के विरोध में प्रदर्शनतस्वीर: DW/Prabhakar Mani

उपमुख्यमंत्री प्रेस्टोन टेनसांग बताते हैं, "उक्त अधिनियम सरकारी कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा. यह उनके लिए है जो पर्यटन, मजदूर और व्यापार के सिलसिले में मेघालय आएंगे. इस अधिनियम का उल्लंघन करने वालों को खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी.”

राज्य में अवैध आप्रवासियों को रोकने के उपायों के तहत वर्ष 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस अधिनियम को पारित किया था. हालांकि तब इसमें किराएदारों की निगरानी पर ही जोर दिया गया था. उस समय तमाम मकान मालिकों को जरूरी कागजात दुरुस्त रखने और किराएदारों के बारे में पारंपरिक सामुदायिक मुखिया को सूचित करने का निर्देश दिया गया था. अब उस अधिनियम में कई बदलाव करते हुए इसे धारदार बनाया गया है.

टेनसांग कहते हैं, "संशोधित अधिनियम के तहत राज्य में आने वाले लोग ऑनलाइन पंजीकरण भी करा सकते हैं. सरकार ने पंजीकरण के नियमों को पहले के मुकाबले काफी सरल बना दिया है. यह अधिनियम तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. विधानसभा के अगले अधिवेशन में इसे अनुमोदित कर दिया जाएगा.”

उक्त अधिनियम में संशोधन से पहले मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने विभिन्न राजनीतिक दलों, गैर-सरकारी संगठनों और दूसरे संबंधित पक्षों की अलग-अलग बैठक बुला कर नए प्रावधानों पर चर्चा की थी. पहले वाला अधिनियम सिर्फ किरायेदारों पर लागू होता था. संशोधनों के बाद यह मेघालय आने वाले तमाम लोगों पर लागू होगा. अगर कोई व्यक्ति राज्य में प्रवेश करने से पहले अपनी जानकारी नहीं देता या फिर गलत जानकारी देता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

Conrad Sangma
मुख्यमंत्री कोनराड संगमातस्वीर: IANS

राज्य की कोनराड संगमा सरकार केंद्र के प्रस्तावित नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध कर रही है. इसके तहत पड़ोसी देशों से बिना किसी कागजात के यहां आने वाले हिंदू, सिख, ईसाई, जैन व पारसी तबके के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. बीजेपी भी राज्य सरकार में शामिल है.

वैसे तो राज्य के तमाम संगठन पहले से ही स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा के लिए समुचित कानून बनाने की मांग करते रहे हैं. पड़ोसी असम राज्य में एनआरसी लागू होने के बाद वहां से लोगों के भाग कर मेघालय में आने का अंदेशा बढ़ने के बाद इस मांग ने काफी जोर पकड़ा था. बीते अगस्त में असम में जारी एनआरसी की अंतिम सूची में 19.06 लाख लोगों को जगह नहीं मिल सकी थी.

एनआरसी का बचाव

असम में तैयार एनआरसी पर जारी विवादों के बीच सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इसे भविष्य का दस्तावेज बताते हुए इसका बचाव किया है. न्यायमूर्ति गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ के अध्यक्ष हैं जो असम में एनआरसी की प्रक्रिया की निगरानी कर रही है. दिल्ली में आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह में उन्होंने कहा, "एनआरसी कोई तात्कालिक दस्तावेज नहीं है. यह भविष्य का मूल दस्तावेज है, जिसके आधार पर भविष्य के दावों को निपटाने में सहूलियत होगी.”

गोगोई ने एनआरसी का विरोध करने वालों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि ऐसे लोगों को जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जमीनी हकीकत से दूर हैं ही, विकृत तस्वीर भी पेश करते हैं. इसी वजह से असम और उसके विकास का एजंडा प्रभावित हुआ है.

असम के रहने वाले न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, "एनआरसी का विचार कोई नया नहीं है. इसे वर्ष 1951 में ही तैयार किया गया था. मौजूदा कवायद तो वर्ष 1951 के एनआरसी को अपडेट करने का महज एक प्रयास है.”

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