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बाइडेन-पुतिन शिखर वार्ता का क्या होगा एशिया में असर

राहुल मिश्र
१७ जून २०२१

जेनेवा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बातचीत से एशियाई देशों को काफी उम्मीदें हैं. रूस अमेरिकी तनाव में कमी भूराजनैतिक बदलाव से गुजर रहे एशिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

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Schweiz l Biden und Putin treffen sich in Genf l Begrüßung
तस्वीर: Patrick Semansky/AP/picture alliance

दोनों महाशक्तियों के शीर्ष नेताओं के बीच 2018 के बाद यह पहली मुलाकात थी. भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच 2018 में हेलसिंकी में ऐसी ही मुलाकात हुई थी. हालाकि ट्रंप पर यह भी आरोप थे कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस की तथाकथित दखलअंदाजी से उन्हें फायदा हुआ था. और नुकसान हुआ था बाइडेन की पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को. बाइडेन-पुतिन शिखर वार्ता में जिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई वे वैश्विक राजनीति पर तो असर डालते ही हैं, कुछ मुद्दों का एशिया पर खास असर होने की संभावना है विशेषकर उन मसलों पर जहां चीन की बड़ी भूमिका रही है.

अमेरिका और रूस वैश्विक महाशक्तियां होने के साथ साथ एशिया की भूराजनीति में भी काफी दखल रखती हैं. चीन, ईरान और पश्चिम एशिया, उत्तर कोरिया, और तमाम स्ट्रेटेजिक हॉट्स्पॉट्स पर इन दोनों देशों का व्यापक असर देखने को मिलता है. कूटनय की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक तो यही है कि यह युद्ध और डेडलॉक के रास्ते से परे बातचीत और बहस मुबाहिसे के रास्ते को साफ करती है.

महाशक्तियों की बातचीत से उम्मीदें

परमाणु हथियारों के नियंत्रण के मसले पर भी दोनों देशों के बीच सैद्धांतिक तौर पर आम सहमति बन गई दिखती है. दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु जखीरों के मालिक इन दो देशों के बीच यह सहमति दुनिया और खास तौर पर एशिया के लिए वही महत्व रखती है जो महत्व किसी जंगल के कोने में दो हाथियों के युद्धविराम से वहां पसरी घास के लिए होता होगा. आखिरकार इन दो हाथियों की लड़ाई में पिसना तो छोटे छोटे देशों सरीखी घास को ही होता है.

Schweiz l Biden und Putin treffen sich in Genf l PK Biden
तस्वीर: Patrick Semansky/AP/picture alliance

रूस पर एशिया के कई देशों को सैन्य सहयोग करने का इल्जाम लगाया जाता है. इनमें सीरिया, ईरान, उत्तर कोरिया, और म्यांमार जैसे देश शामिल हैं. सीधे तौर पर फिलहाल रूस इन देशों के साथ संबंधों में कोई कमी नहीं लाने जा रहा और इस लिहाज से मुलाकात का कोई सीधा असर एशिया की हथियार मंडी पर नहीं होगा. लेकिन काम से काम बाइडेन की बात का इतना असर तो होगा कि रूस अमेरिका के क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई साइबर हमला नहीं करेगा.

बाइडेन-पुतिन की मुलाकात में दोनों देशों के बीच रोड़ा बने कई मुद्दों पर कोई ठोस बातचीत नहीं हुई जिससे कुछ हलकों में निराशा भी है. साइबर सुरक्षा, यूक्रेन, जॉर्जिया, और नगोर्नो-काराबाख इलाके में रूसी दखलंदाजी पर भी कुछ खास बात नहीं सामने आई. लेकिन यहां यह समझना भी जरूरी है कि पहली ही मुलाकात में यह सब कुछ सुलझ जाता यह उम्मीद करना भी बेमानी है. बातचीत के इस दौर से आगे फिर बातचीत का रास्ता निकले यह बहुत महत्वपूर्ण है.

शिखर बातचीत में चीन भी

मुलाकात से पहले और उसके बाद के बाइडेन के वक्तव्यों में चीन का जिक्र दिलचस्प था. कहीं न कहीं बाइडेन को यह उम्मीद है कि रूस चीन के मुद्दे पर अमेरिका का साथ दे सकता है. नाटो और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के साथ मुलाकात हो या जी-7 का शिखर सम्मेलन, बाइडेन लगातार चीन को लेकर एक संयुक्त मोर्चा बनाने की फिराक में है. इस नई कूटनीतिक चाल के दूरगामी परिणाम होंगे भले ही एक झटके में बाइडेन को इसमें कामयाबी न मिले.

Schweiz l Biden und Putin treffen sich in Genf l PK Putin
तस्वीर: Denis Balibouse/REUTERS/AP/picture alliance

एशिया और इंडो-पैसिफिक के तमाम देश, चाहे जापान हो या इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, भारत या फिर वियतनाम, सभी चीन की आक्रामक नीतियों और बढ़ती दादागीरी से परेशान हैं. ऐसे में बाइडेन की एक कूटनीतिक संयुक्त मोर्चा खोलने की बात सभी के लिए अच्छी खबर है. पश्चिम के देशों से बरसों से मुंह मोड़ कर बैठे और तमाम प्रतिबंधों की मार झेल रहे रूस के लिए शायद यह अच्छा अवसर है कि वह पश्चिम के देशों का साथ दे. वैसे तो रूस चीन का साथ देने की बात करता रहा है लेकिन पश्चिम के साथ नई डील की उम्मीद में शायद रूस कुछ मुद्दों पर सहयोग कर भी सकता है. और शायद ऐसा करे भी.

कई संभावनाओं की ओर इशारा

शिखर वार्ता के बाद रूस के बारे में दिया बाइडेन का बयान ऐसी कई संभावनाओं की ओर इशारा करता है. रूस मध्य एशिया और कॉकेशस में चीन की बढ़ती दखलंदाजी पसंद नहीं करता और इन बातों से परेशान भी है. चीन की बढ़ती आर्थिक, सामरिक, और सैन्य ताकत ने उसे अत्याधुनिक पश्चिमी देशों की कतार में ला खड़ा किया है. रूस इनमें से कई मामलों में चीन से पिछड़ता दिख रहा है. दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां पहले रूस का वर्चस्व था और आज उसकी जगह चीन ने ले ली है.

म्यांमार, वियतनाम, और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों के साथ उसके रक्षा कारोबारी संबंध तो हैं लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया में उसकी कूटनीतिक पकड़ बहुत कमजोर है. दक्षिण एशिया में भारत जैसा मजबूत सहयोगी होने के बावजूद वह अमेरिका के मुकाबले पिछड़ता जा रहा है. पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग पर भी आंच आ रही है. अमेरिका और यूरोप की रूस के साथ बातचीत को लेकर गंभीरता और ईमानदारी और चीन के साथ इन देशों के सम्बंध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे यह भी तय है.

राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.

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