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समाज

पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा बाल विवाह

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ फ़रवरी २०१९

प्रगति और विकास के तमाम दावों के बावजूद भारत में अब भी हर 10 में से एक लड़की की शादी बाली उमर में ही हो जाती है. 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो चुकी होगी.

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तस्वीर: Getty Images/G.Bouys

विडंबना यह है कि कम उम्र में लड़कियों के विवाह के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ या झारखंड जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्य नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल पहले स्थान पर है. सात साल से एक महिला के मुख्यमंत्री रहने और सरकार की ओर से इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने के लिए कन्याश्री जैसी योजनाएं शुरू करने के बावजूद नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 की ताजा रिपोर्ट से इसका पता चला है.

2005-06 में हुए ऐसे तीसरे सर्वेक्षण में बिहार पहले स्थान पर था जबकि बंगाल चौथे पर. इस बीच यूनिसेफ की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं की गई तो भारत में 2030 तक 15 करोड़ लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो चुकी होगी.

नहीं बदले हालात

पश्चिम बंगाल में बीते सात वर्षों में हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है. 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि युवतियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है. राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था. अब आंकड़ों में भले मामूली हेरफेर हुआ हो, कुल मिला कर हालात जस के तस हैं.

ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में बाल विवाह में महज आठ फीसदी की कमी आई जबकि बिहार, झारखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में 20 पीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई. जिलावार विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में सबसे ज्यादा (39.9 फीसदी) बाल विवाह होते हैं. उसके बाद गुजरात के गांधीनगर (39.3 फीसदी) और राजस्थान के भीलवाड़ा (36.4 फीसदी) जिले का नंबर आता है. हिमाचल प्रदेश और मणिपुर को छोड़ कर ज्यादातर राज्यों में बाल विवाह दर में लगातार कमी आई है. देश में 15 से 19 साल तक की लड़कियों के विवाह की राष्ट्रीय औसत दर अब 11.9 फीसदी हो गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाको में बाल विवाह का प्रचलन शहरी इलाकों के मुकाबले ज्यादा है. इन इलाको में इसका औसत शहरी इलाके के 6.9 फीसदी के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा लगभग 14.1 फीसदी है. इसमें कहा गया है कि बाल विवाह का सीधा संबंध शिक्षा से है. शिक्षित परिवारों में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम सामने आते हैं.

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यूनिसेफ की रिपोर्ट

यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस इमरजेंसी फंड यानी यूनिसेफ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों की पुष्टि की है. इसमें कहा गया है कि देश में बाल विवाह के मामलों में कमी के बावजूद पश्चिम बंगाल व राजस्थान जैसे राज्यों में इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है. यूनिसेफ की ओर से इस सप्ताह जारी फैक्टशीट चाइल्ड मैरिजेज 2019 शीर्षक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल व तमिलनाडु जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले 20 फीसदी से कम हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक 2005-06 में जहां 47 फीसदी युवतियों की शादी 18 साल से पहले ही हो जाती थी, वहीं वर्ष 2015-16 तक यह घट कर 27 फीसदी रह गई थी. यूनिसेफ ने लड़कियों में बढ़ती शिक्षा, बाल विवाह के खिलाफ प्रचार और इससे होने वाले नुकसान के प्रति चलाए जाने वाले जागरूकता अभियानों को इस गिरावट की वजह करार दिया है. लेकिन इस गिरावट के बावजूद कुछ राज्यों और उनके कुछ जिलों में ऐसे मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है.

अंकुश नहीं

पश्चिम बंगाल में बाल विवाह के मामलों को ध्यान में रखते हए सरकार ने 2013 में ऐसे मामलों पर अंकुश के लिए कन्याश्री नामक योजना शुरू की थी. इसके तहत 8वीं से 12वीं तक की छात्राओं को सालाना 750 रुपये की स्कॉलरशिप और 18 की उम्र पूरी होने पर एकमुश्त 25 हजार रुपये के अनुदान का प्रावधान है. इस योजना का मकसद लड़कियों में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देकर बाल विवाह जैसी कुरीति पर भी अंकुश लगाना है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, इस योजना के तहत फिलहाल 50 लाख से ज्यादा छात्राओं को सरकारी सहायता मिल रही है. इस योजना को संयुक्त राष्ट्र की ओर से अवॉर्ड भी मिल चुका है.

इस योजना के बावजूद राज्य में बाल विवाह पर अंकुश लगाने में कामयाबी क्यों नहीं मिल रही है? समाजशास्त्रियों का कहना है कि यह योजना दरअसल ग्रामीण इलाकों में विवाह अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गई है. शिक्षा के लिए मिलने वाली रकम और एकमुश्त नकद सहायता का इस्तेमाल दहेज देने के लिए किया जा रहा है. उनका कहना है कि इस योजना की निगरानी के लिए एक ठोस तंत्र जरूरी है.

सामजाशास्त्री मनोहर गांगुली कहते हैं, "राज्य में बाल विवाह को शिक्षा और जागरूकता से ही अंकुश लगाया जा सकता है. बंगाल में बाल विवाह ही महिलाओं की तस्करी की एक प्रमुख वजह है." 2016 में महिला तस्करी के मामले में बंगाल पूरे देश में अव्वल रहा था. लेकिन ऐसे मामलों में सजा की दर महज 9.8 फीसदी थी. नतीजन ऐसे मामलों में शामिल तस्करों के हौसले लगातार बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य में बाल विवाह पर पूरी तरह अंकुश लगाने की दिशा में अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इसके लिए सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों को मिल कर काम करना होगा.

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