बाढ़ से बचने के लिये नदियां जोड़ने चली सरकार
१ सितम्बर २०१७पांच लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की इस परियोजना के तहत भारत की बड़ी नदियों को आपस में जोड़ा जाना है. इस के लिए बड़ी संख्या में नहर, पुल और बांध बनाये जायेंगे. हाल के दिनों में भारत और उसके पड़ोसी देश बांग्लादेश और नेपाल में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है. इससे पहले के दो साल में इन इलाकों ने सूखे का दंश झेला. मोदी सरकार ने इस विशाल परियोजना के पहले चरण पर तेजी से अमल के लिए कदम बढ़ा दिये हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए निजी तौर पर दिलचस्पी दिखायी है. इस परियोजना से हजारों मेगावाट बिजली भी पैदा होगी. पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोग इसे इको सिस्टम के लिये खतरा बताते हैं. उनके अलावा विरोध करने वालों में एक राजपरिवार और शायद वो बाघ भी हैं जिनका नेशनल पार्क इसकी जद में है.
परियोजना के तहत उत्तर मध्य भारत के इलाके में केन नदी को 22 किलोमीटर लंबी बांध बना कर छिछले बेतवा नदी से जोड़ा जाना है. दोनों नदियां उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों और मध्य प्रदेश से हो कर बहती हैं. इन दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है और प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि केन बेतवा प्रोजेक्ट दूसरे राज्यों के लिए भी नजीर बनेगा. जल संसाधन राज्य मंत्री संजीव बालयान ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "हमने बेहद कम समय में सभी विभागों से मंजूरी हासिल कर ली है और आखिरी मंजूरी भी इसी साल मिल जायेगी. केन बेतवा प्रोजेक्ट सरकार की वरीयता सूची में सबसे ऊपर है."
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भरपूर पानी वाली नदियों जैसे गंगा, गोदावरी और महानदी से बांध और नहरों का जाल बना कर जलमार्ग तैयार किये जायेंगे और यह बाढ़ और सूखे से लड़ने का एकमात्र तरीका है. 425 किलोमीटर लंबी केन नदी बाघों के एक अभयारण्य से हो कर गुजरती है. सरकार की योजना इस अभयारण्य के करीब 6.5 फीसदी हिस्से को साफ कर के बांध बनाने की है इसके लिये दूर दराज के 10 गांवों से करीब 2000 लोगों को यहां से हटाना होगा.
सूत्र बताते हैं कि मोदी सरकार इस परियोजना को अगले कुछ ही हफ्ते में मंजूरी दे देगी. इसके बाद प्रधानमंत्री निर्माण कार्य शुरू करने की योजना को हरी झंडी दिखा देंगे. सरकार पश्चिम भारत में पार तापी नदी को नर्मदा और दमन गंगा को पिंजाल नदी से जोड़ने के लिए भी कागजी कार्रवाई तेजी से निपटा रही है. यह परियोजना नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात और उसके पड़ोसी महाराष्ट्र से जुड़ी है. इन दोनों राज्यों में भी बीजेपी की सरकार है.
नदियों को जोड़ने का पहली बार प्रस्ताव 2002 में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के शासन में ही आया था. इस पर काम रुक गया क्योंकि राज्य सरकारों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर मतभेद थे और सरकार को अलग अलग विभागों से मंजूरी लेने में भी काफी वक्त लगा. इस बार बीजेपी के सरकार वाली राज्यों से शुरुआत कर के अधिकारियों ने उम्मीद लगायी है कि समझौते तेजी से होंगे और काम जल्दी शुरू होगा.
मोदी सरकार नदियों को जोड़ने की परियोजना को बाढ़ और सूखे का समाधान बता रही है. इस साल भी पूर्वी और उत्तर पूर्वी इलाके में जहां बाढ़ ने तबाही मचाई वहीं भारी बरसात के कारण मुंबई भी ठहर गयी. इससे उलट दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में ऐसा सूखा पड़ा कि सरकार को पीने के पानी का कोटा तय करना पड़ा.
हालांकि इसके बावजूद बहुत से लोग इस परियोजना के विरोध में भी हैं. कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से हम इस योजना में कोई कमी नहीं देखते लेकिन ऐसे देश में जो पानी पैदा करने से ज्यादा नुकसान करता है अरबों डॉलर खर्च करने से बेहतर है कि पहले जल संरक्षण पर ध्यान दिया जाये."
भारत में दुनिया की 18 फीसदी आबादी रहती है लेकिन यहां उपयोग होने लायक दुनिया के जल का केवल चार फीसदी ही मौजूद है. इसके अलावा भारत कृषि के लिये सब्सिडी देता है जिससे भारी मात्रा में चावल और गन्ने की उपज होती है और जो निर्यात भी होता है. इन दोनों फसलों के लिये भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है.
केन नदी पर जिस 77 मीटर ऊंची और 2 किलोमीटर लंबी बांध का प्रस्ताव है उससे करीब 9000 हेक्टेयर जमीन पानी में डूब जायेगी जो मुख्य रूप से जंगली इलाका है. इसमें एक बड़ा हिस्सा पन्ना टाइगर रिजर्व का होगा जो मध्यप्रदेश में खजुराहो मंदिर के पास है. यह बाघ अभयारण्य 30-35 बाघों और करीब 500 गिद्धों का बसेरा है. ब्रिटिश शासन के दौर में पन्ना के रजवाड़े इस इलाके पर हुकूमत करते थे. राजपरिवार के सदस्य श्यामेंद्र सिंह कहते हैं, "वन्य अभयारण्य में बांध बनाना पर्यावरण के लिये एक बड़ी आपदा को न्यौता देना है. इसकी वजह से जंगल में बाढ़ और निचले इलाकों में सूखा पड़ेगा." अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने बाघों और गिद्धों की सुरक्षा के बारे में विचार कर लिया है.
1915 में ब्रिटिश सरकार ने गंगाउ बांध बनाया था वहां से थोड़ी ही दूर पर दाउधान गांव है जहां ना तो बिजली है ना ही दूसरी बुनियादी सुविधायें. यहां के लोग फिलहाल ये जानना चाहते हैं कि उन्हें यहां से हटने के बदले में क्या मिलेगा. गांव में रहने वाले बुजुर्ग मुन्ना यादव घर से थोड़ी दूर पर बहती नदी को देखते हुए कहते हैं, "हमने अपने गांव में कभी बिजली नहीं देखी, अगर हमारे बच्चों को यहां से जाना पड़ा और अगर बांध से सबका भला होगा तो हम इसका विरोध नहीं करेंगे."
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)